हिन्दू हितों के लिए काम करने वाले सुप्रीम कोर्ट के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा है कि 1991 में लाया गया प्लेसेस ऑफ़ वरशिप एक्ट असंवैधानिक है। उन्होंने कहा है कि इसमें मंदिरों और बाकी धार्मिक स्थलों की जोस्थिति को तय करने वाली जो तारीख रखी गई है, वह गलत है। जैन ने इस कानून को नागरिक अधिकारों का हनन बताया है।
वकील विष्णु शंकर ने इस मामले में हिन्दू पक्ष की तरफ से बहस कर रहे हैं। उन्होंने कोर्ट से माँग की है कि इस कानून को असंवैधानिक घोषित किया जाए। इस संबंध में गुरुवार (5 दिसम्बर, 2024) को हुई सुनवाई के बाद उन्होंने इसकी कमियाँ भी गिनवाई हैं।
विष्णु शंकर जैन ने मीडिया से कहा, “हमने प्लेसेस ऑफ़ वरशिप एक्ट 1991 की संवैधानिक मान्यता को चुनौती दी है। हमारा कहना है कि इस एक्ट का जो मतलब जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द बता रहा है, वह असंवैधानिक है। दूसरी सबसे जरूरी बात यह है कि इस एक्ट में कट ऑफ की तारीख 15 अगस्त, 1947 क्यों है, यह तारीख 712 ईस्वी क्यों नहीं है?”
#WATCH | Delhi | On Places Of Worship Act Hearing In SC, Advocate Vishnu Shankar Jain says, “We have challenged the constitutional validity of the Place of Worship Act 1991. We say that the interpretation of the Place of Worship Act given by Jamiat-Ulama-I-Hind that you cannot go… pic.twitter.com/WGifnzax4R
— ANI (@ANI) December 5, 2024
जैन ने आगे कहा, “जब मुहम्मद बिन कासिम ने भारत में मंदिरों में तोड़ा था, वही तारीख कट ऑफ होनी चाहिए। कट ऑफ की तारीख 15 अगस्त, 1947 होनी ही नहीं चाहिए। यह असंवैधानिक है। संसद को ऐसा क़ानून बनाने की कोई शक्ति नहीं है जो लोगों को अदालत जाने से रोकता है। यह संविधान के मूल ढाँचे और संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ है।”
गौरतलब है कि प्लेसेस ऑफ़ वरशिप एक्ट को लेकर 6 याचिकाएँ दायर की गई हैं। हिन्दू पक्ष की इनकी तरफ से विष्णु शंकर जैन बहस कर रहे हैं। इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की तीन सदस्यों वाली बेंच कर रही है। कानून के समर्थन में जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द भी सुप्रीम कोर्ट में है।
क्या है 1991 का प्लेसेस ऑफ़ वरशिप एक्ट?
पूजास्थल अधिनियम, 1991 या फिर प्लेसेस ऑफ़ वरशिप एक्ट, 1991 पीवी नरसिम्हा राव की अगुवाई वाली कॉन्ग्रेस सरकार 1991 में लेकर आई थी। इस कानून के जरिए किसी भी धार्मिक स्थल की प्रकृति यानी वह मस्जिद है मंदिर या फिर चर्च-गुरुद्वारा, यह निर्धारित करने को लेकर नियम बनाए गए हैं।
इस कानून के अनुसार, देश के आजाद होने के दिन यानी 15 अगस्त, 1947 को जिस धार्मिक स्थल की स्थिति जैसी थी, वैसी ही रहेगी। यानि इस दिन यदि कोई स्थान मस्जिद था तो वह मस्जिद रहेगा। कानून में कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति किसी धार्मिक स्थल का स्वरुप बदलने की कोशिश करेगा तो उसकी 3 वर्ष तक का कारावास हो सकता है।
इसी कानून में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति यदि किसी धार्मिक स्थल के स्वरुप के बदलने को लेकर याचिका कोर्ट में लगाएगा तो वह भी नहीं मानी जाएगी। यानि कोई भी व्यक्ति किसी मस्जिद के मंदिर होने का दावा नहीं कर सकता या फिर किसी मंदिर के मस्जिद होने का दावा नहीं किया जा सकता।
कानून में यह भी स्पष्ट तौर पर कहा है कि यदि यह स्पष्ट तौर पर साबित हो जाए कि इतिहास में किसी धार्मिक स्थल की प्रकृति में बदलाव किए गए थे तो भी उसका स्वरुप नहीं बदला जाएगा। यानी यह सिद्ध भी हो जाए कि किसी मंदिर को इतिहास में तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी तो भी उसे अब दोबारा मंदिर में नहीं बदला जा सकता।
कुल मिलाकर यह कानून कहता है कि 1947 के पहले जिस भी धार्मिक स्थल में जो कुछ बदलाव हो गए या फिर उस दिन जैसे थे, वह वैसे ही रहेंगे। उनके ऊपर अब कोई दावा नहीं किया जा सकेगा। इसी कानून में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद को छूट दी गई थी।
इस कानून में कई छूट भी दी गई हैं। यह कानून कहता है कि यदि किसी धार्मिक स्थल में बदलाव 15 अगस्त, 1947 के बाद हुए हैं तो ऐसे में कानूनी लड़ाई हो सकती है। इसके अलावा ASI द्वारा संरक्षित स्मारकों को लेकर भी इसमें छूट दी गई है।
विरोध क्यों हो रहा, क्या कहा विरोध में?
प्लेसेस ऑफ़ वरशिप एक्ट का विरोध कोई नई बात नहीं है। इस कानून के पास किए जाने के समय ही इसका विरोध भाजपा ने किया था। हिन्दू संगठनों ने तब भी इसको लेकर आपत्ति जताई थी। अब इस कानून के खिलाफ लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गई है।
इस कानून को हिन्दुओं की तरफ से सुब्रमण्यम स्वामी, अश्विनी उपाध्याय और बाकी संगठनों ने चुनौती दी है। वहीं मुस्लिमों की तरफ से आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत ने याचिका दायर की है। इस मामले में नई याचिका ज्ञानवापी मस्जिद कमिटी ने दायर की है। उसका कहना है कि वह भी प्रभावित है।
मुस्लिम चाहते हैं कि इस कानून के खिलाफ दायर की गई याचिकाएँ खारिज कर दी जाएँ और कानून को पूरी तरह से लागू किया जाए। उनका कहना है कि कानून के तहत अब किसी भी मुस्लिम मजहबी स्थल पर दावा नहीं किया जाना चाहिए।
वहीं हिन्दू पक्ष ने कहा है कि इस कानून के जरिए उन सभी धार्मिक स्थलों को कानूनी मान्यता दे दी गई जिनका स्वरुप 1947 से पहले बदल दिया गया था। हिन्दू पक्ष ने कहा है कि इस कानून की धारा 2,3 और 4 को रद्द कर दिया जाए। हिन्दू पक्ष ने कहा है कि कानून के चलते उन धार्मिक स्थलों को भी वह वापस नहीं ले सकते, जिनको आक्रांताओं ने तोड़ा था।
हिन्दू पक्ष ने इस कानून को संसद में पास किए जाने का भी विरोध किया है। हिन्दू पक्ष का कहना है कि यह ऐसा कानून है जो लोगों को न्यायालय के दरवाजे खटखटाने से रोकता है ऐसे में यह असंवैधानिक है। हिन्दू पक्ष ने इसके अलावा कानून की संवैधानिकता पर भी प्रश्न उठाए हैं।