14 साल की रेप सर्वाइवर को सुप्रीम कोर्ट ने 7 महीने (30 हफ्ते) का गर्भ गिराने की इजाजत दे दी है। सुप्रीम कोर्ट में भारत के मुख्य न्यायाधीस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने इस मामले पर अपना फैसला दिया। इस दौरान उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को खारिज किया जिसमें गर्भपात कराने पर कोई आदेश देने से मना किया गया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 142 के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करके बच्ची को एबॉर्शन करा लेने की मंजूरी दी। फैसले में कहा गया कि गर्भपात में देरी बच्चे के लिए कठिनाई से भरा है। उन्होंने कहा कि ये बहुत ही असाधारण स्थिति है जहाँ बच्चों को प्रोटेक्ट करने के लिए ऐसे फैसले लिए जाते हैं।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा फैसला देने से पहले 19 अप्रैल 2024 को नाबालिग बच्ची के मेडिकल टेस्ट का आदेश दिया था। कोर्ट ने मुंबई के सायन स्थित लोकमान्य तिलक मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (LTMGH) से कहा था कि वो इस बात पर रिपोर्ट दें कि अगर पीड़िता मेडिकल प्रोसिजर से एबॉर्शन कराती है या उसे ऐसा न करने की सलाह दी जाती है तो इसका उसकी शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्थिति पर क्या असर पड़ने की संभावना है।
कोर्ट के आदेश के बाद बच्ची का मेडिकल टेस्ट हुआ और अस्पताल की ओर से स्पष्ट राय दी गई कि गर्भावस्था जारी रहने से नाबालिग की शारीरिक और मानसिक स्थिति पर असर पड़ सकता है। रिपोर्ट देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला दिया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि मेडिकल बोर्ड ने राय दी है कि बच्चे को जन्म देने के मुकाबले गर्भपात करने में जोखिम कम है। इसलिए सायन अस्पताल के डीन से नाबालिग के चिकित्सीय गर्भपात करने का अनुरोध किया जाता है।
गौरतलब है कि एक यौन उत्पीड़न पीड़िता के गर्भपात के लिए सुप्रीम कोर्ट से इसलिए फैसला आया है क्योंकि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी के अनुसार, गर्भावस्था को समाप्त करने की मैक्सीमम लिमिट 24 सप्ताह है। ये सीमा विवाहित महिलाओं के साथ-साथ विशेष श्रेणियों की महिला के लिए तय की गई है। इनमें रेप पीड़िता, कमजोर महिलाएँ और विकलांग महिलाएँ शामिल आती हैं।।