Friday, April 26, 2024
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‘…उस रात सेना के जवान न आते तो घर में जश्न नहीं मातम होता’ – गर्भवती तस्लीमा और भाई फैज ने बताया फरिश्ता

"जिहादियों ने हमारे स्कूल और अस्पताल जला दिए, लेकिन भारतीय सेना ने हमारे लिए स्कूल और अस्पताल बनवाए हैं। वो हमारे बच्चों को स्कूल पहुँचा रहे हैं, मैं ज़्यादा क्या कहूँ, सबूत तो यह नवजात भी है।"

भारत का इतिहास सेना के जवानों के अदम्य साहस का गवाह है। सीमा पर अपने कर्तव्यों का वहन करना तो सेना बख़ूबी जानती ही है, लेकिन जब कोई शख़्स मौत के गाल में समाने ही वाला हो और ऐन मौक़े पर सेना का जवान उसे बचाकर नई ज़िंदगी दे, तो वो जवान किसी फ़रिश्ते से कम नहीं होता।

ऐसा ही एक ताज़ा मामला जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा ज़िले का है, जहाँ एक गर्भवती महिला तस्लीमा को सेना के जवानों ने न सिर्फ़ नई ज़िंदगी दी बल्कि उसके नवजात शिशु को जीवन प्रदान करने में भी एक अहम भूमिका निभाई। तस्लीमा के भाई ने बताया कि वो अपनी गर्भवती बहन को लेकर अस्पताल जा रहे थे, लेकिन भारी बर्फ़बारी के चलते रास्ता बंद हो गया और रात का अँधेरा ज़िंदगी का अँधेरा बनने लगा। कड़ाके की ठंड में भाई-बहन को लगा कि अब उनके जीवन का अंत शायद यहीं हो जाएगा। 

दैनिक जागरण की ख़बर के अनुसार, तस्लीमा और उनके भाई ने हिम्मत जुटाकर किसी तरह से निकटवर्ती सैन्य शिविर में सम्पर्क साधा। अपने चारों तरफ बर्फ़ ही बर्फ़ नज़र आने की वजह से दोनों भाई-बहन को हर समय यही लग रहा था जैसे मौत के फ़रिश्ते कभी भी उन्हें लेने आ सकते हैं। लेकिन, इसी बीच वहाँ सेना के जवान डॉक्टर के साथ पहुँच गए, जिन्हें देखकर तस्लीमा और उनके भाई की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा और उन्होंने उनकी (जवान) तुलना ज़िंदगी देने वाले फ़रिश्ते से कर दी।

तस्लीमा के भाई ने बताया कि वहाँ पहुँचे डॉक्टर ने पहले तो उनकी बहन को प्राथमिक उपचार दिया और फिर जवानों की मदद से स्ट्रेचर पर उनकी बहन को तीन किलोमीटर तक बर्फ़ पर पैदल चलकर और फिर एंबुलेंस के ज़रिए उपज़िला अस्पताल सोगाम पहुँचाया। वहाँ पहुँचने पर डॉक्टर्स ने कहा कि उनकी बहन का ऑपरेशन करना होगा और इसके लिए उन्हें बनिहाल के अस्पताल में ले जाना पड़ेगा। इस दौरान एक अन्य गर्भवती महिला को भी बनिहाल अस्पताल ले जाना था। इसके बाद दोनों गर्भवती महिलाओं को स्वास्थ्य विभाग की एंबुलेंस में अस्पताल ले जाया गया। वहाँ पहुँचने के बाद तस्लीमा ने एक स्वस्थ्य बच्चे को जन्म दिया। 

अपने नवजात भाँजे को खिलाते और झूमते हुए तस्लीमा के भाई फैज ने उस अँधेरी रात का ज़िक्र करते हुए कहा कि अगर उस दिन सेना के जवान न आते तो उनके घर में जश्न मनाने की बजाए मातम मनाया जा रहा होता।

सेना और स्थानीय लोगों के बीच रिश्ते के बारे में एक सवाल के जवाब में फैज ने कहा कि एक समय था जब उनका इलाक़ा जिहादियों का पनाहगाह था, लेकिन अब वहाँ जिहादी नहीं हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि अब वहाँ सेना के जवान हैं। उन्होंने कहा, “जिहादियों ने हमारे स्कूल और अस्पताल जला दिए, लेकिन भारतीय सेना ने हमारे लिए स्कूल और अस्पताल बनवाए हैं। वो हमारे बच्चों को स्कूल पहुँचा रहे हैं, मैं ज़्यादा क्या कहूँ, सबूत तो यह नवजात भी है।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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