अमित शाह ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि भाजपा के 80 कार्यकर्ताओं की हत्या बंगाल की चुनावी हिंसा में हुई। हम तक कुछ ही नाम पहुँचे जो मीडिया ने पहुँचाए, और बाकी नाम गुमनाम रहे। कोई पोल पर टँगा मिला, किसी की लाश पेड़ पर लटकी मिली, कोई खेत में पाया गया।
लोकतंत्र ने आज मौका दिया कि उनकी बलिदान व्यर्थ न हो। आज जब बंगाल में भाजपा ने अपनी बढ़त बनाई है और लगभग बीस सीटों पर आगे है, तब उन लोगों को भारतीय लोकतंत्र एक श्रद्धांजलि-सा देता प्रतीत होता है जिन्हें इस हिंसा और एक तानाशाह की नकारात्मकता ने लील लिया।
कुछ दुखद घटनाओं का स्मरण करें तो कुछ समय पहले पश्चिम बंगाल के इस्लामपुर में भाजपा कार्यकर्ता अपूर्बा चक्रवर्ती को तृणमूल के गुंडों ने बेरहमी से पीटा था। जिसके बाद से चक्रवर्ती की हालत गंभीर हो गई थी और वह उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज में भर्ती हो गए थे।
इतना ही नहीं मालदा में, भाजपा ग्राम पंचायत के सदस्य उत्पाल मंडल के भाई पटानू मंडल को भी टीएमसी के गुंडों ने उनके घर में गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके अलावा टीएमसी के एक अन्य विधायक सोवन चटर्जी और उनके मित्र बैशाखी चटर्जी को भी कथित तौर पर एक बंगले में सिर्फ़ इसलिए कैद रखा गया था क्योंकि उनके भाजपा में शामिल होने की अटकलें थीं। इतना ही नहीं पिछले साल पंचायत के चुनावों में बीजेपी उम्मीदवार की एक गर्भवती रिश्तेदार का टीएमसी के कार्यकर्ताओं द्वारा रेप तक कर दिया गया था।
यह तो कुछ नाम हैं जिनकी खबर आई। दर्जनों ऐसे कार्यकर्ता भी हैं जिनके बारे में हम नहीं जानते। जिस लोकतंत्र को बचाने की बात मीडिया AC रूम में बैठकर करती है। जिस लोकतंत्र को बचाने वाले जोशीले भाषण नेता AC की हवा खाते हुए मंचों से देते हैं या फिर हम और आप जिस लोकतंत्र को बचाने के लिए सोशल मीडिया पर आपस में लड़-मरते हैं, गाली-गलौज करते हैं।
दरअसल उस लोकतंत्र को अपने खून से सींचा है पश्चिम बंगाल के उन कार्यकर्ताओं ने, जिन्होंने अपनी जान न्यौछावर की। उन्होंने अपनी जान इसलिए न्यौछावर की क्योंकि उन्हें सही मायने में लोकतंत्र में विश्वास था। उनको नमन कीजिए क्योंकि आपके एक वोट की सही कीमत उन्होंने ही समझी।