सुप्रीम कोर्ट ने 6 माह की गर्भवती एक महिला के गर्भपात का आदेश देने से इनकार कर दिया है। यह आदेश सोमवार (16 अक्टूबर, 2023) को प्रधान न्यायाधीश DY चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 3 न्यायाधीशों की पीठ ने दिया। 2 बच्चों की माँ ने खुद को डिप्रेशन में और लैक्टेशनल एमेनोरिया की मरीज बताते हुए इस एबॉर्शन की अनुमति माँगी थी। महिला ने कोर्ट को बताया था कि वो तीसरे बच्चे को जन्म देने की स्थिति में नहीं है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एम्स (AIIMS) की मेडिकल रिपोर्ट के बाद आया है। इस रिपोर्ट में महिला के पेट में पल रहे 26 हफ्ते के भ्रूण को सामान्य बताया गया था। साथ ही यह भी कहा गया था कि महिला द्वारा ली जा रही अपनी बीमारी की दवाओं से गर्भ में पल रहे बच्चे की सेहत पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ा है। ऐसे में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने महिला को गर्भपात की इजाजत देने से मना कर दिया।
गर्भपात की माँग करने वाली महिला के वकील कॉलिन गोन्जाल्विस ने प्रग्नेंसी को एक्सीडेंटल और अनप्लान्ड बताया। उन्होंने महिला के परिवार की आर्थिक स्थिति खराब बताते हुए तीसरे बच्चे का ख़र्च उठाने में अक्षम कहा था। इस दौरान वकील ने अजन्मे बच्चे का कोई अधिकार न होने जैसे तर्क भी दिए। भारत सरकार के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी ने भी गर्भपात की माँग का विरोध किया। डॉक्टरों की रिपोर्ट का हवाला देते हुए भाटी ने कहा कि अबॉर्ट किया गया भ्रूण कभी चीखता है, कभी रोता है।
आर्थिक स्थिति खराब होने की दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से महिला की डिलीवरी का पूरा खर्च उठाने के लिए कहा। साथ ही महिला व उसके परिवार को सलाह दी है कि अगर वो बच्चे को नहीं पाल सकते तो किसी अन्य ज़रूरतमंद को गोद दे दें। किसी अन्य को गोद दिलाने की स्थिति में भी सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को मदद करने का निर्देश दिया है। इस से पहले यही केस 11 अक्टूबर, 2023 को सुप्रीम कोर्ट के ही 2 न्यायाधीशों की अदालत में सुना गया था।
तब जस्टिस हिमा कोहली ने गर्भपात की इजाजत देने से मना करते हुए टिप्पणी की थी, “एक भ्रूण की दिल की धड़कनों को न रोका जाए।” वहीं न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना महिला के फैसले का सम्मान करने पर जोर दे रहे थे। इस बेंच द्वारा खंडित फैसला आने पर केस प्रधान न्यायाधीश की अदालत में भेजा गया था।