अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा भारतीय फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की हत्या के कुछ दिनों बाद अमेरिका में रहने वाले भारतीय मूल के प्रोफेसर ने कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकी संगठन की प्रशंसा की है। उन्होंने तालिबान को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से अधिक मानवतावादी करार दिया है।
अमेरिका की स्टीवेन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में एसोसिएट मार्केटिंग प्रोफेसर गौरव सबनीस ने शनिवार (17 जुलाई 2021) को एक ट्वीट में लिखा, “दानिश सिद्दीकी के मामले में संघ से कहीं अधिक मानवता तालिबान दिखा रहा है।” प्रोफेसर सबनीस ने सिद्दीकी की मौत के बाद हो रही आलोचनाओं के जवाब में यह ट्वीट किया था। मृतक जर्नलिस्ट ने हाल ही में भारत में कोरोना पीड़ितों की मौत के बाद उनके परिवार की गोपनीयता का उल्लंघन करते हुए अंतिम संस्कार की फोटो क्लिक की थी। इतना ही नहीं उन्होंने ब्रिटिश स्वामित्व वाली स्टॉक फोटोग्राफी एजेंसी अलामी पर उसे बेचने के लिए भी अपलोड किया था।
सिद्दीकी के बहाने अपने ट्वीट के जरिए गौरव सबनीस ने बताया है कि आरएसएस और उसके फॉलोवर्स की तुलना में कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवादी संगठन तालिबान ने एक फोटो जर्नलिस्ट की हत्या करने के बावजूद अधिक मानवता का प्रदर्शन किया है। रॉयटर्स के लिए काम करने वाले दानिश सिद्दीकी की मौत के मामले में RSS को अमानवीय दिखाने और तालिबान की भूमिका को खत्म करने के उद्देश्य से किए गए इस दावे पर नेटिजन्स ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। ‘प्रिंसेस वोक लिबरल’ नाम के एक ट्विटर यूजर ने अमेरिका में रहने वाले मार्केटिंग प्रोफेसर पर निशाना साधा और लिखा, “दानिश सिद्दीकी को तालिबान ने नहीं, आरएसएस ने मारा।” उस कमेंट के तुरंत बाद गौरव सबनीस ने इस यूजर को माइक्रो-ब्लॉगिंग साइट पर ब्लॉक कर दिया।
इसके बाद अपने पहले के ट्वीट को सही ठहराने की कोशिश में सबनीस ने आरोप लगाया, “संघी गिद्धों द्वारा दानिश सिद्दीकी को चोंच मारने का एक मात्र कारण यह है कि उन्होंने भारत में कोविड से होने वाली मौतों को बड़े पैमाने पर कवर किया था। हकीकत में यही एक एक मात्र कारण है। क्योंकि उनकी कुछ तस्वीरों ने उसके गुमराह करने वाले नैरेटिव को खराब कर दिया है।”
एसोसिएट मार्केटिंग प्रोफेसर ने आगे दावा किया, “ध्यान दें कि ट्विटर पर केवल दिवंगत वीर फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी को डंप करने वाले संघी ही हैं। क्योंकि वे अभी भी इस बात से परेशान हैं कि जब बीजेपी ने भारत में कोविड की दूसरी लहर में होने वाली मौतों को छिपाने की पूरी कोशिश की तो दानिश ने ये तस्वीरें खींच लीं। यही एकमात्र कारण है।” संघ और तालिबान के बारे में अपने पहले के ट्वीट के कारण लोगों के गुस्से को कम करने के लिए गौरव ने लिखा, “मोदी सबसे बेहतर हैं, इस भ्रम को बनाए रखने के लिए आप कितने लाख जीवन बलिदान करने को तैयार हैं?”
लिबरल्स ने दानिश सिद्दीकी की हत्या के लिए तालिबान को दोषी नहीं माना
फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की मौत पर कई वामपंथी ‘लिबरल-सेक्युलर’ पत्रकारों ने भी ट्विटर पर शोक व्यक्त किया है। इन्होंने मृतक फोटो जर्नलिस्ट को श्रद्धाँजलि देते हुए उनकी तस्वीरों को खूब शेयर किया, लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह है कि इनमें से शायद ही किसी ने हत्या के लिए तालिबान के नाम का जिक्र किया।
राना अय्यूब ने दानिश सिद्दीकी और उनके काम के बारे में बताया कि उन्हें फोटोग्राफी का कितना शौक था। उन्होंने एक तस्वीर भी साझा की, जिसमें वह मृत पत्रकार के बगल में बैठी नजर आ रही थीं। हालाँकि, इस संदेश का लहजा हैरान करने वाला था। ऐसा लग रहा था कि फोटो जर्नलिस्ट की मौत किसी प्राकृतिक बीमारी के कारण हुई है और उसकी हत्या इस्लामिक आतंकवादियों ने नहीं की है। इसी तरह की रणनीति न्यूजलॉन्ड्री की मनीषा पांडे, स्तुति मिश्रा, आरफा खानम शेरवानी, योगेंद्र यादव और रवीश कुमार ने भी अपनाई।
हैरान करने वाली बात यह है कि एक भी शोक संदेश में दानिश सिद्दीकी की हत्या करने वाले कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन की ओर इशारा तक नहीं किया गया। एक भी लिबरल पत्रकार में यह टिप्पणी करने का नैतिक साहस नहीं था कि उन्हें (दानिश) अफगानिस्तान में तालिबान ने मार डाला। इस लिबरल जमात ने उनकी मौत को राजनैतिक मुद्दा बनाने के लिए उसकी फोटोग्राफी का जमकर इस्तेमाल किया, लेकिन यह उल्लेख नहीं किया कि यह तालिबान था, जिसने उसे अफगान बलों के साथ संघर्ष के दौरान मार डाला था। इसके बजाय, उन्होंने इस घटना पर लीपा-पोती करते हुए यह नैरेटिव गढ़ने की कोशिश की कि सत्ता सत्ता में बैठे लोगों से सवाल करने के लिए दानिश सिद्दीकी से प्रेरणा लेने की जरूरत है।