आज एक और हिन्दू को सेक्युलरिज्म पर कुर्बान कर दिया गया। राजस्थान के उदयपुर में कन्हैया लाल का सिर धड़ से अलग कर दिया गया, धारदार हथियारों से। वो बेचारे होने काम में व्यस्त थे। कपड़े का नाप ले रहे थे, जो उनका व्यवसाय था। उसी दौरान पहुँचे जिहादियों ने न सिर्फ उनका गला रेत डाला, बल्कि इसका वीडियो भी शूट किया। वीडियो शूट करने का बाद दो हत्यारों ने खुद का वीडियो बना कर ऐलान भी किया कि नूपुर शर्मा का समर्थन करने की सज़ा दी गई है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी ऐसा ही होगा।
‘गुस्ताख़-ए-नबी की एक सज़ा, सर तन से जुदा-तन सर से जुदा’ का नारा नया तो है नहीं। इस्लामी जिहादियों द्वारा ईशनिंदा का आरोप लगा कर सिर कलम करने की घटना भी नई नहीं है। घटना के बाद गर्व से बेख़ौफ़ इसकी घोषणा करने भी नया नहीं है। फिर ‘आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता’ का रट्टा लगाते हुए इनके बचाव में सामने आने वाले बुद्धिजियों की करतूतें भी पहली बार नहीं हो रहीं। और हाँ, इनका केस लड़ने का नाम जमीयत जैसा कोई संगठन भी पहली बार नहीं करेगा।
कमलेश तिवारी हत्याकांड भला किसे नहीं याद होगा। ये दिखाता है कि इस्लामी जिहादी 4 साल बाद भी हत्या कर सकते हैं, कन्हैया लाल के मामले में 10 दिन बाद भी। उन्हें पैगंबर मुहम्मद के बारे में हदीस से कुछ कोट किए जाने पर भी गुस्सा आ सकता है, उन्हें ऐसा करने वालों के समर्थकों से भी गुस्सा आ सकता है। उन्हें कोई टीवी डिबेट भी उकसा सकता है। उन्हें कोई फेसबुक पोस्ट भी बुरा लग सकता है। लेकिन, सज़ा एक ही है – सर तन से जुदा।
उदयपुर के प्रशासन ने बयान भी दे दिया है कि अपराधी की कोई जाति नहीं होती। भले ही हत्या पैगंबर मुहम्मद के नाम पर की गई हो, मुस्लिमों ने की हो, वीडियो में नबी का नाम लिया हो और इस्लामी जिहाद के लिए किया हो – लेकिन हत्यारों के मजहब के बारे में बताना गुनाह है, क्योंकि वो मुस्लिम हैं। हाँ, अगर किसी हिन्दू पर चाँटा मारने भर का आरोप तक भी लगा होता तो अलग बात थी। ‘भगवा आतंकवाद’ का नाम देकर उस पर अंतरराष्ट्रीय डिबेट बुलाई जा सकती है।
उदयपुर में कन्हैया लाल का शव काफी देर तक दुकान के बाहर पड़ा था, खून से लथपथ। उधर हत्यारे हँसते हुए वीडियो बनाते रहे, देश के प्रधानमंत्री के साथ ऐसा ही करने की धमकी देते रहे। धानमंडी स्थित भूतमहल के पास ‘सुप्रीम टेलर्स’ नाम से वो दुकान चलाते थे। उन्हें लगातार धमकी मिल रही थी, लेकिन कॉन्ग्रेस शासित राजस्थान की नकारी पुलिस ने सुरक्षा नहीं दी। नामजद रिपोर्ट के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। 6 दिन डर के मारे उन्होंने दुकान तक नहीं खोली, लेकिन आरोपितों पर कार्रवाई नहीं हुई।
हर कुछ दिन पर एक हिन्दू की हत्या कर दी जाती है, लेकिन जिहादियों का कोई नाम तक लेने की हिम्मत नहीं करता। इससे उनकी हिम्मत और बढ़ती चली जाती है। गुजरात में किशन भरवाड़ की हत्या आपको याद होगी। एक हट्टे-कट्टे युवक को मौत की नींद सुला दिया गया था। लेकिन, हिन्दुओं को याद दिलाया जाता रहता है कि तुम पर फलाँ साल के फलाँ महीने में फलाँ मुस्लिम की दाढ़ी नोचने के आरोप लगे थे, इसीलिए दोषी तुम ही हो।
हम उस दौर में रह रहे हैं जब पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को ख़त्म कर दिया गया, बांग्लादेश में उनके पर्व-त्योहारों में उत्पात मचाया जाता है, अफगानिस्तान से उन्हें अपने पवित्र ग्रन्थ वापस लेकर आने होते हैं और अरब मुल्कों में उन्हें शरिया का पालन करना पड़ता है। हम उस दौर में रह रहे हैं जहाँ दुनिया के लगभग सरे आतंकी संगठन खुद के इस्लामी जिहादी होने का दावा करते हैं, लेकिन फिर भी हमें रोज सुनाया जाता है कि उनका कोई मजहब नहीं होता।
ये सब हिन्दुओं को भयभीत रखने के लिए किया जा रहा है। दिल्ली सल्तनत और मुगलों के समय जैसे भालों के ऊपर हिन्दुओं-सिखों के कटे हुए सिर सजा कर रैलियाँ निकाली जाती थीं और हिन्दुओं के कटे हुए सिरों का पहाड़ खड़ा किया जाता था, आज कुछ वैसा ही छिटपुट तरीके से किया जा रहा है। इरादा वही है – तुम डर कर रहो। सबसे बड़ी बात कि मानवाधिकार संगठनों की नजर में पीड़ित यहाँ वो नहीं होता जिसका गला कट जाता है, वो होता है जो गला काटता है, क्योंकि वो मुस्लिम है।
ये प्रक्रिया पूरी दुनिया में समान ही है। ISIS जैसा खूँखार आतंकी संगठन लोगों को लाइन में बिठा कर उनका गला रेत देता है। फ़्रांस में शिक्षक सैमुअल पैटी का गला रेत दिया जाता है। कारण – पैगंबर मुहम्मद का कार्टून दिखाने के आरोप। इसी आरोप में शार्ली हेब्दो मैगजीन के दफ्तर में घुस कर नरसंहार किया गया था। राजस्थान में कॉन्ग्रेस की सरकार है, ऐसे में कोई कथित बुद्धिजीवी इस घटना के खिलाफ बिना हिन्दुओं को गाली दिए हुए बोलेगा इस पर शक है।
अभी मोहम्मद जुबैर, जो कई वर्षों से हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान करता आ रहा है और जिसने अपने अरबी आकाओं को नूपुर शर्मा के टीवी डिबेट के बयान के बारे में बताया था, उसकी कानूनी प्रक्रिया से हुई गिरफ़्तारी के विरोधी में हिन्दुओं को क्या नहीं कहा गया। जहाँ पुलिस और न्यायपालिका अपना काम कर रही थी, शिकायतकर्ता था, सबूत सोशल मीडिया पर उपलब्ध थे – वहाँ कार्रवाई के लिए एडिटर्स गिल्ड जैसी संस्था से लेकर बड़े-बड़े लिबरल गिरोह के पत्रकारों ने आपातकाल की घोषणा कर दी।
#उदयपुर के इन जेहादी आतंकियों का फास्ट ट्रैक कोर्ट में केस चला कर जल्द से जल्द सरे आम फांसी दी जानी चाहिए।
— Ashok Shrivastav (@AshokShrivasta6) June 28, 2022
इस गरीब दर्जी की हत्या #Zubair के सर पर है। pic.twitter.com/nrsfXfzG5y
क्या किसी को गिरफ्तार किया जाना किसी अपराध के लिए, किसी निर्दोष का गला रेत दिए जाने से ज्यादा जघन्य अपराध है? क्या हिन्दू देवी-देवताओं का मजाक बनाने वाले के खिलाफ शिकायत करना, किसी आम हिन्दू का सिर कलम कर दिए जाने से बड़ा गुनाह है? क्या एक महिला का समर्थन किया, जिसे जिहादियों की हजारों धमकियाँ मिल रही हों – ऐसा गुनाह है कि इसकी सज़ा सीधे मौत हो? क्या भारत में अब शरिया कानून चलेगा?
हम उस देश में रहते हैं जहाँ एक अभिनेत्री किसी नेता का नाम लिए बिना भी आलोचना करती है तो उस पर 21 FIR दर्ज कर के उसे 39 दिन जेल में रखा जाता है, लेकिन कोई उफ्फ तक नहीं करता क्योंकि पीड़ित एक हिन्दू है और नेता भाजपा विरोधी। करौली से लेकर राजस्थान के तमाम इलाकों में हुए दंगों पर आवाज़ नहीं उठी, दोष केंद्र सरकार को दिया वहाँ के मुख्यमंत्री ने, आज उसी राजस्थान में इस तरह की घटना इसकी परिणीति के रूप में हुई है