Friday, March 29, 2024
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क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद के बलिदान स्थल वाले पार्क में वक्फ बोर्ड वाली दरगाह; मर्दों को टोपी पहन कर ही घुसने का फरमान

बात दें कि अक्टूबर 2021 में साल हाईकोर्ट के आदेश पर चंद्रशेखर पार्क के अंदर बने मस्जिद, मजार, 14 कब्र सहित दर्जन भर अवैध अतिक्रमणों को तोड़ा गया था। हाईकोर्ट ने साल 1975 के बाद बने अवैध निर्माणों को हटाने का निर्देश दिया था। इसके बाद भी यह मजार नजर आ रहा है।

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (Prayagraj, Uttar Pradesh) में चल रहा माघ मेला अब समापन की ओर है। इस माघ मेले (Magh Mela) में सुविधा और सुरक्षा को लेकर अधिकतर संत और श्रद्धालु शासन और प्रशासन से संतुष्ट दिखे। ऑपइंडिया की टीम ने भी धर्मक्षेत्र कहे जाने वाले माघ मेले का दौरा किया।

काफी चीजों में जहाँ शासन-प्रशासन के कार्य सराहनीय पाए गए तो एकाध स्थान ऐसे भी रहे, जो लगा कि सरकार की नजर से छूट गए। इन्हीं स्थानों में सबसे प्रमुख है प्रयागराज में क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद से जुड़े स्थान। हमने उन बिंदुओं की तरफ सरकार का ध्यान आकर्षित करने का फैसला किया है। प्रस्तुत है भाग ..

अधिकतर स्थान अंग्रेजों के नाम पर

गुरुवार (9 फरवरी 2023) को हम उस चंद्रशेखर आज़ाद पार्क में थे, जहाँ 27 फरवरी 1931 को अंग्रेजों से लड़ते हुए आज़ाद ने वीरगति पाई थी। यहाँ ये बात गौर करने योग्य है कि चंद्रशेखर आजाद को घेरकर खुद को गोली मारने पर मजबूर करने वालों में अधिकतर सिपाही भारतीय थे।

ये भारतीय सिपाही ब्रिटिश अफसर नॉट बावर के अधीनस्थ लड़ रहे थे। उन्हीं में एक प्रमुख नाम इंस्पेक्टर विश्वेश्वर सिंह का है, जो उस समय कर्नलगंज थाने का SHO हुआ करता था। उस कर्नलगंज थाने का नाम आज भी ज्यों-का-त्यों ही है।

थाना कर्नलगंज, प्रयागराज (फाइल फोटो)

प्रयागराज न सिर्फ चंद्रशेखर आज़ाद, बल्कि उनके साथी पंडित रामप्रसाद बिस्मिल के नाम से विख्यात रामप्रसाद सिंह तोमर सहित कई अन्य वीरों की कर्मभूमि रहा है। हालाँकि, यहाँ घूमते हुए आपको कई स्थानों के नाम अभी भी अंग्रेजों के नाम पर मिल जाएँगे। इनमें स्टैनली रोड, कर्नलगंज, मम्फोर्डगंज, बेली रोड व अस्पताल और एलनगंज आदि प्रमुख हैं।

पार्क में घुसते ही दरगाह

चंद्रशेखर आज़ाद पार्क का मुख्य द्वार गेट नंबर 1 है। यहाँ से पार्क में घुसने वालों को 0 किलोमीटर का बोर्ड भी लगा दिखाई देता है। जैसे ही गेट नंबर 1 से कोई पार्क में प्रवेश करता है, वैसे ही उसे पार्क प्रशासन और DM प्रयागराज का बोर्ड लगा मिलता है।

इस बोर्ड में साफ तौर पर हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए लिखा गया गया है कि उस स्थान का प्रयोग सिर्फ पार्क के लिए होगा। हालाँकि, इसी बोर्ड से महज 50 मीटर की दूरी पर हमें एक मजार दिखी जहाँ कई लोग जियारत करते दिखाई दिए।

दरगाह का बाहरी हिस्सा

वसीम हैं दरगाह के खादिम

जैसे ही हम मज़ार के अंदर गए तो वहाँ हमें कुछ लोग एक कुएँ के पास घेरा लगाए बैठे मिले। दरगाह 2 हिस्सों में थी और दूसरे भाग में कुछ लोग एक कब्र को घेरे हुए थे। हमने वहाँ के खादिम से बात करनी चाही तो वसीम नाम के व्यक्ति से हमने मिलवाया गया।

वसीम ने हमें दरगाह को औरंगजेब के जमाने का बताया। वहाँ जियारत कर रहे लोगों के बारे में वसीम ने दावा किया कि दरगाह पर आने वालों की हर मनोकामना पूरी होती है। खादिम वसीम ने हमें बताया कि वो सरकार से चाहते हैं कि मज़ार को व्यापक रूप दिया जाए।

दरगाह के खादिम वसीम और उनके सहयोगी

सुन्नी वक्फ बोर्ड का लगा है पोस्टर

जब हमने खादिम वसीम को मजार के बारे में और बताने के लिए कहा तो उन्होंने हमें एक बोर्ड दिखाया, जिस पर सुन्नी वक्फ बोर्ड लिखा हुआ था। हमने बोर्ड को पूरा पढ़ा तो उसमें अरबी भाषा में 786 के बाद वो जगह हजरत शंदल शाह और गुलाब शाह बाबा की दरगाह लिखी हुई थी।

दरगाह की जगह कम्पनी बाग़ यानी चंद्रशेखर आज़ाद पार्क के अंदर बताई गई। इस बोर्ड में दावा किया गया है कि गुलाब शाह और शंदल शाह 1857 की क्रान्ति में अंग्रेजों से लड़ते हुए शहीद हुए थे। हालाँकि, हमने पार्क प्रशासन से इस दावे के संबंध में सबूत माँगे तो उनके पास यह मौजूद नहीं था।

वक्फ बोर्ड वाली दरगाह

उर्दू में है, पढ़ नहीं पाओगे

1857 की क्रांति में गुलाब शाह और शंदल शाह की शहादत के बारे में जब हमने मजार के खादिम वसीम से कुछ सबूत दिखाने के लिए कहा तो उन्होंने टाल दिया। खादिम वसीम बोले, “कागज उर्दू में है। पढ़ नहीं पाओगे।”

सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के इस पोस्टर के मुताबिक, यह जगह पहले रसूलपुर व समदाबाद नाम से जानी जाती थी। इसी बोर्ड में दरगाह के लिए सहयोग की अपील की गई है। खादिम के तौर पर बोर्ड में किसी जमील खाँ का नाम लिखा हुआ था। हालाँकि, खुद को खादिम बता रहे वसीम ने यह बोर्ड उखाड़ कर अंदर रखा हुआ था।

दरगाह से सट कर पार्क को पार्क ही रखने का हाईकोर्ट के हवाले से आदेश

मर्द टोपी पहने और औरतें न छुएँ मजार

इस मजार के गेट मुख्य पर शंदल शाह का नाम हजरत सैयद फ़िरोज़ अली बाबा रहमत उल्लाह अलैह के तौर पर भी दर्ज है। मजार के बाहर साफ तौर पर आदेश है कि मर्द अंदर घुसने से पहले सिर पर टोपी रखें और औरतें पल्लू।

इसमें औरतों को साफ़ तौर पर आदेश है कि वो मजार का पीछा करके न जाएँ और आगे से आएँ। औरतों को मजार छूने से भी साफ मना किया गया है। यहाँ जो चंदा देना चाहते हैं, उसके लिए एक गुल्लक रखा हुआ है।

दरगाह के निर्देश

बाहर फूल बेच रही महिला लम्बे समय से बीमार

हालाँकि, मजार के खादिम वसीम का कहना था कि वहाँ आने के बाद तमाम समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है, लेकिन मजार के बाहर लम्बे समय से फूल बेचने वाली महिला खुद को लम्बे समय से बीमार बता रही थी।

दरगाह के ही एक सदस्य से लम्बी बातचीत की रिकॉर्डिंग ऑपइंडिया के पास मौजूद है, जिसमें वो तमाम दवा लेने और अस्पतालों के चक्कर लगाने की जानकारी दे रही है। हैरानी की बात ये रही कि दरगाह का नियमित सदस्य ही उस महिला को अच्छे डॉक्टर के पास जाने की सलाह दे रहा था।

दरगाह में माँगी जा रही दुआ

बात दें कि अक्टूबर 2021 में साल हाईकोर्ट के आदेश पर चंद्रशेखर पार्क के अंदर बने मस्जिद, मजार, 14 कब्र सहित दर्जन भर अवैध अतिक्रमणों को तोड़ा गया था। हाईकोर्ट ने साल 1975 के बाद बने अवैध निर्माणों को हटाने का निर्देश दिया था।

इन अवैध निर्माणों को हटाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता जितेंद्र सिंह बिसेन याचिका दाखिल की थी। उन्होंने याचिका में कहा था कि इतने महान स्वतंत्रता सेनानी से जुड़े इस पार्क पर अतिक्रमण होना मामूली घटना नहीं है। एक साजिश के तहत इस पर कब्जा किया जा रहा है।

बता दें कि कि चंद्रशेखर आजाद पार्क 133 एकड़ में फैला है। अवैध अतिक्रमण हटाने से पहले लगभग 25-30 साल पहले वहाँ मस्जिद, मजार और कब्र बना दिए गए थे। उस दौरान वहाँ लगभग 20 मजार व तीन मस्जिद बनाई जा चुकी थीं।

हालाँकि, यहाँ बने मजार पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अपना दावा किया है। सितंबर 2022 में मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट में एक याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि ये मजार 200 साल पुराना है। हालाँकि, स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मजार अवैध है।

प्रयागराज में ही मौजूद चंद्रशेखर आज़ाद से जुड़े एक अन्य भूले-बिसरे स्थान की चर्चा हम अपनी अगली रिपोर्ट में करेंगे।

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राहुल पाण्डेय
राहुल पाण्डेयhttp://www.opindia.com
धर्म और राष्ट्र की रक्षा को जीवन की प्राथमिकता मानते हुए पत्रकारिता के पथ पर अग्रसर एक प्रशिक्षु। सैनिक व किसान परिवार से संबंधित।

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