जमीयत उलमा ए हिन्द के राम जन्मभूमि मंदिर पर आए निर्णय को चुनौती देने के फैसले को मुस्लिम समुदाय के भीतर से ही समर्थन नहीं मिल पा रहा है। केंद्रीय शिया वक़्फ़ बोर्ड के मुखिया वसीम रिज़वी ने मंगलवार (3 दिसंबर, 2019) को बयान दिया है कि यह कदम जमीयत ने केवल साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के लिए उठाया है।
“हर किसी को पता है कि इस पुनर्विचार याचिका पर कोई फैसला नहीं आएगा, क्योंकि कोई भी फ़ैसला इस आए हुए फ़ैसले से बेहतर नहीं हो सकता था। यह पुनर्विचार याचिका केवल नफ़रत के बीज बोने के लिए डाली गई है।”
Just to sow a seed of hatred: Waseem Rizvi after Jamiat Ulema-e-Hind files review plea against Ayodhya verdict.https://t.co/TTVm3FcCgc
— TIMES NOW (@TimesNow) December 3, 2019
गौरतलब है कि कल (सोमवार, 2 दिसंबर, 2019 को) सुप्रीम कोर्ट में जमीयत ने सुप्रीम कोर्ट के ही द्वारा दिए गए रामजन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसले के खिलाफ़ पुनर्विचार याचिका दायर की है। 9 नवंबर, 2019 को आए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में पूर्व में विवादित रहे रामजन्मभूमि मंदिर परिसर के पूरे 2.77 एकड़ का मालिकाना हक मंदिर के देवता रामलला विराजमान को दे दिया था, और उनके मंदिर के निर्माण के लिए केंद्र सरकार को तीन महीने में न्यास का गठन कर अदालत को सूचित करने का आदेश दिया था।
अदालत ने मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही 5 एकड़ जमीन देने का भी आदेश दिया था, क्योंकि मंदिर स्थल पर खड़ी बाबरी मस्जिद को 6 दिसंबर, 1992 को अवैध रूप से ढहा दिया गया था।
टाइम्स नाउ ने अपने पास मौजूद जमीयत की याचिका की कॉपी के आधार पर दावा किया है कि जमीयत ने इस फैसले को त्रुटिपूर्ण बताया है। उनके मुताबिक इससे अन्य के अलावा बाबरी मस्जिद तोड़ने वालों को (दंड की जगह) राहत मिल गई। इसके अलावा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी आगामी सोमवार को पुनर्विचार याचिका दायर कर सकता है। गौरतलब है कि आगामी सोमवार (9 दिसंबर, 2019) को ही एक महीने के भीतर पुनर्विचार याचिका दायर करने की अंतिम तिथि समाप्त हो रही है। कुछ दिन पहले ही मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी (बीएमसी) के संयोजक एडवोकेट ज़फ़रयाब जीलानी ने इस आशय से जानकारी मीडिया को दी थी।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया को दिए गए अपने इंटरव्यू में उन्होंने सवाल उठाया था कि “अवैध रूप से घुस आई” मूर्ति को भला अदालत देवता कैसे मान सकती है। उन्होंने दावा किया कि इस तरह ‘जबरन’ मूर्ति को (उस समय, 1949 में) विवादित रहे ढाँचे में स्थापित कर वहाँ बनी बाबरी मस्जिद का अपमान किया गया है।”
जीलानी का दावा है कि उनकी याचिका तत्कालीन मस्जिद के मुख्य गुंबद में रखी गई मूर्ति को देवता का दर्जा देने के विरोध पर आधारित होगी। उनका मानना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस बिंदु पर ध्यान दिया होता तो उनका फैसला अलग होता। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी याचिका समयसीमा 9 दिसंबर से पहले ही आएगी।