कोरोना वायरस का प्रसार रोकने के लिए लॉकडाउन के बाद लाखों प्रवासी मजदूरों को उनके गृहराज्य भेजने की समस्या सरकार के सामने एक चुनौती बनकर उभरी। इसके समाधान हेतु सरकार ने श्रमिक ट्रेनें शुरू की, ताकि गरीब मजदूरों को उनके घर भेजा जा सके। इन ट्रेनों के चलने के बाद खट्टी-मीठी कुछ ऐसी कहानियाँ सामने आई, जिन्हें मजदूरों ने घर पहुँचने के बाद नहीं, बल्कि सफर के बीच अनुभव किया।
ऑपइंडिया को प्राप्त सूचना के अनुसार, श्रमिक ट्रेनों में गृहराज्य जाने के रास्ते में 31 नवजात शिशुओं ने जन्म लिया। सबसे शुरुआती मामला 10 मई 2020 का है। इस दिन केतकी सिंह नाम की महिला सूरत से प्रयागराज लौट रही थीं। सफर के दौरान बीच रास्ते में ही उन्हें प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। उन्होंने सतना में आरपीएफ की देखरेख में बच्चे को जन्म दिया।
इसी प्रकार, 18 मई को 21 वर्षीय एक महिला ने कटिहार में मेडिकल टीम और रेलवे प्रशासन की देखरेख में अपने बच्चे को जन्म दिया और फिर अपने स्वस्थ बालक के साथ घर रवाना हुई।
इसी दिन नीतू देवी ने उत्तर प्रदेश लौटते हुए अपनी बेटी को जन्म दिया। जब मेडिकल टीम ने जच्चा-बच्चा दोनों की जाँच की तो दोनों स्वस्थ पाए गए। इसके बाद महिला को भी उसके घर लौटने की अनुमति दे दी गई।
ऐसे ही अनेकों मामले आए, जब बच्चे को जन्म देते ही प्रसूति ने अपने आगे के सफर को जारी रखने के लिए जोर दिया और अपनी व अपने बच्चे की देखरेख अपने गृहराज्य में करने की बात कही।
अब चूँकि, किसी भी प्रसूति के लिए नवजात के साथ एक सफर तय करना मुश्किल काम है। इसलिए इन माताओं को प्रशासन की ओर से पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान की गईं।
इस यात्रा के बीच एक ओर जहाँ कई महिलाओं ने स्वस्थ बच्चों को जन्म दिया और खुशी के साथ घर की ओर आगे बढ़ीं। वहीं, कुछ गर्भवती महिलाओं को अपूरणीय क्षति भी हुई।
मसलन 17 मई को एक महिला ने गोरखपुर जाते हुए अपने जुड़वा बच्चों को खो दिया। जानकारी के मुताबिक, महिला ने समय से पहले (प्रीमैच्योर) दो बच्चों को जन्म दिया। इनमें से एक तो पहले ही निश्चेष्ट था और दूसरे ने जन्म के बाद आखिरी साँस ली।
एक अन्य दिल दहलाने वाली कहानी में जयपुर से गोरखपुर की ओर यात्रा कर रही महिला के साथ हुआ। उसने जयपुर में ही एक मृत बच्चे को जन्म दिया और फिर उसी बच्चे को लेकर गोरखपुर तक सफर किया। बाद में गोरखपुर पहुँचकर उसे प्रशासन द्वारा अस्पताल भेज दिया गया।
25 मई को एक महिला ने बिहार जाते हुए दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया। मगर, स्वास्थ्य सुविधा मिलने के बाद जब बच्चों को और माँ को सागर जिले के अस्पताल में भर्ती किया गया, तो दोनों शिशुओं ने वहाँ दम तोड़ दिया।
श्रमिक ट्रेन में होने वाली मौतें और फैलाए जा रहे झूठ
कोरोना संकट के दौरान जब हम श्रमिक ट्रेनों में नवजातों के जीवनचक्र पर बात करते हैं, तो इस विवाद को भी नकार नहीं सकते कि श्रमिक ट्रेनों में कई मौतें भी हुई। लेकिन कुछ स्वार्थी लोगों ने सोशल मीडिया पर लापरवाही और भूख-प्यास से मौतें होने का दावा कर इसे गलत तरीके से पेश किया।
मसलन, राणा अयूब ने एक वीडियो शेयर की। इसमें मुजफ्फरपुर स्टेशन पर एक महिला ने अपनी आखिरी साँस ली। अयूब ने दावा किया कि मौत भूख के कारण हुई। मगर, जब ऑपइंडिया ने इसकी पड़ताल की, तो मालूम चला कि महिला काफी समय से बीमार थी और ट्रेन में सफर के दौरान उसकी मृत्यु हो गई।
इस मामले में रेलवे सुरक्षा बल के प्रभारी निरीक्षक और डिप्टी एसपी मुख्यालय जीआरपी मुजफ्फरपुर, श्री रमाकांत उपाध्याय को ट्रेन में महिला की मृत्यु के बारे में सूचित किया गया था। स्टेशन प्रभारी से अनुमति मिलने के बाद, मृतक के शव को मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया गया था और बाद में मुजफ्फरपुर रेलवे डिवीजन के डॉक्टर द्वारा उसकी जाँच की गई थी।
इसके बाद एक और फर्जी खबर, जो कि 4 साल के बच्चे की मृत्यु को लेकर फैलाई गई। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट में बताया या कि 4 साल के मोहम्मद इरशाद, जो मुजफ्फरपुर से बेतिया के लिए ट्रेन में सवार हुआ था, उसकी मौत रेलवे की ओर से लापरवाही बरतने के कारण हुई।
जबकि रेलवे ने अपने स्पष्टीकरण में ये बताया कि बच्चा पहले से बीमार था और दिल्ली से इलाज के बाद लौटा था। इसलिए बच्चे की मृत्यु का कारण पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद ही सामने आएगा।
इसी प्रकार 27 मई 2020 को जागरण ने एक रिपोर्ट छापी। इस रिपोर्ट में दावा किया गया कि श्रमिक ट्रेन में रेलवे की लापरवाही के कारण 4 लोगों की मौत हो गई। इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि प्रवासी मजदूरों को श्रमिक एक्सप्रेस में भोजन व पानी नहीं मिला।
बाद में कारवाँ इंडिया ने भी इसी तरह का झूठ फैलाया। अपनी रिपोर्ट में द कारवाँ ने आरोप लगाया कि 10 प्रवासी मजदूरों की मौत श्रमिक ट्रेन में भूख से तड़पकर हुई। जिसके कारण द कारवाँ को तथ्यों के साथ फटकार भी लगाई गई।
बता दें, फिलहाल, भारतीय रेलवे का भ्रामक रिपोर्टों पर यही कहना है कि श्रमिक एक्सप्रेस में बीमारियों के कारण लोगों की मौतें हुई हैं। उन्होंने फर्जी और बेबुनियादी खबरें फैलाने वालों के ख़िलाफ़ ट्विटर पर ट्वीट करके खबर दी है।
रेलवे ने स्पष्ट किया कि हर जरूरतमंद पैसेंजर को आपातकाल की स्थिति में आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध करवाई जा रही हैं। मगर, इनमें से खाना और पानी सभी यात्रियों के लिए है।
उल्लेखनीय है कि जब हम इस तरह की घटनाओं को अलग से साझा करते हैं, उस समय गलत धारणा बनना निश्चित होता है। यात्रा के दौरान जन्म और मृत्यु उन लोगों के लिए एक सामान्य घटना है, जो प्रतिदिन भारत में ट्रेनों में सफर करते हैं।
आमतौर पर माना जाता है कि लगभग 1 करोड़ लोग प्रतिदिन लंबी दूरी की यात्रा करते हैं। लंबी दूरी की ट्रेन यात्रा के औसत समय और 7.234% की राष्ट्रीय मृत्यु दर के हिसाब के बाद परंपरागत ढंग से भारत में प्रतिदिन यात्रा के दौरान दो दर्जन से अधिक लोग अंतिम साँस लेते हैं।
जब ऑपइंडिया ने रेल मंत्रालय से अपने इन अनुमानों के बारे में बात की, तो उन्होंने हमारे अनुमानों की पुष्टि की और बताया कि यह सटीक है। उन्होंने कहा कि ऐसी मौतें दुर्भाग्यपूर्ण हैं, लेकिन इस मामले में रेलवे भी बहुत ज्यादा नहीं कर सकता, क्योंकि यह संभावना और जीवन चक्र का मामला है।
इसलिए, हमें ये समझने की जरूरत है कि इस मुश्किल घड़ी में जितना दुखदाई उन मौतों की संख्या है, उतनी ही दुखदाई ये बात भी है कि इन मौतें के नाम पर एजेंडा चलाने के लिए पूरे मामले को स्पिन करके रेलवे पर ‘लापरवाही’ पर आरोप मढ़ा जा रहा है। वास्तविकता ये है कि मृत्यु की जगह किसी की लापरवाही को उजागर नहीं करती, खासकर तब जब एक वर्ग केवल माहौल भड़काने के लिए इस बिंदु पर अपना एजेंडा चला रहा है।
नोट: ऑपइंडिया अंग्रेजी की संपादक नुपुर शर्मा का यह मूल लेख अंग्रेजी में यहॉं पढ़ा जा सकता है।