इस्लाम मजहब त्यागकर सनातन धर्म स्वीकार करने वाले सैयद वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र नारायण त्यागी ने कहा कि मदरसे बंद करने के उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया गया तो और 15-20 सालों में देश में मुस्लिम इंकलाब आएगा और उन्हें एक और जमीन का टुकड़ा देना पड़ेगा। उन्होंने आरोप लगाया कि आज मदरसों में ISIS की विचारधारा पढ़ाई जा रही है और बच्चों को जेहाद के लिए ट्रेंड किया जा रहा है।
हिंदुस्तान टाइम्स को दिए साक्षात्कार में त्यागी ने कहा, “मदरसों में पहली पढ़ाई कुरान की होती है। मदरसों में कुरान पढ़ाया नहीं, समझाया जाता है। इसका परिणाम ये हो रहा है कि छोटे-छोटे बच्चे जहनी (दिमागी) तौर पर कट्टर होते जा रहे हैं। वक्त पड़ी तो वे बंदूक भी उठाएँगे।”
उन्होंने आगे कहा, “मदरसों में जो चीजें बच्चों को पढ़ाई जा रही हैं और इस कारण जो खून-खराबा और जिहाद हो रहा है, ये सब कुरान की देन है। कुरान में अल्लाह का स्पष्ट आदेश है कि जो अल्लाह में यकीन नहीं करता, मोहम्मद को रसूल नहीं मानता, अल्लाह की किताब पर भरोसा नहीं करता, उससे जिहाद करो।”
रिजवी ने कहा, “जो आतंकी किताब है उसे फॉलो करके पूरी दुनिया में आतंक मचा हुआ है और इन लोगों का जेहाद इसी पर कायम है। अल्लाह की तरफ से ये हमारी ड्यूटी है कि जो इस पर विश्वास ना करे, उससे मुस्लिम जिहाद करें। कुरान को हम डिफेम नहीं, इसको लेकर लोगों को अलर्ट कर रहे हैं।”
रिजवी ने बताया कि यही सोचकर वे कुरान की 26 आयतों को हटाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गए थे, लेकिन वहाँ मामला खारिज कर उन पर जुर्माना लगा दिया गया। उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट को मेरे प्वॉइंट पर नोटिस लेना चाहिए था। उनके आदेश से मैं संतुष्ट नहीं था। पचास हजार पेनाल्टी लगाई, मैंने जमा की। लेकिन ये थोड़े ना है कि मेरा दिल मुतमईन (संतुष्ट) हो गया इस ऑर्डर से। मेरे दिल के ऊपर ऑर्डर थोड़े ना कर सकते हो।”
रिजवी ने बताया कि उनके सनातन धर्म अपनाने से पहले ये सवाल उठा था कि वे किस जाति में जाएँगे, तब डासना मंदिर के महंथ यति नरसिंहानंद के पिता ने उन्हें एडॉप्ट करते हुए त्यागी समाज में स्वीकार करने की बात कही थी। रिजवी ने कहा, “सनातनी बनने के लिए तो मैं किसी भी जाति में जाने के लिए तैयार था। अगर लोअर कास्ट भी मुझे एडॉप्ट करता तो मैं उसे स्वीकार कर लेता।”
उन्होंने आतंकवाद खत्म करने को अपना राजनीतिक एजेंडा बताया। रिजवी ने कहा, “मेरा पोलिटिकल एजेंडा यही है कि मुस्लिमों की ताकत को हिंदुस्तान में कम करना है, क्योंकि हर मस्जिद में, हर मदरसे में आईएसआईएस की ट्रेनिंग हो रही है। एक बहुत बड़ी साजिश हो रही है, जिसे सेक्युलर नहीं समझ पाएँगे।”
46 साल बाद इस्लाम छोड़ने के सवाल पर रिजवी ने कहा कि अगर राम मंदिर का मामला न आता तो शायद ये भी ना होता। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने अपनी किताब में उन्होंने किसी की तौहीन नहीं की है। रिजवी ने कहा, “मोहम्मद को प्रोफेट कहकर हमारी सोच की तौहीन की जा रही है।”
साक्षात्कार में रिजवी ने कहा कि अगर राममंदिर का मुद्दा सामने नहीं आता तो वे शायद सनातनी भी नहीं बनते। उन्होंने कहा कि विवाद के बीच उन्होंने कुरान का अध्ययन किया और उसे समझने के बाद इस्लाम त्याग करने का विचार किया।
उन्होंने बताया कि मुस्लिम भी इस बात को मानते थे कि अयोध्या में अगर उनके पक्ष में फैसला आ जाता है, फिर में वहाँ स्थापित रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जा सकता, क्योंकि इससे खून-खराबा हो जाता। रिजवी ने बताया कि बाबरी ढाँचा के मुद्दे को मुस्लिम इसलिए भी नहीं छोड़ना चाहते थे, क्योंकि इससे हिंदू उन मस्जिदों पर भी दावा करने लगते, जो हिंदू मंदिरों को तोड़कर बनाए गए हैं।
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