उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (Prayagraj, Uttar Pradesh) शहर के मध्य मौजूद क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद के बलिदान स्थल के पास हमने अपनी पहली रिपोर्ट में एक दरगाह की जानकारी दी थी। तब हमने बताया था कि कैसे चंद्रशेखर आज़ाद पार्क के मुख्य गेट पर मौजूद वक्फ बोर्ड की एक दरगाह में मर्दों को टोपी पहन कर आने का फरमान लिखा गया है। इस पार्क की पड़ताल के बाद हम स्थान की तरफ आगे बढ़े, जहाँ चंद्रशेखर आज़ाद का अंतिम संस्कार हुआ था। यहाँ पर जो कुछ दिखा वो काफी हैरान कर देने के साथ सोच से भी परे था। पढ़िए इस सीरीज का दूसरा हिस्सा।
27 फरवरी, 1931 को स्वतंत्रता संग्राम लड़ने वाले बलिदानी ने जब अंतिम गोली खुद को मारी तब काफी देर बाद आज़ाद नाम से ही डरे अंग्रेज उनके पार्थिव शरीर तक जाने का साहस कर पाए थे। आख़िरकार कुछ देर बाद आज़ाद के वीरगति की खबर पूरे शहर में फ़ैल गई। भाव विह्वल हजारों लोग अपने घरों से बाहर निकल आए। वो लोग अपने लिए बलिदान हुए उस आज़ाद को देखना चाहते थे, जिनका उन्होंने नाम भर सुना था।
आख़िरकार कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के भीड़ जन सैलाब गगनचुम्बी नारों के साथ चंद्रशेखर आज़ाद के पार्थिव शव को ले कर रसूलाबाद श्मशान घाट की तरफ बढ़ा।
कहाँ है रसूलाबाद घाट
रसूलाबाद श्मशान घाट प्रयागराज से लखनऊ मार्ग पर ‘चंद्रशेखर आज़ाद पार्क’ यानी उनके बलिदान स्थल से लगभग 6 किलोमीटर दूर है। यह स्थान मुख्य सड़क से लगभग 1 किलोमीटर अंदर है जहाँ तेलियरगंज नाम की प्रसिद्ध बाजार के अंदर से जाया जाता है। बेहद प्राचीन बताया जाने वाला यह शमशन घाट गंगा नदी के किनारे बना हुआ है। इसी घाट के पास रहने वाले प्रयागराज के मनोज शुक्ला ने हमें बताया कि उनके पूर्वज बताते थे कि चंद्रशेखर आज़ाद को जब रास्ते से लाया जा रहा था तब उनके पार्थिव शव पर रास्ते में लोग फूल बरसा रहे थे।
रसूलाबाद श्मशान घाट पर आज़ाद के शव का विधि-विधान से अंतिम संसार किया गया था। मनोज के मुताबिक, दाह संस्कार के बाद प्रयागराज वासी श्रद्धा भाव से सहेज कर रखने के लिए चंद्रशेखर आज़ाद की चिता से एक एक चुटकी राख तक उठा ले गए थे।
आज़ाद के किसी अनुयायी ने बनवाया था स्मारक
जब हम रसूलाबाद श्मशान घाट के उस स्थान पर पहुँचे जहाँ कभी चंद्रशेखर आज़ाद का अंतिम संस्कार हुआ था, तब वहाँ के हालात दयनीय दिखे। जिस स्थान पर क्रांतिकारी आज़ाद का दाह संस्कार हुआ था, वहाँ स्वतंत्र भारत में काफी समय पहले उनके ही किसी अनुयायी ने एक स्मारक बनवा दिया था। मीनारनुमा यह स्मारक लगभग 20 फ़ीट ऊँचा है और 4 से 5 फ़ीट चौड़ा। स्मारक के आस-पास लगभग 10 मीटर वर्ग क्षेत्र में लोहे की आधी-अधूरी ग्रिल से स्मारक को सहेजने का भी प्रयास किया गया है।
उसी स्थान पर कुछ सीमेंट की बेंच बनाई गईं हैं और मार्बल आदि से जगह को सुंदर बनाने का प्रयास किया गया है। स्मारक के बगल चंद्रशेखर आज़ाद की एक अन्य मूर्ति लगाई गई है।
बद से बदतर हैं आज़ाद का अंत्येष्टि स्थल
गुरुवार (9 फरवरी 2023) को ऑपइंडिया की टीम चंद्रशेखर आज़ाद की अंत्येष्टि स्थल पर थी। हमें वहाँ के हालत बेहद दयनीय दिखे। क्रांतिकारी की दाह स्थली पर आवारा कुत्ते घूम रहे थे और लोग जूते पहन कर उनके स्मारक के पास खड़े थे। दाह स्थली के आस-पास धूल और कंकड़ पड़े थे जैसे कई वर्षों से वहाँ सफाई नहीं हुई हो। कुछ आम लोगों द्वारा काफी पहले आज़ाद की अंत्येष्टि स्थल का रंग-रोगन करवाया गया था। स्मारक के पास बनी सीमेंट बेंच भी जर्जर हालत में थीं। वहाँ कुछ लोगों ने बीड़ी और सिगरेट पी कर उसके अवशेष छोड़ रखे थे।
हमने इस जगह की दुर्दशा अपने फेसबुक पर LIVE आ कर भी दिखाने का प्रयास किया।
बरसात में नदी में डूब जाती है दाह स्थली
इस स्मारक से सट कर बनी चंद्रशेखर आज़ाद की मूर्ति की हालत और दयनीय थी। मूर्ति पर आस-पास कभी जले दीयों की वजह से कालिख जम गई है। ये कालिख आज़ाद की मूर्ति के हाथों, पेट और चेहरे तक फैली हुई है। मूर्ति का निर्माण भी अधर में छोड़ दिया गया है, जिसमें ठीक से न तो प्लास्टर है और न ही रंगाई-पुताई। आस-पास लगे लोहे के छोटे-छोटे अवरोधक भी सिर्फ लोगों के बैठने के काम आते हैं। स्थानीय लोगों ने हमें यह भी बताया कि बरसात में अक्सर जब नदी बढ़ती है तब क्रांतिकारी आज़ाद के स्मारक का बड़ा हिस्सा नदी में डूब जाता है।
कभी नहीं आता कोई नेता या अधिकारी
चंद्रशेखर आज़ाद की दाह स्थली से सटी चाय और बिस्किट की छोटी-छोटी दुकानें हैं। जब हमने उन दुकानदारों से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने कैमरे पर कुछ भी बोलने से मना कर दिया। हालाँकि, ऑफ़ कैमरा दुकानदारों ने हमें बताया कि उन्होंने कभी किसी प्रशासनिक अधिकारी या नेता-मंत्री आदि को उस दाह स्थली पर आते नहीं देखा। दबी जुबान से दुकानदारों ने स्मारक को भव्य बनवाने की इच्छा जताई। उनका कहना था कि ऐसा करने से लोगों का आवागमन बढ़ेगा जो उनके व्यापार के लिए भी सही रहेगा।
दुखद ये भी रहा कि आज़ाद की दाह स्थली पर जूता उतारने की निजी तौर पर दी गई सलाह को भी कइयों ने अनसुना कर दिया। इस पूरे मामले में हमने चंद्रशेखर आज़ाद के परिजन अमित शेखर आज़ाद से बात की। उनसे हुई चर्चा को हम इस सीरीज के भाग 3 में प्रकाशित करेंगे।