सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त की रेवड़ियाँ बाँटे जाने के सम्बन्ध में एक शीर्ष संस्था के गठन की आवश्यकता जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस संस्था में नीति आयोग, RBI, सत्ताधारी एवं विपक्षी पार्टियाँ और अन्य हितधारकों को शामिल किया जाना चाहिए। राजनीतिक दल अक्सर चुनाव प्रचार के दौरान मुफ्त की रेवड़ियाँ बाँटते हैं या फिर ऐसे वादे करते हैं। इसे नियंत्रित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, चुनाव आयोग और वरिष्ठ अधिवक्ता व राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल के अलावा अन्य याचिकाकर्ताओं से एक विशेषज्ञ समिति के गठन को लेकर सुझाव माँगा, जो मुफ्त की रेवड़ियों के सम्बन्ध में सुझाव दे सके। मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मुफ्त की रेवड़ियों के फायदे-नुकसान का अध्ययन करने के लिए एक समिति की आवश्यकता है, क्योंकि अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव पड़ता है।
ये संस्था इसका अध्ययन कर के केंद्र सरकार, सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मुफ्त की बाँटी जाने वाली रेवड़ियाँ आर्थिक आपदा लेकर आएगी। वहीं कपिल सिब्बल की राय है कि इस सम्बन्ध में संसद में बहस के बाद कानून बनाया जाना चाहिए। CJI रमना ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कोई भी राजनीतिक दल इसके विरुद्ध नहीं जाएगा, क्योंकि सभी Freebies बाँटना चाहते हैं।
अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट से ये निर्देश देने की अपील की कि सभी राजनीतिक दलों को चुनाव से पहले सार्वजनिक फंड से मुफ्त की रेवड़ियाँ बाँटने या इसके लिए वादे करने से रोका जाए। उन्होंने ऐसी पार्टियों का पंजीकरण रद्द कर के उनका चुनाव चिह्न वापस लिए जाने के निर्देश देने की माँग की। इस साल जनवरी में ही सुप्रीम कोर्ट ने इस पर नोटिस जारी करते हुए कहा था कि मुफ्त की रेवड़ियों के बदले वोट जुटाना एक गंभीर मुद्दा है।
CJI: These are all policy matters. let everyone participate in the debate. We'll say FC, political parties, opp party, all of them can be members of this group. Let them have a debate and let them interact. let them give their suggestions and submit their report.
— Live Law (@LiveLawIndia) August 3, 2022
केंद्र सरकार का भी मानना है कि इसके विपरीत परिणाम आते हैं। SG ने अश्विनी उपाध्याय की याचिका का समर्थन करते हुए ECI को इस पर नजर डालने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि ये वैसा ही है, जैसे उनके दाहिने वाले पॉकेट में कुछ डाला जा रहा हो और फिर बाएँ पॉकेट से निकाल लिया जा रहा हो। उपाध्याय ने याचिका में उदाहरण दिया कि कैसे AAP ने महिलाओं को 1000 रुपए के मासिक भत्ते का लालच दिया था, अकाली दल ने 2000 रुपए देने का वादा किया था और कॉन्ग्रेस ने यूपी में छात्राओं को स्कूटी का लालच दिया।