सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस संजय करोल ने शनिवार (19 अक्टूबर 2024) को एक ऐसी महिला की दर्दनाक कहानी का खुलासा किया, जिसे अपने मासिक धर्म के दौरान घर से बाहर रहना पड़ता है। जज ने साल 2023 में खींची गई एक तस्वीर भी दिखाई, जिसमें महिला को एक टेंट के नीचे रहते हुए दिखाया गया है।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश करोल ने कहा, “यह तस्वीर मैंने एक सुदूर गाँव में ली थी। यह तस्वीर एक महिला की है, जिसे उन पाँच दिनों के लिए अपने घर में प्रवेश करने की मनाही कर दी गई थी, जब वह शारीरिक परिवर्तन से गुज़र रही होती है। यह वह भारत है, जिसमें हम रह रहे हैं। हमें इन लोगों तक पहुँचना होगा।”
दरअसल, न्यायाधीश संजय करोल ने यह बात इंटरनेशनल सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड (SCAORA) लीगल कॉन्फ्रेंस में कही। हालाँकि, जज ने यह नहीं बताया कि यह तस्वीर कहाँ ली गई थी। घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने बिहार और त्रिपुरा के दूरदराज के इलाकों का जिक्र किया, जहाँ अभी तक अदालती व्यवस्था नहीं पहुँच पाई है।
सामाजिक न्याय और महिला अधिकारों के संदर्भ में बोलते हुए न्यायाधीश ने कहा कि ये उदाहरण ऐसे लोगों के हैं, जिनकी न्याय तक पहुँच थी, जो मुख्य रूप से शिक्षित थे और महानगरों में रहते थे। न्याय प्रणाली के ‘महानगर-केंद्रित’ दृष्टिकोण की ओर इशारा करते हुए जज ने कहा, “भारत दिल्ली नहीं है। भारत बॉम्बे नहीं है। हम भारत के संविधान के रक्षक और संरक्षक हैं।”
जस्टिस संजय करोल ने कहा, “हम लोगों को उन लोगों तक पहुँचने में एक प्रमुख भूमिका निभानी है, जिनके पास न्याय तक पहुँच नहीं है या जो वास्तव में नहीं जानते कि न्याय क्या है। क्या आपने कभी भारत के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लाखों लोगों के बारे में सोचा है? क्या आपने उनकी भाषा बोली है? क्या आप उन तक पहुँचे हैं? क्या आप उन्हें समझ पाए हैं?”
न्यायाधीश ने कहा कि सामाजिक और आर्थिक न्याय एक दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं और एक दूसरे पर निर्भर हैं। उन्होंने कहा, “असमानता केवल संसाधनों की कमी नहीं है, बल्कि दूसरों के सापेक्ष अभाव का एक गहरा अनुभव है।” उन्होंने संविधान को एक जीवंत दस्तावेज बताया और कहा कि यह सामाजिक और आर्थिक न्याय दोनों को आगे बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में कार्य करता है।