विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ रिलीज होने के बाद से कश्मीरी हिंदू आगे आकर बता रहे हैं कि असल में उनके साथ हुआ क्या था। उनकी आपबीती न केवल इस्लामी कट्टरपंथ को उजागर करती है, बल्कि उस समय के सियासी किरदार कैसी भूमिका निभा रहे थे यह भी पता चलता है। ऐसे ही एक कश्मीरी पंडित विजय माम ने जो कुछ बताया है उससे पता चलता है कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के एक जलसे के बाद से कश्मीर के हालात हिंदुओं के लिए बदतर होते चले गए।
माम 74 साल के हैं। कभी कश्मीर में सरकारी रेडियो के लिए काम करते थे। लेकिन, इस्लामिक कट्टरपंथ ने उन्हें भी अपना घर छोड़ घाटी से भागने को मजबूर किया। वे दो बेटियों के साथ दिल्ली आ गए थे, जिनकी अब शादी हो चुकी है। नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार आपबीती सुनाते हुए माम का दर्द ऑंसू बनकर छलक उठा। उन्होंने कहा, “क्या कहें? किससे गिला करें? क्यों करें? अब तक मेरा बेटा विक्रम नहीं मिला। कुछ पता नहीं चला। उस रात घर से बाहर निकला, फिर वापस नहीं आया।” उन्होंने आगे बताया, “आज मेरा बेटा होता, तो हमारा सहारा होता। मेरा घर ब्लास्ट में जला दिया गया। हमने बेटा खो दिया। दो बेटियों को लेकर दिल्ली आ गए। अब दोनों की शादी हो गई है।”
माम के अनुसार कश्मीरी पंडितों पर हमला 1986 में ही शुरू हो गया। 1989 में यह लूट और कत्लेआम तक पहुँच गया। उसके बाद क्या हुआ यह हम सब जानते हैं। बुजुर्ग माम बताते हैं कि जब कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाना शुरू किया गया, उस समय गुल मोहम्मद शाह की सरकार थी। इसी दौरान राजीव गाँधी और फारूक अब्दुल्ला ने इकबाल पार्क में एक जलसा किया। इसके बाद से हालात बदतर हो गए। आतंकी खुलकर बाहर निकल आए। दुकानों के आगे भड़काऊ संदेश वाले काले रंग के बोर्ड लगा दिए गए। लोगों से नमाज पढ़ने को कहा जाने लगा।
गौरतलब है कि इसी तरह पिछले दिनों एक टीवी शो के दौरान कश्मीरी हिंदू महिला सरला ने 1990 के उस भयावह मंजर को साझा किया था। उन्होंने बताया था कि किस तरह से इस्लामिक आतंकियों ने उनके रिश्तेदारों के साथ क्रूरता की। सरला ने बताया था कि उनका परिवार जान बचाने के लिए पहले अप्रैल को ही कश्मीर छोड़कर चला गया था। घाटी के घर में ही उन्होंने अपना सारा सामान छोड़ दिया। उन्होंने कहा कि 10 दिन के बाद 10 अप्रैल को वो अपने पति के साथ अपना सामान लाने के लिए कश्मीर गईं, जो उनके जीवन की सबसे भयानक रात थी। वो कहती हैं कि एक बार जब वो कश्मीर पहुँचीं तो उन्हें कई तरह की धमकियाँ दी गईं।
सरला ने सिसकते हुए बताया था, “हमारे पैरों में चप्पल नहीं थी, हमने कुछ भी नहीं खाया था और हम किसी तरह वहाँ से निकल गए… मैं जब तक मैं जिंदा हूँ उस रात को कभी नहीं भूलूँगी।” उन्होंने आगे बताया था, “10 दिन बाद हमें न्यूज से पता चला कि मेरे मामा जिंदलाल कौल और चचेरी बहन के पति जगन्नाथ की हत्या कर दी गई है। उन्होंने उन्हें इतनी भयानक मौत दी थी कि आज भी उस घटना को याद करते हैं तो हमारी रीढ़ तक खौफ से सिकुड़ जाती है। उन लोगों ने उन्हें पहले एक पेड़ से लटकाया और फिर शरीर के कुछ हिस्सों को काट दिया। फिर उनकी दोनों आँखें निकाल ली। उसके बाद उसके ऊपर चश्मा पहना दिया। वे 75 वर्ष के थे। वो ऐसा व्यक्ति था हमेशा दूसरों की मदद करता था।”