महिलाओं के जेवर-गहनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला देते हुए कहा है कि महिला का स्त्रीधन उसकी पूर्ण संपत्ति है, उसमें किसी को हिस्सेदारी देने की मजबूरी नहीं है। महिला अपनी मर्जी से उस स्त्रीधन को खर्च कर सकती है, वो ही उसकी पूरी तरह से मालकिन है। ससुराल के लोग उस स्त्रीधन में से कुछ भी नहीं पा सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही ये भी कहा कि संकट के समय अगर पत्नी चाहे, तो पति इस स्त्री धन का इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन उस स्त्री धन को लौटाने की जिम्मेदारी भी पति की होगी। वो उसे लेकर भूल नहीं सकता। ये पति का नैतिक दायित्व होगा कि वो पत्नी के स्त्रीधन को लौटाए या उसके बराबर मूल्य चुकाए। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति को उसकी पत्नी के 25 लाख के स्त्रीधन को लौटाने का आदेश भी दिया।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए पति को अपनी पत्नी के सभी आभूषण छीनने के लिए 25 लाख रुपये की आर्थिक क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया। महिला अब 50 वर्ष की है। सुप्रीम कोर्ट ने जीवन-यापन की लागत में वृद्धि और समता एवं न्याय के हित को ध्यान में रखते हुए महिला को क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के 5 अप्रैल, 2022 के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें तलाक मंजूर करते हुए पति और सास से सोने के मूल्य के रूप में 8.9 लाख रुपये वसूलने के फैमिली कोर्ट के 2011 के आदेश को रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के तर्क को नकार दिया कि एक नवविवाहित महिला को पहली रात ही सारे सोने के आभूषणों से वंचित कर दिया जाना विश्वसनीय नहीं है।
ये था पूरा मामला
महिला ने आरोप लगाया कि उसके गहने शादी के पहले ही दिन उसके पति ने ले लिए थे और रिश्ते में खटास आने के बाद और उनके अलग होने के फैसले के बाद उसने अपनी संपत्ति वापस पाने के लिए पारिवारिक अदालत का दरवाजा खटखटाया। 2009 में पारिवारिक अदालत ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया और उसके पति को उसे 8.9 लाख रुपये देने का आदेश दिया, लेकिन केरल हाईकोर्ट ने आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि पत्नी यह साबित करने में असफल रही है कि उसका ‘स्त्रीधन’ उसके पति ने लिया था।