केंद्र सरकार की अयोध्या में विवादित ज़मीन छोड़कर बाकी बची ज़मीन मालिकों को वापस लौटाने वाली याचिका पर सुनावाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा है कि इस मामले में आप अपनी बात संविधान पीठ के पास रखें।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा, ”आपको जो कहना है, मुख्य मामले की सुनवाई करने वाली संविधान पीठ से कहें।” चीफ़ जस्टिस और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने इस मुद्दे को लेकर नई याचिका को मुख्य याचिका के साथ ही संलग्न करने का आदेश दिया है।
अयोध्या में 67.7 एकड़ जमीन अधिग्रहण के लिए 1993 में बने कानून को गलत ठहराने, 0.313 एकड़ विवादित ज़मीन को छोड़कर बाकी मूल मालिकों को लौटाने की मांग कर रहे याचिकाकर्ता से चीफ जस्टिस ने कहा- आपको जो कहना है, मुख्य मामले की सुनवाई करने वाली संविधान पीठ से कहें
— Nipun Sehgal (@Sehgal_Nipun) February 15, 2019
क्या है ज़मीन अधिग्रहण से जुड़ा मामला?
बता दें कि 1993 में केंद्र सरकार ने अयोध्या अधिग्रहण एक्ट के तहत मंदिर और उसके आसपास की ज़मीन का अधिग्रहण कर लिया था। इसके बाद उस ज़मीन को लेकर दायर की गई सारी याचिकाओं को भी ख़त्म कर दिया गया था। इस एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दायर की, इसके अनुसार 0.3 एकड़ के ‘विवादित’ क्षेत्र के अलावा बाक़ी के 67 एकड़ की भूमि को उनके मालिकों को लौटाया जा सकेगा। इसी 67 एकड़ के लिए केंद्र सरकार ने कोर्ट में अर्ज़ी दाख़िल की गई। अगर कोर्ट ने केंद्र सरकार के पक्ष में फ़ैसला दिया तो यह ज़मीन राम जन्मभूमि न्यास सहित सभी संबंधित पक्षों को लौटाई जाएगी।
बता दें कि इन 67 एकड़ में से लगभग 42 एकड़ भूमि राम जन्मभूमि न्यास की है। अदालत ने 1994 में कहा था कि जिसके पक्ष में निर्णय आएगा, उसे ही ज़मीन दी जाएगी। अदालत ने केंद्र सरकार को इस ज़मीन को ‘कस्टोडियन’ की तरह रखने को कहा था।
भूरे बनाम भारत सरकार मामले में ज़मीन पर यथास्थिति बरक़रार
2003 में सुप्रीम कोर्ट ने असलम भूरे बनाम भारत सरकार मामले में फै़सला देते समय यह माना था कि पूरी ज़मीन पर यथास्थिति बरक़रार रखना जरूरी है, क्योंकि फै़सला आने पर जिसके भी पक्ष में ज़मीन आए, उसे उस जगह तक पहुँचने में कोई दिक्कत न आए।
कोर्ट का तर्क था कि अगर ज़मीन दे दी जाती है, तो निर्माण कार्य हो सकता है और फै़सले के बाद जिस भी पक्ष को ज़मीन मिलेगी उसे उक्त स्थान तक पहुँचने में दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। अब मामले पर सरकार का कहना है कि फ़ैसला आने के इंतजार में बाक़ी ज़मीन का पड़ा रहना सही नहीं है। उसे उसके मालिकों को लौटा देना चाहिए। सरकार ने कहा है कि विवादित ज़मीन तक आने-जाने का रास्ता देने के लिए जगह छोड़ने को हम तैयार हैं।