उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के जिला प्रशासन में हाल ही में एक आदेश जारी किया है। इस आदेश में कहा गया है कि जिले के भीतर जिन रास्तों से कांवड़िये निकलते हैं, उन पर पड़ने वाली खान-पान की दुकानों पर दुकानदार के नाम का बोर्ड लगे। यह आदेश काँवड़ यात्रा में असुविधा ना हो, इसके लिए किया गया है। इस आदेश पर सोशल मीडिया पर लिबरल-वामपंथी समुदाय काफी उछलकूद मचाए हुए है। हालाँकि, यही गैंग तब कोई प्रश्न नहीं उठाता जब खाने-पीने के सामानों में 18% समुदाय की ‘हलाल’ को जिद बहुसंख्यकों पर थोपी जाती है।
जहाँ एक ओर इस मुद्दे पर बहस चल रही है कि किसी दुकानदार को अपना नाम दिखाना अनिवार्य किया जाए या नहीं, वहीं इस बीच यह जान लेते हैं कि देश की बहुसंख्यक आबादी पर थोपे जाने वाला हलाल प्रमाणन क्या है, यह कैसे काम करता है, इसकी अर्थव्यवस्था कितनी बड़ी है और इससे मुस्लिम संगठनों को कितनी कमाई होती है।
हलाल है क्या?
हलाल और हराम दो शब्द हैं। हलाल का मतलब है जिसकी अनुमति हो और हराम का मतलब है जिसकी अनुमति ना हो। हलाल मुस्लिमों के खाने-पीने के सामान और विशेष कर मांस से सम्बन्धित है। यानी जो हलाल उत्पाद हैं, उन्हें मुस्लिम खा सकते हैं। जो उत्पाद या हराम हैं, उन्हें मुस्लिम नहीं खा सकते।
मांस का हलाल होना इस बात का प्रमाणन है कि वह उसी तरीके से काटा गया है, जैसा इस्लामी किताबों में बताया गया है। यानी मांस काटने की एक निश्चित इस्लामी विधि ही हलाल है। मांस का हलाल होना इस बात से प्रमाणित होता है कि उस पशु को किसने काटा है, कैसे काटा है, किस दिशा में काटा है और उसको काटने वाले का मजहब क्या है।
जानवर को क्यों करते हैं हलाल?
किसी जानवर को जब हलाल तरीके से काटा जाता है, तो उसके शरीर से तेजी से खून निकलता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस्लाम के भीतर किसी भी जानवर के खून के सेवन की इजाजत नहीं है। यह हराम की श्रेणी में है, यह नहीं लिया जा सकता। इसीलिए हलाल प्रक्रिया में काटे जाने वाले जानवर के शरीर से तेज गति से खून निकलना जरूरी है। जानवर के शरीर से खून निकलने के बाद वह खाने योग्य हो जाता है क्योंकि खून बह चुका है।
जानवर को कैसे करते हैं हलाल?
किसी पशु का मांस हलाल होने के लिए इस्लामी कानून (शरिया) के अनुसार, एक तेज चाकू के उपयोग की आवश्यकता होती है, जिसमें किसी तरह की जंग ना हो और उसकी धार मुड़ी ना हो। इस बात पर जोर दिया जाता है कि चाकू का ब्लेड जानवर की गर्दन से 2-4 गुना बड़ा हो।
हलाल केवल एक समझदार, वयस्क मुस्लिम व्यक्ति द्वारा किया जाना चाहिए, जो इस्लामी रीति-रिवाजों से परिचित हो। एक गैर-मुस्लिम द्वारा जिबह किए गए जानवर हलाल नहीं कहे जाएँगे।मारे जाने वाले जानवर को काटने से पहले अच्छी तरह से खिलाया जाना चाहिए, पीने के लिए साफ पानी दिया जाना चाहिए और इसे उसके बेजान होने से पहले किया जाना चाहिए।
यूरोपीय संघ में हलाल प्रमाणन विभाग का भी कहना है कि हलाल के समय अल्लाह के नाम का आह्वान (कलमा पढ़ा जाना) किया जाना चाहिए: बिस्मिल्लाह रहमाने… अल्लाह-हू-अकबर।अलग-अलग जानवरों को अलग-अलग तरीकों से हलाल किया जाता है।
उदाहरण के लिए, एक भेड़ को क्षैतिज स्थिति में हलाल किया जाता है, जबकि जुगाली करने वालों को एक सीधी स्थिति में लिटाकर, पिछले पैर से दबाकर हलाल किया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि अधिकांश हलाल बूचड़खाने जानवर को लिटाकर ही हलाल करते हैं। हलाल के लिए, चीरा गर्दन पर और आहार नली नीचे लगाया जाना चाहिए। श्वासनली, आहारनाल, गले की नसें और जानवर की कैरोटिड धमनियों को बिना किसी रुकावट या देरी के तेज गति में काटा जाना चाहिए।
कौन देता है हलाल का प्रमाण पत्र?
भारत में खाने पीने के सामान का प्रमाणन करने वाला FSSAI हलाल सर्टिफिकेट नहीं देता है। भारत में, कई धार्मिक निकाय हैं जो उत्पादों को तथाकथित प्रमाण पत्र जारी करते हैं, इस्लामी विश्वास के अनुसार उनकी ‘शुद्धता’ तय करते हैं। भारत में हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, जमीयत उलमा-ए-महाराष्ट्र (जमीयत उलमा-ए-हिंद की एक राज्य इकाई) और जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट जैसे कुछ संगठन कोई उत्पाद हलाल है नहीं, इसका प्रमाण पत्र जारी करते हैं।
हलाल की क्या इकॉनमी?
अब तक हमने जान लिया कि हलाल है क्या, इसकी क्या जरूरत और इसका प्रमाण पत्र कौन देता है। लेकिन अब यह प्रमाणन कोई फ्री में तो करेगा नहीं, इसके लिए पैसे लगते होंगे। जब सरकार ही किसी उत्पाद के प्रमाणन के लिए शुल्क लेती है तो ये संगठन क्यों ना ले। जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट की वेबसाइट बताती है कि वह हलाल इकोसिस्टम में आने वाली एक कम्पनी से ₹60,000 रजिस्ट्रेशन और फिर ₹1500 प्रति उत्पाद हलाल प्रमाणन के लिए लेते हैं। इसके ऊपर से GST भी लगता है।
यानी मान लीजिए आप खाने-पीने के 10 उत्पाद बनाते हैं और उसको हलाल प्रमाणन की आवश्यकता है तो आपको ₹75,000 + GST देना होगा। यह धनराशि सिर्फ तीन साल के लिए है, इसके बाद आपको दोबारा फीस देनी होगी। चूंकि, अलग-अलग कम्पनियाँ अलग स्तर पर उत्पाद बनाती हैं, इसलिए यह धनराशि बढ़ती जाती है।
यह धनराशि अंत में हमसे और आपसे वसूली जाती है। हलाल का प्रमाणन भारत के बाजार में भले किसी ने ना माँगा हो, मुस्लिम देशों में उत्पाद के लिए यह जरूरी है। हालाँकि, भारत में भी कम्पनियाँ अपने उत्पाद हलाल प्रमाणन के साथ ही बेचती हैं। यानी 18-20% आबादी की मर्जी बाकी 80% लोगों पर थोपी जाती है।
जब हलाल सही तो नाम दिखाना क्यों नहीं?
अब यह अब बात करने के बाद मूल प्रश्न पर लौटते हैं। प्रश्न है कि आखिर हलाल क्यों? तो इसका उत्तर है कि मुस्लिमों की धार्मिक मान्यता हलाल खाद्य पदार्थ खाने की है, इसलिए हलाल। यानी मुस्लिमों को अपनी पसंद का खाना और वह खाना किस तरीके से बने, यह निर्णय करने का अधिकार है।
अब हलाल मांस में एक शर्त है कि जानवर काटने वाला कसाई मुस्लिम ही हो, किसी दूसरे धर्म के आदमी ने अगर जानवर काटा तो वह हलाल नहीं होगा। यानी सीधे तौर पर बाकी लोगों को इस धंधे से बाहर करना। तो जब मुस्लिम का काटा मांस ही मुस्लिम खाएँगे, उसका प्रमाणन मुस्लिम ही देंगे फिर हिन्दुओं का अपने आराध्य की कांवड़ उठाते समय किस दुकान से सामान ले रहे हैं, यह जान जाना कोई बहस की बात कैसे? वह भी तब जब ना इससे कोई दूसरा व्यक्ति धंधे से बाहर हो रहा है, ना इस प्रकार नाम दिखने का कोई पैसा लिया जा रहा है।