केंद्र सरकार ने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला के लिए वाई-श्रेणी की सुरक्षा-व्यवस्था की घोषणा की है। अब से पूनावाला की सुरक्षा की जिम्मेदारी केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स (CRPF) की होगी। सरकार का यह फैसला सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के निदेशक प्रकाश कुमार सिंह द्वारा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को लिखे एक पत्र के बाद आया है। पत्र में प्रकाश कुमार सिंह ने लिखा था कि पूनावाला को कई ग्रुप की तरफ से धमकी मिल रही है।
जब से केंद्र सरकार ने टीकाकरण के तृतीय चरण की घोषणा की है, भारत में बनने वाली वैक्सीन की कीमतों को लेकर एक तीखी बहस छिड़ गई है। ऐसा नहीं है कि केवल कुछ राज्य सरकारों ने ही बार-बार वैक्सीन की कीमतों को अधिक बताया। ऐक्टिविस्ट, सिनेमा स्टार और सोशल मीडिया सेलेब ने भी क़ीमतों पर बयान दिए हैं, जिन पर काफी लंबी बहसें हुई हैं। कुछ ऐक्टिविस्ट तो यह माँग भी उठा चुके हैं कि सीरम इंस्टीट्यूट हर भारतीय को मुफ़्त में वैक्सीन दे।
After saying that you were making profit even at 150/vaccine, we will now be asked to pay the most of any country for it. Please explain why @SerumInstIndia pic.twitter.com/ozFXXlHIDG
— Farhan Akhtar (@FarOutAkhtar) April 24, 2021
फ़रहान अख़्तर ट्वीट कर वैक्सीन की क़ीमत को लेकर पूनावाला से सवाल कर चुके हैं। राहुल गाँधी पहले ही उन्हें न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मित्र घोषित कर चुके हैं, बल्कि आदत के अनुसार यह आरोप भी लगा चुके हैं कि प्रधानमंत्री उन्हें फायदा पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं।
ऐसे में यदि पूनावाला को धमकी मिल रही हों तो इसमें आश्चर्य की बात नहीं। नेताओं या सिनेमा स्टार के समर्थक आचरण में कभी-कभी उनसे कई हाथ आगे चले जाते हैं।
पर यहाँ प्रश्न यह उठता है कि एक उद्योगपति को मिलनेवाली इस तरह की धमकियाँ क्या सोशल मीडिया पर लोगों के दो-चार दिन की प्रतिक्रियाओं का परिणाम है? कोई भी नेता यदि किसी के ऊपर जनता या देश के विरुद्ध काम करने का बार-बार गैर जिम्मेदारीपूर्ण आरोप लगाएगा तो उसके समर्थकों के मन में उस व्यक्ति के लिए क्या धारणा बनेगी और वे कैसी प्रतिक्रिया देंगे? जब राहुल गाँधी, कोई सिनेमा स्टार या कोई सोशल मीडिया इंफलुएंशर किसी के बारे में बिना तथ्य के लगातार कुछ लिखेगा तो सोशल मीडिया पर उसके समर्थकों का आचरण उनकी लिखी गई बातों के अनुसार ही तो होगा। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि पूनावाला को मिलने वाली धमकियाँ इनमें से किसी के समर्थकों की करतूत है, मेरा कहना मात्र इतना है कि एक आम सोशल मीडिया यूजर अपने नेता या अपने प्रणेता से बहुत हद तक प्रभावित रहता है।
दूसरा प्रश्न यहाँ यह भी उठता है कि हमारे देश के कुछ लोग हमारे उद्योगपतियों के लिए अपने मन में कैसी धारणाएँ पालते हैं और उसे सार्वजनिक मंचों पर कैसे रखते हैं? कल्पना करें कि अपने जिन उद्योगपतियों के लिए इन लोगों के मन में ऐसी धारणा है, यही उद्योगपति यदि किसी और देश के नागरिक होते तो उनके प्रति वहाँ के लोगों का व्यवहार वैसा ही होता जैसा हमारे यहाँ है? सीरम इंस्टीट्यूट जिस तरह के शोध करता है और जिस काम के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है, उसके सीईओ के साथ ऐसे व्यवहार की कल्पना हम किसी और देश में कर सकते हैं? क्या हम सोचते हैं कि दुनिया भर में फैली ऐसी महामारी के लिए टीके बनाने वाले इंस्टीट्यूट के सीईओ को किसी और देश में धमकी मिलती या उसे वहाँ हीरो की तरह देखा जाता?
कुछ लोगों का मानना है कि वैक्सीन बनानेवाली भारतीय कंपनियाँ लोगों को मुफ़्त वैक्सीन दें। ऐसे लोगों ने कभी यह सोचा है कि इतने बड़े स्तर पर वैक्सीन बनाने के लिए जो तैयारी और निवेश चाहिए उसे लेकर किस तरह का जोखिम रहता है? लोग क्यों नहीं सोचते कि दुनिया भर के लिए वैक्सीन बनाने वाला इंस्टीट्यूट हमारे देश के लिए कितने गर्व की बात है? क्यों नहीं सोचते कि अपने उद्योगपतियों, ख़ासकर उन उद्योगपतियों के लिए जो शोध के इतने महत्वपूर्ण क्षेत्र में हैं, उनके साथ यदि ऐसा व्यवहार किया जाएगा तो हमारे कितने उद्योगपति इस क्षेत्र में जाएँगे? आए दिन अपने देश में शोध के लिए सही वातावरण न होने की शिकायत की जाती है। पर ऐसा करते हुए लोग यह नहीं सोचते कि अपने एक हीरो के प्रति हमारा ऐसा व्यवहार भविष्य के दर्जनों और हीरो को इस क्षेत्र में आगे आने से रोकेगा?
धमकी देने वाले लोग चाहे जो हों पर राहत की बात है कि सरकार ने अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए उनकी सुरक्षा का यथोचित प्रबंध किया। यह इस बात को भी दर्शाता है कि न केवल अपने उद्योगों, बल्कि अपने उद्योगपतियों, वैज्ञानिकों और ऐसे तमाम लोगों की सुरक्षा के प्रति सरकार अति गंभीर है। हम सोशलिज्म के उन दिनों से बहुत आगे आ चुके हैं, जिसमें सरकार या नेताओं के लिए प्रॉफिट शब्द का उच्चारण एक असंभव सा काम माना जाता है। हम नेहरू और जेआरडी टाटा के सम्बंध वाले दिनों से आगे आ चुके हैं। हम काफी हद तक यह समझने लगे हैं कि हमारे हीरो केवल एक खास वर्ग के लोग नहीं हैं। हमारे उद्योगपति भी हमारे हीरो हैं।
सरकार का यह कदम हमें यह भी बताता है कि हम केवल नेहरू जी और जेआरडी टाटा के सम्बंधों वाले दिनों से ही आगे नहीं आए हैं, बल्कि नम्बी नारायणन के दिनों से भी आगे आ चुके हैं।