Sunday, November 17, 2024
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‘यूनिफॉर्म सिविल कोड’ देश की जरूरत, केंद्र उठाए कदम’: इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी, मुस्लिम कर रहे विरोध

साल 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने देश में समान नागरिक संहिता लागू नहीं किए जाने पर नाराजगी जताई थी। शीर्ष अदालत ने सरकारों को गोवा से सीखने की सलाह देते हुए कहा था कि वहाँ पर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी के बाद देश में एक बार फिर यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा गरमा गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस सुनीत कुमार की अगुआई वाली सिंगल जज की बेंच ने मोदी सरकार से संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को पूरे भारत में लागू करने के लिए कदम उठाने को कहा है।

मायरा उर्फ ​​वैष्णवी विलास शिरशिकर और दूसरे धर्म में शादी से जुड़ी 16 अन्य याचिका पर सुनवाई करते हुए 19 नवंबर (शुक्रवार) को कोर्ट ने यह बात कही। जस्टिस सुनीत ने सरकार से यूनिफॉर्म सिविल कोड के मामले में संविधान के अनुच्छेद 44 को लागू करने के लिए एक पैनल का गठन करने को कहा है। यह अनुच्छेद कहता है, “भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा”।

लंबे वक्त से लंबित है यह मुद्दा

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा समान नागरिक संहिता लागू करने से संबंधित कानून लंबे समय से लंबित है और इसे स्वैच्छिक नहीं बनाया जा सकता है। कोर्ट के कमेंट ने एक बार फिर से यूसीसी को लेकर जारी बहस को तेज कर दिया है। उल्लेखनीय है कि केंद्र में सत्तासीन बीजेपी समान नागरिक संहिता के समर्थन में रही है, लेकिन दुर्भाग्य से मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए कॉन्ग्रेस और अन्य छद्म धर्मनिरपेक्ष दलों ने हमेशा यूसीसी का विरोध किया है।

कोर्ट के मुताबिक, 75 साल पले बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि समान नागरिक संहिता को ‘विशुद्ध रूप से स्वैच्छिक’ नहीं बनाया जा सकता है। उन्होंने उस दौरान भी अल्पसंख्यक समुदाय के डर और आशंकाओं को देखते हुए यह बात कही थी। कोर्ट ने आगे कहा, “इस मामले पर अनावश्यक रियायतें देकर कोई भी समुदाय बिल्ली के गले की घंटी को बजाने की हिम्मत नहीं करेगा। यह देश की जरूरत है और यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वो नागरिकों के लिए यूसीसी को लागू करे और उसके पास इसके लिए विधायी क्षमता है।”

उच्च न्यायालय ने हिंदू परिवार संहिता की सराहना करते हुए कहा कि यह एक समान नागरिक संहिता के रूप में कार्य करता है और नागरिकों को एक संयुक्त हिंदू नागरिक के रूप में एकीकृत करता है। ​​

दिल्ली हाईकोर्ट भी कर चुका है टिप्पणी

इस साल जुलाई में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी देश में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए सरकार से कहा था। दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने टिप्पणी की थी कि समान नागरिक संहिता (UCC) लागू होने से समाज में होने वाले झगड़ों और विरोधाभासों में कमी आएगी, जो अलग-अलग पर्सनल लॉ के कारण उत्पन्न होते हैं।

UCC पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

साल 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने देश में समान नागरिक संहिता लागू नहीं किए जाने पर नाराजगी जताई थी। शीर्ष अदालत ने सरकारों को गोवा से सीखने की सलाह देते हुए कहा था कि वहाँ पर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है। जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि गोवा में कुछ बदलावों के साथ पुर्तगाली सिविल कोड ही लागू है। गोवा के स्थानीय निवासी किसी भी अन्य राज्य में भी बसे हों, तब भी वो इसके दायरे में आते हैं।

कोर्ट ने कहा था कि गोवा का मुस्लिम नागरिक एक से ज्यादा निकाह नहीं कर सकता और न ही मौखिक तलाक़ ही दे सकता है। लेकिन, देश के अन्य हिस्सों में वे अपने पर्सनल लॉ से चलते हैं।

क्या है समान नागरिक संहिता

संविधान का अनुच्छेद 44 देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने का अधिकार देता है। यूसीसी सामान्य शब्दों में एक तरह का पंथनिरपेक्ष कानून की बात कहता है, जो सभी धर्मों पर समान रूप से लागू होगा। इस कानून के अस्तित्व में आने के बाद सभी धर्मों के लिए एक ही कानून मान्य हो जाएगा।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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