राजस्थान के अजमेर शरीफ दरगाह के सामने ‘सर तन से जुदा’ के नारे लगाने वाले दरगाह के खादिम मौलवी गौहर चिश्ती सहित छह आरोपितों को कोर्ट ने बरी कर दिया था। हालाँकि, चिश्ती जेल से बाहर नहीं आ पाया था। उस पर अन्य मुकदमे भी हैं। इन मुकदमों में जमानत या रिहाई मिलने के बाद ही वह जेल से बाहर आ पाएगा। इस बीच कोर्ट के निर्णय का डिटेल सामने आया है।
दरअसल, अदालत के निर्णय वाले दिन आरोपितों के वकील अजय वर्मा ने कहा था कि भड़काऊ नारे वाले जो वीडियो सामने आए थे, उनका सत्यापन नहीं हो पाया। पुलिस ने मौके का नक्शा नहीं बनाया और जो पुलिसकर्मी मौके पर मौजूद थे, वे भी अपनी मौजूदगी के दस्तावेज पेश नहीं कर पाए। कोर्ट ने इस संबंध में पर्याप्त साक्ष्य नहीं पाया और सभी आरोपितों को बरी कर दिया।
वरिष्ठ पत्रकार राहुल शिवशंकर ने सोशल मीडिया साइट X पर एक पोस्ट करके जजमेंट के कुछ हिस्से साझा किए हैं। इसके साथ ही सुनवाई के दौरान पुलिस द्वारा बरती गई लापरवाही को भी इंगित किया है। उन्होंने लिखा है, “राजस्थान पुलिस द्वारा 2022 में जाँच के दौरान की गई ‘अस्पष्ट’ चूकों की एक श्रृंखला को न्यायाधीश ने अजमेर दरगाह के खादिम गौहर चिश्ती को बरी करते हुए चिह्नित किया है।”
उन्होंने आगे लिखा, “खादिम पर आधा दर्जन अन्य लोगों के साथ ‘सर तन से जुदा’ का नारा लगाने का आरोप था। बरी किए जाने पर तीखी बहस छिड़ गई क्योंकि चिश्ती को तत्कालीन भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा द्वारा की गई टिप्पणियों की प्रतिक्रिया में दिनदहाड़े घृणित नारा लगाते हुए स्पष्ट रूप से कैमरे पर कैद किया गया था।”
Explosive Hard Facts are out:
— Rahul Shivshankar (@RShivshankar) July 18, 2024
A string of "unexplained" lapses by Rajasthan police that aroused "suspicion" were commited during the probe in 2022 have been flagged by the judge while acquitting Khadim of Ajmer Dargah Gauhar Chisti. The Khadim was accused along with half a dozen… pic.twitter.com/oC2H3VePWq
राहुल शिवशंकर द्वारा साझा किए जजमेंट के कुछ अंश में कहा गया है, “परिवादी जयनारायण के द्वारा जो घटना का वीडियो 17.06.2022 को अपने मोबाइल से बनाया जाना बताया है, उस वीडियो को 17 जून से 25 जून 2022 तक अपने पास रखा गया। जयनारायण द्वारा स्वयं का मोबाइल इस प्रकरण में जब्त नहीं किया गया।”
कोर्ट ने आगे कहा है, “जयनारायण के द्वारा घटना का वीडियो बनवारी लाल और दलवीर सिंह दिखाना बताता है, परंतु उसके बावजूद भी कोई कार्यवाही उनके द्वारा नहीं किया जाना भी अभियोजन पक्ष की कहानी को संदेहास्पद बनाता है। जयनारायण साल 2023 में अपनी मोबाइल खराब होना बताता है।”
दरअसल, अजमेर दरगाह के बाहर लगभग गौहर चिश्ती और 3000 लोगों की उपस्थिति में ‘सर तन से जुदा के नारे’ लगे थे। इसको लेकर कॉन्स्टेबल जयनारायण जाट ने इस मामले की रिपोर्ट थाने में दर्ज करवाई थी। जाट की रिपोर्ट के आधार पर चिश्ती पर हिंसा के लिए भीड़ को उकसाने और हत्या की अपील करने का मामला दर्ज किया गया था।
कॉन्स्टेबल जयनारायण जाट ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि था कि घटना के दिन वह दोपहर करीब 3 बजे निजाम गेट पर ड्यूटी दे रहे थे। उस दौरान मौन जुलूस निकाला जा रहा था। जाट ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इस दौरान सुनियोजित तरीके से खादिम गौहर चिश्ती हित कुछ लोगों ने नारे लगाने शुरू कर दिए थे। उसमें रिक्शे पर लाउडस्पीकर लगाकर ‘सिर तन से जुदा’ के नारे लगाए थे।
इस मामले में कोर्ट ने जो आगे सवाल उठाया है वह है, 16 जून 2022 की मीटिंग जो अभियोजन पक्ष के द्वारा अभियुक्त गौहर चिश्ती के द्वारा आहूत किया जाना बताया है, उसकी डीवीआर जो अंजुमन यादगार कमिटी के सीसीटीवी कैमरे का होना बताया गया है, उक्त डीवीआर वैध अभिरक्षा से प्राप्त होना प्रमाणित नहीं होता है।”
कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि इस डीवीआर को हासिल करने के लिए अंजुमन यादगार कमिटी को पत्र लिखा गया हो, ऐसा किसी गवाह ने नहीं है। इस डीवीआर को चाँद मोहम्मद डब्ल्यू द्वारा देना बताया गया है। कोर्ट ने कहा कि जब इस डीवीआर को चलाकर देखा गया तो इसमें कोई आवाज नहीं आ रही थी।
कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया की गौहर चिश्ती के भाषण से संंबंधित पुलिस द्वारा जो सीडी पेश की गई उसमें काँट-छाँट की गुंजाईश लग रही है। चिश्ती द्वारा किसी को जान से मारने की भी जो बात कही गई है, उसे सुनने के लिए पूरा सीडी देखना जरूरी है, जो कि सीडी में पूरा है नहीं। इसलिए यह सीडी संदेहास्पद बन जाती है।
इस तरह कोर्ट इस मामले से जुड़े जयनारायण जाट के द्वारा घटना की वीडियो रिकॉर्डिंग से लेकर, उसे अपने साथी तक दिखाने की बात और फिर मोबाइल का टूट जाना आदि इस केस में कदम-कदम पर खामियाँ और अंतर्विरोध है। इसका फायदा आरोपित गौहर चिश्ती को मिला और कोर्ट ने उसे बरी कर दिया।
दरअसल, आरोपितों की ओर से पेश कोर्ट में पेश वकील अजय वर्मा ने कहा था कि भड़काऊ नारे वाले जो भी वीडियो सामने आए थे, उनका सत्यापन नहीं हो पाया है। पुलिस ने मौके का नक्शा नहीं बनाया और जो पुलिसकर्मी मौके पर मौजूद थे, वे भी अपनी मौजूदगी के दस्तावेज पेश नहीं कर पाए। वकील ने कहा कि कोर्ट ने इस संबंध में पर्याप्त साक्ष्य नहीं पाया और सभी आरोपितों को बरी कर दिया।
इससे साफ लगता है कि पुलिस ने इस मामले की पैरवी ढंग नहीं कर पाई। जो वीडियो वायरल हुआ, उसका सत्यापन नहीं करा पाना भी एक बड़ी नाकामी है। जिस पुलिसकर्मी जयनारायण जाट ने इस मामले में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि वे घटना के दिन ड्यूटी निजाम गेट पर थी। इस बात को भी जाट एवं अन्य पुलिसकर्मी पेश नहीं कर पाए। सत्यनारायण जाट के हर बयान में विरोधाभास है।
ये सारा उस समय अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कॉन्ग्रेस के शासन काल में हुआ था। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या कॉनग्रेस ने जानबूझकर मामले में लापरवाही की और ढंग से पैरवी ना करके गौहर चिश्ती को बचाने की कोशिश की। जिस तरह से कोर्ट ने इस मामले में खामियों की ओर इशारा किया है, वह पुलिस की लापरवाही को साफ दर्शाता है।