दिल्ली में हुए हिन्दू विरोधी दंगों के दो साल हो गए हैं। ऐसे में दंगा प्रभावित राष्ट्रीय राजधानी के उत्तर-पूर्वी हिस्से का अब क्या हाल है और लोगों के मन में क्या है, इसे टटोलने के लिए हम उन इलाकों में पहुँचे और वहाँ के लोगों से बातचीत की। सबसे पहली बात तो ये कि एक अजीब से तनाव भरे माहौल होने के बावजूद एक प्रकार की शांति तो है, लेकिन कोई कैमरे पर कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं है। ये ऐसे इलाके हैं, जहाँ हिन्दुओं-मुस्लिमों के घर या दुकानें आसपास ही हैं।
उदाहरण के लिए सीलमपुर मेट्रो से ब्रह्मपुरी के लिए काफी ऑटो और ई-रिक्शा चलते हैं, लेकिन आपको हिन्दू ड्राइवर काफी कम दिखेंगे। हिन्दुओं के व्यावसायिक प्रतिष्ठान तो आपको दिखेंगे, लेकिन बाजार में मुस्लिमों का जमावड़ा ज्यादा है। जब हमने कुछ हिन्दू बुजुर्गों से बात की तो वो दंगे के मृतकों विनोद कुमार और नरेश सैनी का नाम लेकर एक आह भरते हैं, लेकिन कहते हैं कि हमें और मुस्लिमों को यहाँ साथ ही रहना है और इसीलिए उनके खिलाफ हम भला कैसे कुछ बोलें।
नरेश सैनी के मोहल्ले में एक बुजुर्ग किराना दुकान वाली महिला हैं, जिन्हें उन दंगों को लेकर सिर्फ इतना पता है कि ‘मुस्लिमों ने आकर झगड़ा किया और लोग मारे गए।’ एक बुजुर्ग पंडित जी का कहना था कि चाहे कुछ भी हो, आज मुस्लिमों के साथ रहना मजबूरी है। कुछ युवक ज़रूर दंगों के बारे में बात करना चाहते हैं, लेकिन बाकी लोग उन्हें ‘संभल कर बोलने’ की सलाह देते हैं। लोगों का कहना है कि
सबसे पहले आपको बता दें कि सीलमपुर के इलाके में मुस्लिमों की अच्छी-खासी जनसंख्या है। ऑटो चलाने वालों से लेकर दुकानदारों तक, अधिकतर आपको मुस्लिम ही मिलेंगे। बाजार में चहल-पहल करते इस्लामी स्कल कैप पहने मुस्लिम युवक यहाँ दिखाई देते हैं। मुस्लिम महिलाएँ और लड़कियाँ बुर्के में दिखती हैं। ब्रह्मपुरी मोहल्ले में ज़रूर हिन्दुओं की उपस्थिति है, लेकिन अधिकतर अपने छोटे-मोटे कारोबार में व्यस्त हैं। कुछ बुजुर्ग तिलक लगाने के कारण पहचान में आते हैं कि वे हिन्दू हैं। युवकों में पहचानना मुश्किल है।
आपको बता दें कि सीलमपुर के इलाके में मुस्लिमों की अच्छी-खासी जनसंख्या है। ऑटो चलाने वालों से लेकर दुकानदारों तक, अधिकतर आपको मुस्लिम ही मिलेंगे। बाजार में चहल-पहल करते इस्लामी स्कल कैप पहने मुस्लिम युवक यहाँ दिखाई देते हैं। मुस्लिम महिलाएँ और लड़कियाँ बुर्के में दिखती हैं। ब्रह्मपुरी मोहल्ले में ज़रूर हिन्दुओं की उपस्थिति है, लेकिन अधिकतर अपने छोटे-मोटे कारोबार में व्यस्त हैं। कुछ बुजुर्ग तिलक लगाने के कारण पहचान में आते हैं कि वे हिन्दू हैं। युवकों में पहचानना मुश्किल है।
नरेश सैनी की मृत्यु के बाद घर की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। उनकी हत्या के बाद तो कई नेताओं ने उनके यहाँ हाजिरी लगाई थी, लेकिन अफ़सोस कि अब जब इस दंगे के 2 साल बीत गए हैं, उनकी हाल खबर जानने वाला कोई नहीं है। नरेश सैनी की एक बेटी और एक बेटा है। बेटी जहाँ 8 साल की है, वहीं बेटा 7 वर्ष का है। बेटी की पढ़ाई में ही 1700 रुपए प्रति महीने लग जाते हैं। बेटे की फी में तो स्कूल ने छूट दे दी है, लेकिन दोनों की आगे की पढ़ाई को लेकर परिवार चिंतित है।
मोहल्ले में विनोद कुमार का नाम लेते ही लोग भावुक हो जाते हैं और आह भरते हुए बताते हैं कि कैसे दंगे में उनकी जान चली गई थी। हालाँकि, ऑन कैमरा कोई इस बारे में कुछ बोलने को तैयार नहीं है, जिससे पता चलता है कि दो साल भी किस तरह लोग डरे हुए हैं यहाँ पूछने पर कोई भी बता देगा कि ‘DJ वाले’ विनोद कुमार का घर कौन सा है। परिवार का गुजर-बसर DJ सर्विस पर ही निर्भर है। अफसोस वो भी अब ठप्प पड़ा हुआ है। नितिन कुमार का कहना है कि उनके परिवार में फ़िलहाल 5 लोग हैं और घर की आर्थिक स्थिति भी खराब है।