सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे हिन्दू व्यक्ति को नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के प्रावधानों का फायदा दिया है, जिसकी पश्चिम बंगाल सरकार ने नौकरी छीन ली थी। पीड़ित शख्स वर्ष 1969 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से अपने पिता के साथ भाग कर भारत आया था। उसकी नौकरी रिटायरमेंट से 2 महीने पहले छीनी गई थी। पश्चिम बंगाल सरकार का कहना था कि उस शख्स की भारतीय नागरिकता पर गहरा शक है। सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल की सरकार को आदेश दिया है कि उसकी नौकरी से जो भी फायदे उसे मिलने थे, उसे तुरंत दिए जाएँ।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उस व्यक्ति की नौकरी बिना कारण बताए छीनने का पश्चिम बंगाल सरकार को कोई अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपनाई गई प्रक्रिया पर भी प्रश्न खड़े किए हैं। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि पीड़ित व्यक्ति को बिना कोई मौका दिए ही मात्र एक पुलिसिया रिपोर्ट के आधार पर उसकी नौकरी छीन ली गई, जो कि कानूनन ठीक नहीं हैं। यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आर महादेवन और जस्टिस जेके माहेश्वरी की बेंच ने दिया है।
क्या था मामला?
यह पूरा मामला हरिनंद दत्ता की तरफ से दायर किया गया था। दत्ता ने बताया कि 1969 में वह अपने पिता के साथ पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से भारत आए थे। उस दौरान पूर्वी पाकिस्तान में फ़ौज बंगालियों और विशेषकर हिन्दुओं पर अत्याचार कर रही थी। दत्ता ने बताया कि भारत आने पर उनके पिता को एक प्रवासी प्रमाण पत्र मिला था, जिसमें उनका भी नाम था। इसके बाद उनका वोटर आईडी कार्ड, राशन कार्ड और बाकी कागज भी बने।
इसके बाद उन्होंने कलकत्ता में अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी की और 1985 में उन्हें स्वास्थ्य विभाग में नौकरी मिल गई। वह यह नौकरी लगातार करते रहे। उनको इस नौकरी के साथ ही वेतन भत्ते और बाकी सुविधाएँ भी मिलती रहीं। हालाँकि, 2010 में उनके रिटायरमेंट से मात्र 2 महीने पहले ही उनके विभाग को भेजी गई एक पुलिसिया रिपोर्ट के आधार पर उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। पुलिस की रिपोर्ट में उन्हें नौकरी के लिए ‘अनुपयुक्त’ करार दिया गया था। यह पुलिस रिपोर्ट उनकी नागरिकता सम्बन्धी जाँच के बाद दी गई थी।
हरिनंद दत्ता को ना ही यह पुलिस रिपोर्ट दी गई और ना ही उन्हें उनके अपने स्वास्थ्य विभाग ने अपनी सफाई पेश करने का मौक़ा दिया। इस फैसले के खिलाफ वह सेवा ट्रिब्यूनल चले गए जहाँ उन्हें राहत मिली लेकिन कलकत्ता हाई कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए उनको नौकरी से निकाले जाने को सही ठहराया। वह इसके बाद सुप्रीम कोर्ट पहुँच गए जहाँ उन्होंने अपने नागरिकता संबधी कागज रखे और विभाग का फैसला पलटने की माँग की। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट ने यह भी बताया उनके दादा भी भारत के ही निवासी थे, ऐसे में वह भारत के नागरिक हुए।
पश्चिम बंगाल की सरकार क्या बोली?
सुप्रीम कोर्ट में पश्चिम बंगाल की सरकार ने कहा कि भले ही हरिनंद दत्ता ने पैन कार्ड, वोटर आईडी कार्ड, आधार कार्ड और बाकी कागज रखे हैं लेकिन इससे उनकी नागरिकता प्रमाणित नहीं होती। पश्चिम बंगाल सरकार ने कहा कि उनका पुलिस सत्यापन करने में 25 वर्ष की देरी उनकी नौकरी ना खत्म करने का आधार नहीं मानी जा सकती। पश्चिम बंगाल सरकार ने यह सब कारण देते हुए कहा कि उनकी नौकरी का पुलिस की रिपोर्ट के बाद खत्म किया जाना सही था।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में याचिकाकर्ता हरिनंद दत्ता की दलीलों को सही पाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दत्ता के दादाजी भी भारत के नागरिक थे। ऐसे में उसके पिता भी नागरिक माने जाएँगे। इसके अलावा वह भारत में नागरिकता के लिए आवेदन करने से पहले 7 वर्ष तक रह चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसके अलावा 2020 से लागू हुआ CAA कानून भी उनका पक्ष लेता है और वह अवैध प्रवासी नहीं माने जा सकते। कोर्ट ने कहा कि दत्ता ने आवेदन दे दिया था लेकिन उस पर कोई निर्णय नहीं हुआ, ऐसे में पूरा मामला दत्ता के पक्ष में है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर भी प्रश्न उठाए कि आखिर उनको भेजी गई नोटिस में कोई कारण क्यों नहीं बताया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका भी नहीं दिया गया जिससे पता नहीं चलता कि आखिर किस आधार पर उन्हें नौकरी से निकालने का फैसला लिया गया। कोर्ट ने कहा कि हरिनंद दत्ता को नौकरी से निकालने का आदेश अवैध, कानून के खिलाफ और न्याय के खिलाफ है, ऐसे में इसे लागू नहीं रखा जा सकता। कोर्ट ने आदेश दिया है कि सरकार उन्हें नियमानुसार अब पेंशन समेत बाकी फायदे दे।