बिहार पर बाढ़ का कहर टूटने के बाद से ही डूब कर लोगों के मरने की लगातार खबरें आ रही हैं। इनमें ज्यादातर बच्चे हैं। इन बच्चों में 3 महीने का अर्जुन भी है। मंगलवार को बागमती की उपधारा में अपने भाई-बहन के साथ वह डूब कर मर गया।
अर्जुन के शव निकालने की तस्वीर मुझे मुजफ्फरपुर के मीनापुर प्रखंड के एक स्थानीय पत्रकार ने कल दोपहर में भेजी थी। रात को ऑफिस से घर पहुँचने के बाद जब आँखें मूंदे, दोनों हाथ ऊपर उठाए अर्जुन की तस्वीर देखी तो दहल गया। तब तक यह तस्वीर सोशल मीडिया में भी वायरल हो चुकी थी।
आज जब मुजफ्फरपुर के शिवाईपट्टी थाना के शीतलपट्टी गाँव के अर्जुन, उसके 10 वर्षीय भाई राजकुमार और 12 वर्षीय बहन ज्योति के डूब मरने की कहानी लिखने बैठा हूँ तो शब्द नहीं मिल रहे हैं। लेकिन, ‘सुशासन बाबू’ के अफसरों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सरकार को चौतरफा थू-थू से बचाने के लिए वे एक नई थ्योरी गढ़ने में लग गए हैं।
इसके मुताबिक अर्जुन और उसके भाई-बहन की मौत बाढ़ में डूबने से नहीं हुई, बल्कि उसकी माँ ने बच्चों के साथ आत्महत्या करने की कोशिश की। एनडीटीवी के मुताबिक अर्जुन की माँ रीना देवी के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज की गई है।
पति से हुआ विवाद तो पानी में बच्चों को फेंका
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक डीएम ने कहा है,”ग्रामीणों और रीना की 7 साल की बच्ची ने जो बताया उसके मुताबिक रीना देवी का अपने पति के साथ विवाद हुआ था। इसके बाद रीना ने बच्चों को पानी में फेंक दिया था। गाँव वालों ने जब देखा तो उन्होंने बच्चों और रीना देवी को पानी से बाहर निकाला। इस मामले में कोई मुआवजे का ऐलान नहीं किया गया है, क्योंकि यह एक अपराध का मामला है। इसका बाढ़ से कोई लेना-देना नहीं है। इसे हत्या करने का प्रयास माना जा सकता है।”
डीएम के इस दावे की चुगली स्थानीय अखबारों की रिपोर्ट करते हैं। प्रभात खबर ने 17 जुलाई को प्रकाशित रिपोर्ट में बताया है कि रीना देवी अपने चार बच्चों को लेकर मंगलवार की दोपहर नदी किनारे कपड़े धोने गई थी। इसी दौरान नहाते वक्त अपने तीन बच्चों को डूबते देख उन्हें बचाने के लिए अर्जुन के साथ नदी में छलॉंग लगा दी। ग्रामीणों ने रीना और उसकी आठ साल की बेटी राधा को बचा लिया। बाकी तीन के शव बरामद हुए। अर्जुन का शव सबसे आखिर में बरामद हुआ।
आप वीडियो में देख सकते हैं कि मछुआरों ने इन शवों को निकाला।
कहाँ थे गोताखोर?
यह सवाल उठना लाजिमी है कि बाढ़ से प्रभावित इलाके में जब घंटों बच्चों के शव की तलाश की जा रही थी तो प्रशासन के गोताखोर कहॉं थे? उसका बचाव दल कहॉं था? यदि आप स्थानीय अखबारों पर नजर डालें तो पता चलेगा कि जिनकी डूबने से मौत हुई है, उनमें से ज्यादातर के शव स्थानीय लोगों ने ही अपनी जान जोखिम में डालकर तलाशे हैं। इनमें से कुछ के शव तो 48 घंटे बाद मिले। लेकिन, इसका जवाब देने के लिए कोई अधिकारी तैयार नहीं है। बिहार सरकार के आँकड़ों की ही माने तो 17 जुलाई की शाम छह बजे तक 67 लोगों की बाढ़ में मौत हो चुकी थी।
अर्जुन के पिता थे पंजाब में, फिर पत्नी से कैसे हुआ झगड़ा
प्रभात खबर की रिपोर्ट यह भी बताती है कि घटना के वक्त अर्जुन के पिता पंजाब में थे। घटना की खबर मिलने के बाद उन्होंने घर की ट्रेन पकड़ी। अब ऐसे में सवाल उठता है कि जब वे घर पर ही नहीं थे तो उनका अपनी पत्नी से विवाद कैसे हो गया? खबरों के मुताबिक यह पिता बच्चों की मौत से इतना टूट चुका है कि उनको मुखाग्नि देने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। अंत में तीनों बच्चों को एक ही चिता पर लिटा कर दादी ने अंतिम संस्कार की रस्म पूरी की।
प्रभावित 47 लाख, राहत शिविर 137
बिहार सरकार बाढ़ से प्रभावित अपनी जनता के लिए कितनी फिक्रमंद है उसका अंदाजा इन आँकड़ों से लगाइए। यह बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग का डाटा है जो उन्होंने खुद अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर रखा है। बाढ़ से 12 जिलों की करीब 47 लाख की आबादी प्रभावित है। लेकिन, इनके लिए अब तक केवल 137 राहत शिविर और 1116 सामुदायिक रसोई ही खोले गए हैं। राहत शिविरों में रहने वालों की संख्या करीब 1.15 लाख है। मधुबनी जिले की करीब 3.5 लाख प्रभावित आबादी के लिए केवल 4 राहत शिविर हैं, तो शिवहर की 1.69 लाख प्रभावित आबादी के लिए केवल 7।
एमएसयू जैसे संगठनों के भरोसे राहत कार्य
छह दिन बाद भी राहत और बचाव का काम मिथिला स्टूडेंट्स यूनियन (एमएसयू), मानव कल्याण केंद्र जैसी संस्थाओं के भरोसे ही है। बाढ़ में खुद की परवाह नहीं करते हुए इन संगठनों के कार्यकर्ता राहत सामग्री लेकर पीड़ितों तक पहुॅंच रहे हैं। एमएसयू प्रभावित इलाकों में सामुदायिक रसोई भी चला रहा है।
सरकार बहादुर देगी छह हजार
सरकार बहादुर ने ऐलान कर दिया है कि पीड़ितों के खाते में छह हजार राहत के पहुॅंच जाएंगे। यह दूसरी बात है कि प्रभावित इलाकों में सैकड़ों ऐसे लोग मिल जाएँगे जिन्हें पिछली राहत भी अब तक नहीं मिली है। क्यूंकि, उनका हक़ नेताओं-अधिकारियों-ठेकेदारों के उसी गिरोह ने हड़प लिया, जो हर साल तटबंधों की मजबूती के नाम पर करीब 600 करोड़ रुपए का बजट डकार जाते हैं।