मदरसा शिक्षा प्रणाली के खिलाफ राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) द्वारा अपनाए गए रुख को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (22 अक्टूबर) को सवाल उठाया। शीर्ष न्यायालय ने NCPCR से पूछा कि क्या उसने अन्य धर्मों के ऐसी ही संस्थानों के खिलाफ यही रुख अपनाया है। वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार ने उच्चतम न्यायालय में कहा कि मदरसा शिक्षा बोर्ड खत्म नहीं करना चाहिए था।
मामले की सुनवाई भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की बेंच ने की। ऐसे अन्य संस्थान भी हैं, जहाँ अन्य धर्मों के बच्चे को धार्मिक शिक्षा और पुरोहित का प्रशिक्षण दिए जाते हैं। इसकी ओर इशारा करते हुए कोर्ट ने पूछा, “NCPCR को केवल मदरसों की ही चिंता क्यों है। क्या वह सभी समुदाय के साथ समान व्यवहार करता है।”
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति पारदीवाला ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा, “क्या NCPCR ने मदरसा पाठ्यक्रम का अध्ययन किया है? क्या उस पाठ्यक्रम में धार्मिक शिक्षा के बारे में बात की गई है? धार्मिक शिक्षा क्या है? आपने क्या समझा है? ऐसा लगता है कि आप सभी ‘धार्मिक निर्देश’ शब्द से मंत्रमुग्ध हैं और इसीलिए आप इससे बाहर नहीं निकल पा रहे हैं।”
इसी दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा, “क्या एनसीपीसीआर ने अन्य समुदायों में धार्मिक शिक्षाओं पर प्रतिबंध लगाया है?” उन्होंने आगे कहा, “NCPCR इस तथ्य से अवगत है कि पूरे भारत में छोटे बच्चों को उनके समुदाय की संस्थाओं द्वारा धार्मिक शिक्षा दी जाती है। क्या NCPCR ने उन सभी पर यही रुख अपनाया कि यह मौलिक संवैधानिक मूल्यों के विपरीत है?”
जब NCPCR ने जवाब दिया कि ,धार्मिक शिक्षा को अनिवार्य शिक्षा के रूप में प्रतिस्थापित नहीं किया जाना चाहिए’, इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने फिर पूछा, “हमें बताएँ कि क्या NCPCR ने पूरे देश में कोई निर्देश जारी किया है कि बच्चों को मठों, पाठशालाओं में न भेजा जाए… या क्या उसने कोई निर्देश जारी किया है कि जो बच्चे इन संस्थानों में जाते हैं, उन्हें विज्ञान, गणित आदि अवश्य पढ़ाया जाना चाहिए?”
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की यह बेंच इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक अपील पर सुनवाई कर रही थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को असंवैधानिक करार दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। वहीं, यूपी सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर आपत्ति जताई।
सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार ने कहा कि उन प्रावधानों को खत्म किया जाना चाहिए, जो उल्लंघनकारी हों। यूपी सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराजन ने कहा कि राज्य सरकार ‘उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004’ को खत्म करने के पक्ष में नहीं है। पूरे मदरसा अधिनियम को खत्म नहीं करना चाहिए था।
इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए NCPCR ने एक रिपोर्ट दायर की है, जिसमें मदरसा प्रणाली पर विभिन्न आपत्तियाँ उठाई गई हैं। जिसमें कहा गया है कि मानक शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) के अनुरूप नहीं हैं। बता दें कि हाई कोर्ट द्वारा मदरसा बोर्ड खत्म करने के बाद 13,364 मदरसों में पढ़ाई कर रहे 12 लाख बच्चों को राज्य मान्यता प्राप्त बोर्ड में भर्ती करने का आदेश दिया था। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी।