उत्तराखंड के हल्द्वानी में क्या हो रहा है ये किसी से छिपा नहीं है। 8 फरवरी 2024 को एक बार फिर इस्लामी कट्टरपंथियों की भीड़ अपने पुराने पैटर्न के साथ सड़कों पर आई। भीड़ ने जगह-जगह तोड़फोड़ की। आगजनी की-पत्थर फेंके। 300 से ज्यादा पुलिसकर्मियों को घायल किया, उन्हें जिंदा जलाकर मारने की कोशिश की और जब इन सबके खिलाफ पुलिस ने अपनी कार्रवाई को शुरू की तो इन्होंने खुद को विक्टिम दिखाना शुरू कर दिया।
इनके बचाव में सोशल मीडिया पर बैठे इस्लामी कट्टरपंथी भी अपने काम में जुट गए और ऐसी-ऐसी वीडियो की क्लिप काटकर डालने लगे जिसमें उलटा पुलिस को ही दोषी दिखाया जा रहा है और ये समझाया जा रहा है कि अवैध मस्जिद का ढाँचा गिरने पर दंगे कट्टरपंथी मुस्लिम भीड़ ने नहीं किए।
जैसे एक वीडियो क्लिप में आगजनी साफ देखी जा रही है और कुछ लोग क#% जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस क्लिप को दिखाकर ये साबित करने की हो रही है कि इस अवैध मस्जिद हटाए जाने की कार्रवाई पर हिंसा को कट्टरपंथी भीड़ अंजाम नहीं दे रही। बल्कि वो लोग दे रहे हैं जो इन कट्टरपंथियों से घृणा करते हैं।
#Uttarakhand के #Haldwani में 😡 निहत्थी महिलाओं पर पुलिस द्वारा लाठी चार्ज़❌❌👇 #StopBulldozerCulture pic.twitter.com/kb0KQI1P0Z
— Muhammad Mahfooz Alam (@MohdMahfoozNuri) February 8, 2024
इसी तरह एक वीडियो है जिसमें ये दिखाने का प्रयास हो रहा है पुलिस ने निहत्थी बुर्काधारी महिलाओं पर लाठी चार्ज किया तब भीड़ भड़की, जबकि हल्द्वानी की जिलाधिकारी ने अपने बयान में साफ कहा है कि अवैध मस्जिद हटाने की कार्रवाई से पहले ही वहाँ अराजक तत्वों (इस्लामी कट्टरपंथियों) ने हमले की तैयारी की हुई थी। उन्होंने सोचा हुआ था अवैध अतिक्रमण हटाने जब टीम आएगी तो वो हमला करेंगे। उनकी छतों पर पत्थर थे, हाथों में पेट्रोल बम थे।
#Haldwani: Policemen misbehaved and dragged protesting Muslim women in #Haldwani after which the situation escalated.
— Saba Khan (@ItsKhan_Saba) February 9, 2024
Will the media show this visuals? pic.twitter.com/cAm3r2BcRV
अब आप अगर इन इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा किए गए उत्पात या दंगों की कोई भी खबर को पढ़ेंगे तो यही निष्कर्ष पाएँगे कि दंगा उन्हें उकसाने से नहीं होता बल्कि वो तय करके रखते हैं कि कब कौन सी कार्रवाई के बाद उन्हें कैसे हमला करना है। इस पैटर्न में छतों पर खड़े होकर पत्थरबाजी करने का काम बुर्काधारी महिलाओं को दे दिया जाता है और कट्टरपंथी युवक खुद सड़कों पर आ जाते हैं। इसके बाद इनके पास से पेट्रोल बम फेंके जाते हैं। गाड़ियों में आग लगा दी जाती है। पुलिस का घेराव होता है और ठीक उसी तरह से पुलिस को निशाना बनाया जाता है जैसे इस बार हल्द्वानी पुलिस को बनाया गया।
'It needs to be investigated since when did the rioters in #Haldwani plan this murderous onslaught on the police forces. It cannot just be about encroachment, it is about their revolt against Constitutional UCC.
— Pradeep Bhandari(प्रदीप भंडारी)🇮🇳 (@pradip103) February 9, 2024
Whether Delhi Riots 2020, or Haldwani in 2024 the modus operandi… pic.twitter.com/bQUzL3qXQG
अजीब बात ये है कि इंसानियत का नाम लेकर बुर्काधारी महिलाओं के बचाव में सोशल मीडिया पर बैठी टीम को वो फुटेज नहीं मिली जहाँ हमलों में महिला पुलिकर्मियों पर जानलेवा हमले हुए। उन्हें मारने की कोशिश हुई। उन्हें मिली तो ऐसी महिलाओं की वीडियो जो दंगों के वक्त पुलिस के सामने खड़ी थीं। क्या पुलिस ये सोचकर उन्हें तितर-बितर न करती कि वो अवैध ढाँचे की कार्रवाई देखने आई ‘दर्शक’ थीं।
हल्द्वानी के उत्तराखंड में पत्थरबाजी कौन कर रहा "कटुवा" जैसे शब्द कौन बोल रहा है। आप लोग भी सुन लें। #Haldwani #Uttrakhand pic.twitter.com/01rD09a8b8
— Muhammad Zubair ᴾᵃʳᵒᵈʸ (@MhdZubair_) February 8, 2024
दंगों के वक्त 300 से ज्यादा पुलिसकर्मी घायल हुए हैं। ये कोई सामान्य आँकड़ा नहीं है। सोचिए कितने कट्टरपंथियों की अनियंत्रित भीड़ उनपर टूटी होगी जो इतना पुलिस बल मौजूद होकर भी उनका कुछ नहीं कर पाया और जब बचाव में अपनी कार्रवाई की तो सोशल मीडिया पर सवाल खड़े हो गए कि आखिर क्यों बेचारी निहत्थों को लाठी मारी जा रही है। क्या ऐसे में पुलिस को दंगाइयों के सामने खड़े होकर मार खानी चाहिए, जलकर मर जाना चाहिए या फिर स्थिति कंट्रोल करने के लिए उपयुक्त कार्रवाई करनी चाहिए वो चाहे छतों से पत्थर फेंकती बुर्काधारी महिलाओं के खिलाफ हो या फिर पेट्रोल बम लेकर सड़क पर उतरी भीड़ पर।