Sunday, November 17, 2024
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शुक्र है मीलॉर्ड ने भी माना कि वो इंसान हैं! चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखने को कर्नाटक हाई कोर्ट ने नहीं माना था अपराध, अब बदला फैसला

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में भी एक ऐसा ही मामला आया था। इस पर सुनवाई करते हुए इस साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बच्चों द्वारा अश्लील वेबसाइट देखना अपराध नहीं है, लेकिन इस प्रकार की सामग्री में बच्चों का इस्तेमाल किया जाना अपराध है। दरअसल, यह मामला मद्रास हाई कोर्ट के एक फैसले को चुनौती देने से संबंधित थी।

कर्नाटक हाईकोर्ट ने ऑनलाइन चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखने देखने को लेकर दिए अपने आदेश को वापस ले लिया है। जस्टिस एम. नागप्रसन्ना की पीठ ने कहा कि जज भी मानव हैं, उनसे भी गलतियाँ हो सकती हैं। दरअसल, हाई कोर्ट ने 10 जुलाई को दिए अपने आदेश में कहा था कि ऑनलाइन चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67B के तहत अपराध नहीं हो सकता है।

न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने शुक्रवार (19 जुलाई 2024) को निर्णय वापस लेते हुए कहा, “हम भी इंसान हैं और हमसे भी गलतियाँ होती रहती हैं। सुधार का मौका हमेशा मिलता है। इस संबंध में जाँच की जाएगी और नया ऑर्डर दिया जाएगा। यह ऑर्डर रद्द किया जाता है।” उन्होंने आगे कहा, “इस न्यायालय ने धारा 67B (B) पर ध्यान दिए बिना आदेश पारित कर दिया, यह एक त्रुटि है।”

जस्टिस नागप्रसन्ना ने एन. इनायतुल्ला के खिलाफ आरोपों को खारिज कर दिया था। जस्टिस नागप्रसन्ना ने कहा था कि केवल ऑनलाइन अश्लील सामग्री को देखने भर से कोई आरोपित नहीं हो जाता है। उन्होंने कहा था कि सूचना प्रौद्योगिकी की धारा 67B के तहत मुकदमा चलाने के लिए सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करना जरूरी होता है। अदालत के इस फैसले की काफी आलोचना हुई थी।

राज्य सरकार ने अदालत में एक रिकॉल आवेदन दायर किया। इसके बाद अदालत ने पाया कि उसके फैसले में सूचना प्रौद्योगिकी की धारा 67B के उपबंध (B) पर ध्यान ही नहीं दिया गया था। इस उपबंध में कहा गया है कि बच्चों को अश्लील या यौन रूप से चित्रित करने वाली सामग्री का निर्माण, संग्रह, खोज, ब्राउज, डाउनलोड, विज्ञापन, प्रचार, आदान-प्रदान या वितरण करना धारा 67B के दायरे में आता है।

कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा कि धारा 67B(B) इस मामले के लिए प्रासंगिक है। इसके साथ ही यह भी कहा कि प्रारंभिक निर्णय में इस प्रावधान पर विचार नहीं करके गलती की गई थी। इसके कारण कार्यवाही को निरस्त किया गया है। इसके बाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश एम प्रसन्ना ने अपने पुराने आदेश को रद्द कर दिया।

क्या है मामला?

दरअसल, एम इनायतुल्ला ने 23 मार्च 2023 को दोपहर 3.30 से 4.40 बजे के बीच अपने मोबाइल फोन पर बच्चों की अश्लील तस्वीरें देखी थीं। इस संबंध में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा को रोकने के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए गए पोर्टल के जरिए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने जानकारी प्राप्त की। इसके बाद बेंगलुरु के साइबर क्राइम स्टेशन को एक रिपोर्ट भेजी।

इस रिपोर्ट की पुष्टि होने के बाद जाँच में बच्चों के अश्लील वीडियो देखने वाले व्यक्ति का नाम इनायतुल्ला पाया गया। इनयातुल्ला के खिलाफ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67B (B) के तहत 3 मई 2023 को बेंगलुरु साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज की गई। इसके बाद आरोपित ने शिकायत रद्द करने की माँग करते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था।

चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर सुप्रीम कोर्ट भी कर चुका है टिप्पणी

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में भी एक ऐसा ही मामला आया था। इस पर सुनवाई करते हुए इस साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बच्चों द्वारा अश्लील वेबसाइट देखना अपराध नहीं है, लेकिन इस प्रकार की सामग्री में बच्चों का इस्तेमाल किया जाना अपराध है। दरअसल, यह मामला मद्रास हाई कोर्ट के एक फैसले को चुनौती देने से संबंधित थी।

दरअसल, मद्रास हाई कोर्ट के न्यायाधीश N आनंद वेंकटेश ने 11 जनवरी 2024 को एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि चाइल्ड पॉर्न डाउनलोड करना और इसे प्राइवेट में देखना पॉक्सो एक्ट (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) और IT (सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम) के तहत अपराध नहीं है। पॉर्नोग्राफी के लिए बच्चे का इस्तेमाल किया जाता है, तभी पॉक्सो के तहत मामला बनेगा।

मद्रास हाई कोर्ट जाति-वर्ण पर अपने फैसले में कर चुका है संशोधन

इससे पहले मद्रास हाई कोर्ट ने इस साल अपने और निर्णय में संशोधन किया था। यह निर्णय जाति प्रथा और वर्ण आश्रम से संबंधित था। मद्रास हाई कोर्ट की न्यायमूर्ति अनीता सुमंत ने कहा था कि जाति व्यवस्था में समस्या है लेकिन यह व्यवस्था एक सदी से भी कम पुरानी है और इसका दोष पुरातन वर्ण व्यवस्था पर नहीं मढ़ा जा सकता।

इसको लेकर सवाल उठने लगे तो मद्रास हाई कोर्ट ने इस फैसले में संशोधन किया। अपने नए फैसले में हाई कोर्ट ने लिखा गया है, “जातियों का वर्गीकरण, जैसा कि हमें आज दिखता है, काफी नई और हालिया सोच है।” यह आदेश हिंदू मुन्नानी संस्था द्वारा उदयानिधि स्टालिन, तमिलनाडु के राज्यमंत्री पीके शेखरबाबू सांसद ए राजा के खिलाफ दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान दिया गया था।

इस याचिका में विवादित बयानों के बावजूद उनके पद पर बने रहने पर प्रश्न उठाए गए थे। गौरलतब है कि 2 सितंबर 2023 को चेन्नई में एक कार्यक्रम में उदयानिधि स्टालिन ने कहा था कि कुछ चीजों का न केवल विरोध होना चाहिए बल्कि उन्हें समाप्त कर दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा था, “जिस तरह डेंगू, मच्छर, मलेरिया और कोरोनो वायरस को खत्म किया जाना चाहिए, उसी तरह हमें सनातन धर्म को भी खत्म करना होगा।” 

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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