कर्नाटक के शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को लेकर सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (8 सितंबर 2022) को कहा कि हिजाब की तुलना और सिख की पगड़ी एवं कृपाण से नहीं की जा सकती। कोर्ट ने कहा कि सिखों को संविधान में अनुमति दी गई है।
जस्टिस हेमंत गुप्ता की अगुवाई वाली सर्वोच्च न्यायालय की बेंच ने कहा कि इस्लाम से सिख की और हिजाब से सिख धर्म की प्रथाओं की तुलना करना बहुत उचित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सिख धर्म के ‘फाइव के’ – केश, कड़ा, कच्छा, कृपाण और कंघा का जिक्र किया।
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 25 का हवाला देते हुए कहा कि यह सिखों द्वारा कृपाण ले जाने की अनुमति देता है। इसलिए इन प्रथाओं की तुलना न करें, क्योंकि उन्हें 100 साल से भी पहले ही मान्यता दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने उसे मान्यता दी है।
जस्टिस गुप्ता ने कहा, “पगड़ी आवश्यकता है। इस अदालत की पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि सिखों के लिए पगड़ी पहनना और कृपाण रखना आवश्यक है। इसलिए हम कह रहे हैं कि सिख के साथ तुलना उचित नहीं हो सकती है। सिखों के 5K को अनिवार्य माना गया है।”
इस पर याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील निज़ाम पाशा ने तर्क दिया कि मुस्लिम महिलाओं के लिए हिजाब के मामले में भी ऐसा ही है। उन्होंने कहा, “सिखों के लिए 5K की तरह ही इस्लाम के भी 5 स्तंभ हैं।” निजाम पाशा ने हज, नमाज-रोज़ा, ज़कात, तौहीद और हिजाब को इस्लाम के पाँच बुनियादी स्तंभ बताया।
इस पर जस्टिस गुप्ता ने कहा, “कृपया सिख धर्म से तुलना न करें। यह पूरी तरह से भारतीय संस्कृति में रच-बस चुका है।” उन्होंने कहा कि 500 सालों से सिखों की ये पहचान भारतीय संस्कृति में समाहित हो चुकी है। इस पर पाशा ने कहा, “इसी तरह इस्लाम भी 1400 साल से है और हिजाब भी है।”