Sunday, November 17, 2024
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सुप्रीम कोर्ट ने भी माना दो विधान नहीं चलेगा, कहा- 1947 से पूरे देश में एक ही संविधान: जानिए 370 पर सुनवाई के दौरान क्या हुआ

सीनियर एडवोकेट जफर शाह ने जिरह आगे बढ़ाई। उन्होंने कहा कि आर्टिकल 370 को समझने के लिए अलग-अलग नजरिए हैं। जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने जब भारत के साथ संधि की तो उन्होंने रक्षा, संचार और विदेश मामलों के अलावा बाकी शक्तियाँ अपने पास रखीं। इसमें संप्रभुता की शक्ति यानी कानून बनाने की शक्ति भी शामिल है।

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में बुधवार (9 अगस्त 2023) को चौथे दिन जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 को चुनौती देने वाली 23 याचिकाओं पर सुनवाई हुई। इस दौरान 4 घंटे 40 मिनट तक चली जिरह के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के एडवोकेट्स से कई अहम सवाल किए।

कोर्ट ने एक याचिकाकर्ता के एडवोकेट से कहा कि साल 1947 में जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय हुआ था, तभी से पूरे देश में एक ही संविधान लागू है। इस पर याचिकाकर्ता की तरफ से पेश सीनियर एडवोकेट गोपाल सुब्रमण्यम ने दलील दी कि इसे जम्मू-कश्मीर के लोगों की इच्छा के बगैर खत्‍म नहीं किया जा सकता।

इस पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) चंद्रचूड़ ने कहा, “हमें ध्यान देना चाहिए कि भारतीय संविधान जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा की बात करता है, लेकिन यह जम्मू और कश्मीर के संविधान का बिल्कुल भी जिक्र नहीं करता है।”

दरअसल, इस मामले में याचिकाकर्ता एम इकबाल खान की तरफ से जिरह कर रहे सीनियर एडवोकेट गोपाल सुब्रमण्यम ने कोर्ट में दलील दी कि भारत में विलय के वक्त जम्मू-कश्मीर किसी अन्य राज्य जैसा नहीं था। उसका खुद का संविधान था। देश के संविधान में विधानसभा और संविधान सभा दोनों को मान्यता प्राप्त है।

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, सुब्रमण्यम ने कहा कि मूल ढाँचा दोनों के संविधान से निकाला जाएगा। डॉक्टर अंबेडकर ने संविधान के संघीय होने और राज्यों को विशेष अधिकार की बात कही थी। आर्टिकल 370 के खंड 1 के तहत शक्ति का उद्देश्य आपसी समझ पर आधारित है।

उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर और भारत के बीच यह व्यवस्था संघवाद का एक समझौता थी। संघवाद एक अलग तरह का सामाजिक अनुबंध है। 370 इस संबंध का ही एक उदाहरण है। इस संघीय सिद्धांत को अनुच्छेद 370 के अंतर्गत ही पढ़ा जाना चाहिए। इसे निरस्त नहीं किया जा सकता है। धारा 370 संविधान के प्रावधानों का क्रियान्वयन है।

इस दौरान एडवोकेट सुब्रमण्यम ने पूछा क्या जम्मू-कश्मीर संविधान सभा को संविधान बनाने का काम नहीं सौंपा गया था? इस पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि 1957 के बाद न तो जम्मू-कश्मीर की विधानसभा और न ही देश की संसद ने जम्मू-कश्मीर संविधान को साफ तौर से भारतीय संविधान के दायरे में लाने के लिए देश के संविधान में संशोधन करने के बारे में कभी सोचा।

इस पर सुब्रमण्यम ने दलील दी कि जम्मू-कश्मीर का संविधान जम्मू-कश्मीर के लिए है। यह एक संविधान है क्योंकि इसे एक संविधान सभा ने बनाया था। उन्होंने ये भी कहा कि
जम्मू-कश्मीर संविधान में संशोधन करने की शक्ति केवल उस निकाय के पास हो सकती है जिसे संविधान सभा ने बनाया हो। यही नियम है।

एनबीटी की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा, “मैं इस बात पर विचार करने का आग्रह करता हूँ कि विधानसभा और संविधान सभा, दोनों को हमारे संविधान में मान्यता प्राप्त है। मूल संरचना दोनों संविधानों से ली जाएगी।”

‘जो अपनाया गया वह भारतीय संविधान था’

इस पर जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा, “जब हमने 1954 के आदेश के पहले भाग को पढ़ा तो यह साफ हो गया कि जम्मू-कश्मीर में भारतीय संविधान को अपवादों और संशोधनों के साथ अपनाया गया था। आप इसे जम्मू-कश्मीर का संविधान कह सकते हैं, लेकिन जो अपनाया गया वह भारतीय संविधान था।”

जस्टिस खन्ना ने आगे कहा कि आर्टिकल 370 बहुत लचीला है। आम तौर पर संविधान वक्त और जगह के साथ लचीले होते हैं क्योंकि वे एक बार बनते हैं, लेकिन लंबे वक्त तक बने रहते हैं।

उन्होंने कहा कि यदि 370 को देखें तो यह कहता है कि इसमें संशोधन किया जा सकता है। जम्मू-कश्मीर पर लागू होने वाले भारत के संविधान में जो कुछ भी हो रहा है, उसे आत्मसात कर लिया जाए। इस पर एडवोकेट सुब्रमण्यम ने दलील दी कि 370 की एकतरफा व्याख्या करना संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप नहीं होगा।

आर्टिकल 370 जम्मू-कश्मीर और भारत के बीच खास रिश्ता

इसके बाद याचिकाकर्ताओं की तरफ से सीनियर एडवोकेट जफर शाह ने जिरह आगे बढ़ाई। उन्होंने कहा कि आर्टिकल 370 को समझने के लिए अलग-अलग नजरिए हैं। जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने जब भारत के साथ संधि की तो उन्होंने रक्षा, संचार और विदेश मामलों के अलावा बाकी शक्तियाँ अपने पास रखीं। इसमें संप्रभुता की शक्ति यानी कानून बनाने की शक्ति भी शामिल है। वह दो देशों के बीच संधि थी।

एडवोकेट शाह ने आगे कहा कि महाराजा चाहते तो जम्मू-कश्मीर का भारत में पूरी तरह विलय कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। आर्टिकल 370 जम्मू-कश्मीर और भारत के बीच खास रिश्ता है। इस दौरान सीजेआई ने गुरुवार 11 अगस्त को आगे सुनवाई की बात कही। इससे पहले 2, 3 और 8 अगस्त को याचिकाओं पर सुनवाई हुई थी। इन तीनों दिन एडवोकेट कपिल सिब्बल ने याचिकाकर्ताओं की तरफ से जिरह की थी।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने 8 अगस्त को हुई सुनवाई में कहा था कि आर्टिकल 370 खुद कहता है कि इसे खत्म किया जा सकता है। इस पर सिब्बल ने जवाब दिया था कि ‘370 में आप बदलाव नहीं कर सकते, इसे हटाना तो भूल ही जाइए’। एक विधानसभा को संविधान सभा में तब्दील नहीं किया जा सकता। इसके जवाब में सीजेआई ने कहा कि आप सही हैं, इसलिए सरकार के पास खुद 370 में बदलाव करने की कोई पावर नहीं है।

क्या है पूरा मामला?

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ अक्टूबर 2020 से आर्टिकल 370 खत्म करने के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाली 23 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। दरअसल, केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा दिया था।

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 को चुनौती देते हुए आईएएस शाह फैसल सहित दो दर्जन राजनीतिक दलों, निजी लोगों, वकीलों, कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में सरकार के फैसले के खिलाफ याचिकाएँ दायर की हैं। मार्च 2020 में 5 जजों की संविधान पीठ ने केंद्र के फैसले को संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को 7 न्यायाधीशों की बड़ी पीठ के पास भेजने से इनकार कर दिया था।

इस मामले में 14 दिसंबर 2022 को सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने एक बार फिर 5 जजों की पीठ बनाकर सुनवाई की बात कही थी। इसके बाद 11 जुलाई 2023 को सीजेआई चंद्रचूड़ ने 2 अगस्त से 5 जजों की पीठ के सामने नियमित आधार पर इस मामले की सुनवाई की बात कही।

सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 370 पर 3 साल बाद सुनवाई हो रही है। सुनवाई करने वाले पाँच जजों की बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एस के कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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