महाराष्ट्र में शिक्षण संस्थानों में दाखिले और नौकरियों में मराठा आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। शीर्ष अदालत की बेंच ने कहा कि फिलहाल इसे मंजूरी नहीं दी जा सकती है। इस मामले पर बड़ी बेंच की ओर से फैसला लिया जाएगा, जिसका गठन मुख्य न्यायाधीश की ओर से होगा। अदालत ने यह भी साफ किया है कि इस आदेश का असर पोस्ट ग्रैजुएट मेडिकल कोर्सेज के दाखिलों पर नहीं होगा, जो पहले ही हो चुके हैं।
मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस एलएन राव न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट्ट की पीठ ने कहा कि इस फैसले से अब तक इस कोटे का लाभ ले चुके लोगों के स्टेटस पर कोई असर नहीं होगा। कोर्ट के इस आदेश से उन लोगों को राहत मिली है, जिन्हें बीते करीब दो सालों में अब तक इस कोटे का लाभ मिला था।
कोर्ट के इस फैसले से मौजूदा शैक्षणिक सत्र में छात्रों को कोटे का फायदा नहीं मिल पाएगा। बेंच ने कहा है कि फिलहाल इस पर रोक लगाई जाती है और संवैधानिक बेंच की ओर से इसकी वैधता पर फैसला लिया जाएगा। इस पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबडे फैसला लेंगे।
बंबई उच्च न्यायालय ने पिछले साल जून में इस कानून को वैध ठहराते हुए कहा था कि 16 प्रतिशत आरक्षण न्यायोचित नहीं है और इसकी जगह रोजगार में 12 और प्रवेश के मामलों में 13 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं होना चाहिए। शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश और इस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर यह आदेश पारित किया।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में बॉम्बे उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका में कहा गया है कि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (SEBC) अधिनियम, 2018, जो शिक्षा और नौकरियों में मराठा समुदाय को 12% और 13% कोटा प्रदान करता है, इंदिरा साहनी मामले में निर्धारित सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। इसके अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 फीसदी तय कर दी थी।
गौरतलब है कि 27 जून, 2019 को, बॉम्बे हाई कोर्ट की एक पीठ ने अधिनियम की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा और राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशों के आधार पर महाराष्ट्र राज्य को 16 प्रतिशत आरक्षण को घटाकर 12-13 फीसदी करने का निर्देश दिया। इसने आगे उल्लेख किया कि इंदिरा साहनी के मामले के अनुसार, विशेष परिस्थितियों में राज्य सरकार 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण दे सकती है।