अब जब सोमवार (7 मार्च, 2022) को उत्तर प्रदेश में सातवें और अंतिम चरण का विधानसभा चुनाव हो रहा है और इसी क्रम में वाराणसी हॉटस्पॉट बना हुआ है, हमें ये भी याद करने की ज़रूरत है कि आज से 16 साल पहले यही काशी धमाकों से दहल गई थी। आज भले ही बनारस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकसभा सीट और काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के कारण चर्चा में हो, लेकिन तब ऐसा नहीं था। UPA के शासनकाल में हुए बम धमाके आज भी लोगों के जेहन में ताज़ा हैं।
तब हुए बम धमाकों में वाराणसी में 28 लोग मारे गए थे और 100 से भी अधिक लोग घायल हुए थे। विश्व की प्राचीनतम शहरों में से एक में हुए इस बम धमाके के पीछे पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैय्यबा का नाम सामने आया था। काशी की शान और ‘महामना की बगिया’ कहे जाने वाले ‘बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी’ के नजदीक स्थित लोकप्रिय संकट मोचन हनुमान मंदिर को भी इस बम ब्लास्ट में निशाना बनाया गया था।
ज्ञात हो कि अस्सी नदी के किनारे इस मंदिर की स्थापना 16वीं शताब्दी में खुद तुलसीदास ने की थी, जो ‘रामचरितमानस’ और ‘हनुमान चालीसा’ के रचयिता हैं। मंगलवार का दिन था और इसी कारण हनुमान जी में श्रद्धा रखने वाले कई हिन्दू मंदिर में उपस्थित थे। ऊपर से शाम के सवा 6 के बाद का समय था। मंदिर के दरवाजे पर एक कंटेनर में बम रखा गया था। आमतौर पर वहाँ महिलाएँ बैठती थीं। इस धमाके ने 10 लोगों की जान ले ली और 40 घायल हुए।
कैंटोनमेंट रेलवे स्टेशन पर भी धमाका हुआ। दशाश्वमेध घाट पर एक और IED मिला, लेकिन लेकिन उसे समय रहते डिफ्यूज कर दिया गया था। इसी बम धमाके के बाद पता चला था कि 23 फरवरी, 2005 को दशाश्वमेध घाट पर हुआ LPG सिलिंडर ब्लास्ट असल में एक आतंकी बम धमाका था। धमाका इतना शक्तिशाली था कि रेलवे स्टेशन की प्रमुख लॉबी में बहरा कर देने वाली आवाज़ गूँजी थी। लोगों की लाशों के चीथड़े उड़ गए थे और यहाँ तक कि छत से भी जा चिपके थे।
2005 और 2006 ही नहीं, बल्कि 2008 में भी वाराणसी में बम धमाका हुआ था। उस साल 23 नवंबर को वहाँ हुए धमाके के बाद उत्तर प्रदेश में ‘आतंक रोधी दस्ता’ का गठन किया गया और इसकी एक यूनिट को वाराणसी में तैनात किया गया। सभी घाटों, BHU, मंदिरों, सारनाथ, रेलवे स्टेशन व बस स्टैंड और मॉल्स में एंट्री के लिए कुछ नियम-कायदे तय किए गए। इन सबके बावजूद 2010 में दशाश्वमेध घाट पर आतंकियों ने बम ब्लास्ट कर दिया।
हालाँकि, अब योगी आदित्यनाथ के शासनकाल में चीजें बदल गई हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने भी कई इंतजाम किए हैं। अब वाराणसी में भी समय-समय पर सुरक्षा बल मॉक ड्रिल में हिस्सा लेते हैं और ATS यहाँ कड़ी निगरानी रखती है। आज नरेंद्र मोदी वाराणसी में रोडशो करते हैं, विकास कार्यों का जायजा लेते हैं और उनके कार्यक्रमों में लाखों लोग आते हैं, लेकिन सुरक्षा व्यवस्था में कहीं कोई चूक सामने नहीं आती।
2005 में हुए बम ब्लास्ट में तो 7 लोग मारे गए थे और डेढ़ दर्जन लोग घायल हो गए थे। स्थानीय पुलिस तब इतनी अक्षम हुआ करती थी कि उसने इसे सामान्य LPG सिलिंडर ब्लास्ट बता कर इतिश्री कर ली, जबकि फॉरेंसिक विशेषज्ञों को वहाँ अमोनियम नाइट्रेट मिले। 2006 बम ब्लास्ट के मामले में भी पुलिस ने जाँच शुरू की, लेकिन दिसंबर 2008 में ये मामला ATS को सौंप दिया गया। इसके बाद हरकत-उल-जेहाद-ए-इस्लामी के सरगना वलीउल्लाह को STF ने उसी साल अप्रैल में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के गोसाईगंज से गिरफ्तार किया।
अदालत ने उसे 10 साल की कड़ी जेल के साथ-साथ उस पर 1.05 लाख का जुर्माना भी लगाया। वलीउल्लाह के पास से पुलिस ने विदेश में बने पिस्तौल के साथ-साथ RDX भी जब्त किया था। गाजियाबाद की अदालत में उसके खिलाफ मामला चला था, वहीं उसे डासना के जेल में रखा गया था। आज जब वाराणसी में जापान के प्रधानमंत्री तक आते हैं और लोग बेख़ौफ़ होकर घूमते हैं, तब हमें याद रहना चाहिए कि केंद्र में कॉन्ग्रेस और राज्य में सपा-बसपा के दौर में ऐसा नहीं हुआ करता था।
7 मार्च, 2006 को वाराणसी रेलवे स्टेशन पर हुए बम ब्लास्ट में 11 लोग मारे गए थे। शहर के अलग-अलग इलाकों में 6 बमों को डिफ्यूज किया गया, वरना और ज्यादा क्षति हो सकती थी। रेलवे स्टेशन के नजदीक ही एक रेस्टॉरेंट है, जहाँ विदेशी अच्छी-खासी संख्या में आते हैं। एक बम वहाँ से भी डिफ्यूज किया गया था। हमेशा की तरफ तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसकी ‘कड़ी निंदा’ कर के शांति की अपील की और इतिश्री कर ली।
हमेशा की तरह अन्य सभी राज्यों में अलर्ट जारी कर दिया गया और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में स्थित पूजा स्थलों पर पुलिस भेज दी गई। वाराणसी में विरोध के रूप में लोगों ने बंद का आह्वान किया। प्रशासन को स्कूल-कॉलेज बंद करने पड़े। गाडोलिया से एक और हनुमान मंदिर से तीन बम डिफ्यूज किए गए थे। इसके बाद साल बाद ही इसी आतंकी संगठन ने मुंबई में 26/11 हमलों को अंजाम दिया। दिसंबर 2010 में शीतला घाट पर वाराणसी में बम धमाके हुए थे।
Who was in power when these took place:
— Aabhas Maldahiyar 🇮🇳 (@Aabhas24) August 2, 2019
1)2005 RamJanmaBhumi Attack
2)2005 Delhi Serial Blasts
3)2005 IISc shootings
4)2006 Varanasi bombings
5)2006 Mumbai train bombings
6)Aug2007 Hyderabad bombings
7)2008 Jaipur Bombings
8)2008 Bangalore serial blasts
9)2008 Ahmedabad bombings https://t.co/YFUCY1lmye
जाँच में ये भी सामने आया कि आतंकियों ने ज्यादा से ज्यादा जानमाल की क्षति के लिए इस धमाके को अंजाम दिया था, क्योंकि उस समय CBSE और ICSE की परीक्षाएँ चल रही थीं। यही कारण है कि आरती के दौरान जब मंदिर में बम फटा, तब वहाँ भारी भीड़ थी। साथ ही रेलवे स्टेशन पर जब ‘शिव गंगा एक्सप्रेस’ के लिए यात्रीगण इंतजार कर रहे थे, तब बम फटा। भारत-नेपाल सीमा से बिहार में बम बनाने के सामान लाए गए थे और वहाँ से बम को यूपी पहुँचाया गया था।
उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने एक पाकिस्तानी आतंकी को पुलिस द्वारा मार गिराए जाने का दावा किया, लेकिन बाद में पाया गया कि मृतक मध्य प्रदेश का रहने वाला था। हालाँकि, वो आतंकी संगठनों से जुड़ा हुआ था और 2005 के दिल्ली बम ब्लास्ट में उसके खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी था। दिसंबर 2005 में बेंगलुरु स्थित IISC और उससे पहले सितंबर 2002 में गुजरात के अक्षरधाम में हमले हुए था। हालाँकि, 2014 के बाद तस्वीर पूरी तरह बदल गई और 2017 के बाद यूपी में भी वो सकारात्मक बदलाव महसूस किया जाने लगा।