Sunday, December 22, 2024
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विकिपीडिया पर इतिहास से छेड़छाड़ : पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री जोगिंदर मंडल के भारत लौटने की वजह छिपाई, हिंदू विरोधी दंगों और दलित उत्पीड़न की बात हटाई

जोगेंद्र नाथ मंडल पाकिस्तान में हिंदू विरोधी दंगों और दलितों पर हो रहे अत्याचारों से बेहद दुखी थे। उन्होंने अपने इस्तीफे में इसपर विस्तार से लिखा था।

इंटरनेट पर मुफ्त के ज्ञान के सबसे बड़े स्रोतों में से एक विकिपीडिया पर वामपंथियों का कब्जा सारी दुनिया जानती है। विकिपीडिया पर प्रकाशित लेख अधिकांशत: वामपंथ या फिर इस्लामिक विचारधारा की तरफ झुकाव वाले होते हैं। इन्हें राष्ट्रवादियों से खास चिढ़ होती है। इसीलिए विकिपीडिया के कई लेखों में तथ्यात्मक गलतियों का भंडार मिलता है। विकिपीडिया का इस्लामिक झुकाव तो है ही, हिंदू विरोधी विचारों को भी इस पर खूब बढ़ावा मिलता है। हिंदुओं को बदनाम करने का मौका ये प्लेटफॉर्म बिल्कुल भी नहीं छोड़ता। ऐसा ही एक मामला पाकिस्तान के पहले कानून एवं श्रम मंत्री जोगेंद्र नाथ मंडल के विकिपीडिया पेज से जुड़ा सामने आया है।

बता दें कि पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री जोगेंद्र नाथ मंडल ने पाकिस्तान में हिंदुओं के कल्तेआम और हिंदू विरोधी दंगों के साथ ही पाकिस्तान के मुस्लिमों के दबदबे वाले प्रशासन में दलित विरोध पूर्वाग्रहों के कारण साल 1950 में इस्तीफा दे दिया और वो भारत आ गए। जोगेंद्र नाथ मंडल भारत क्यों आए, ये वाकया काफी मशहूर है। उन्होंने 9 अक्टूबर 1950 को लंबा इस्तीफा पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने हिंदुओं के खिलाफ दंगों और दलित उत्पीड़क नीतियों को इसकी वजह बताया था।

हालाँकि, अब विकिपीडिया ने इस प्रसिद्ध ऐतिहासिक घटनाक्रम से छेड़छाड़ की कोशिश की है। विकिपीडिया के पेज पर दावा किया गया है कि पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री और श्रम मंत्री जोगेंद्र नाथ मंडल कोलकाता में अपने बीमार बेटे के लिए भारत आए थे। विकिपीडिया के इस लेख में दावा किया गया है, “जोगेंद्र नाथ मंडल साल 1950 में भारत वापस लौटने के लिए मजबूत हो गए। आम तौर पर ऐसा माना जाता है कि उन्होंने पाकिस्तान में अपने खिलाफ जारी हुए गिरफ्तारी वारंट की वजह से ये कदम उठाया। हालाँकि वो भारत इसलिए आए, क्योंकि उनका इकलौता बेटा जगदीशचंद्र मंडल, जो उस समय कोलकाता में पढ़ रहा था, वो बीमार पड़ गया था और मंडल उसकी देखभाल के लिए वापस लौट आए थे।”

ये मामला अर्थशास्त्री और आईआईएम कोझिकोड के प्रोफेसर कौशिक गंगोपाध्याय ने एक्स पर उठाया। उन्होंने 11 अप्रैल को कोलकाता स्थित भारतीय पर्यावरण और मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. मोहित रे का एक लेख पोस्ट किया, जिसमें विस्तार से बताया गया है कि विकिपीडिया के लेखों में किस तरह से इतिहास को बदला जा रहा है।

इस लेख का शीर्षक है: ‘इस्लामिक और सेकुलर उदारवादियों को खुश करने के लिए विकिपीडिया कैसे झूठ फैलाता है: एक केस स्टडी’। इस पोस्ट में पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री के इस्तीफे का उल्लेख किया गया है, जिसमें लिखा है, “काफी सोच विचार और आंतरिक संघर्ष के बाद मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि पाकिस्तान में हिंदुओं के रहने के लिए कोई जगह नहीं है। यहाँ उनका भविष्य अंधकारमय है क्योंकि उन पर धर्म परिवर्तन या फिर मौत में से एक चुनने का दबाव है। अधिकतर उच्च वर्ग के संपन्न हिंदू और राजनीतिक रूप से जागरुक दलितों ने पूर्वी बंगाल को त्याग दिया है। जो हिंदू पाकिस्तान में किसी भी मजबूरी वश रह जाएँगे, मुझे डर है कि एक न एक दिन प्लानिंग के तहत उन्हें या तो इस्लाम में कन्वर्ट करा दिया जाएगा, या फिर उनका सफाया कर दिया जाएगा।”

हाालँकि विकिपीडिया संपादन, जो Achintya2023 ने किया, उसने इन जानकारियों को पूरी तरह से छिपा दिया और दावा किया कि मंडल अपने बीमार बेटे जगदीशचंद्र मंडल को देखने के लिए भारत आए थे। हालाँकि विकिपीडिया का लेख पाकिस्तान में दलितों या अनुसूचित जातिओं के उत्पीड़न को लेकर चिंता का तो उल्लेख करता है, लेकिन मंडल द्वारा उनके पत्र में लिखे गए हिंदुओं के नरसंहार की बात पूरी तरह से छिपा जाता है।

कौशिक गंगोपाध्याय ने कहा कि बांग्ला विकिपीडिया में इससे भी ज्यादा बेईमानी की गई है। “बंगाली विकिपीडिया में बेईमानी और भी नीचे चली गई है, जिसमें पाकिस्तान में हिंदुओं के खिलाफ नरसंहार और नरसंहार को तो छुपा दिया गया है, लेकिन सामाजिक अन्याय और पक्षपातपूर्ण रवैये के आधे-अधूरे सच का उल्लेख किया गया है।” बेटे की बीमारी का दावा जोड़ते हुए विकीपीडिया संपादक ने द डिक्लाइन ऑफ द कास्ट क्वेश्चन: जोगेंद्रनाथ मंडल और बंगाल में दलित राजनीति की हार नामक पुस्तक का हवाला दिया। यह पुस्तक इतिहासकार और प्रोफेसर द्वैपायन सेन द्वारा लिखी गई है।

ऑपइंडिया ने किताब को देखा और पाया कि दावा करने के लिए किताब को गलत तरीके से कोट किया गया है। हालाँकि इसमें ये जरूर कहा गया है कि जोगेंद्र नाथ मंडल अपने बेटे को देखने के लिए कलकत्ता आए थे जो उस समय शहर में पढ़ रहा था, लेकिन यह दावा नहीं करता है कि यही उनके भारत लौटने की वजह था। किताब बताती है कि उन्होंने इसे भारत आने के लिए सिर्फ एक बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया था, क्योंकि उन्हें चिंता थी कि अगर उन्होंने भारत लौटने का इरादा जाहिर किया तो उन पर हमला किया जाएगा।

भारत लौटने के बाद मंडल ने दावा किया कि वह खुद बीमार पड़ गए और प्रधान मंत्री लियाकत अली खान को पत्र लिखकर अपने मंत्रालय को किसी और को देने के लिए कहा। बाद में मंडल ने लियाकत अली खान को एक लंबा इस्तीफा भेजा, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान को छोड़ने की वजहों का विस्तार से जिक्र किया। पत्र में साफ तौर पर लिखा गया है कि पाकिस्तान में हिंदुओं का नरसंहार हो रहा है और पाकिस्तान में दलितों के लिए जो वादे किए गए थे, उन्हें भी पूरे नहीं किए गए।

इस किताब में भारत आने से पहले मंडल के कराची में रहने के दिनों की भी जानकारी है। इसमें बताया गया है कि मंडल पाकिस्तानी सरकार के विश्वासघात से निराश हो गए थे, क्योंकि पाकिस्तानी सरकार ने दलितों के कल्याण के लिए किए गए वादों को कभी पूरा नहीं किया। एक तरफ अंबेडकर ने भारत विभाजन की विभीषिका के दौरान पाकिस्तान के सभी दलितों को भारत आने का आह्वान किया था, तो मंडल ने मुस्लिम-दलित एकता की उम्मीद में इसका विरोध किया था। 1948 में कराची में हुए हिंदू विरोधी दंगों के दौरान भी उन्होंने हिंदुओं से पाकिस्तान में रहने की अपील की थी।

जोगेंद्र नाथ मंडल पाकिस्तान में दलितों और हिंदुओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर हो रही हिंसा का विरोध करते रहे, लेकिन पाकिस्तानी सरकार ने उनकी अपीलों को नजरअंदाज ही किया। पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे, तो उस समय भी दलितों की चिंता उन्हें हो रही थी। वो बड़ी दुविधा में फंसे थे, क्योंकि एक तरफ वो दलितों को पाकिस्तान छोड़ने के लिए कह नहीं पा रहे थे, चूँकि वो खुद पाकिस्तान के कानून मंत्री थे, तो दूसरी तरफ वो पाकिस्तान में दलितों की सुरक्षा की गारंटी भी नहीं ले पा रहे थे।

उनके इस्तीफे से ये बात साफ है कि वो पाकिस्तान में मंत्री होते हुए भी हिंदू विरोधी दंगों, नीतियों को नहीं रोक पा रहे थे, तो दलितों के अंधकारमय होते भविष्य को बचाने में भी खुद को असमर्थ पा रहे थे। यही वजह है कि वो इस्तीफा देकर भारत लौटने के बारे में विचार कर रहे थे। हालाँकि ये आसान नहीं था, क्योंकि उन्हें शक था कि उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया जाएगा। इसके बावजूद अगर उन्होंने प्रधानमंत्री का विरोध करते हुए उनकी इच्छा के खिलाफ जाकर इस्तीफा दिया, तो उनके खिलाफ हिंसा हो सकती थी। हो सकता था कि वो अपने घर में ही सुरक्षित नहीं रह पाते।

यही वजह रही कि मंडल अपने बेटे की बीमार का बहान लेकर कोलकाता आ गए और फिर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को कुछ समय बाद अपना इस्तीफा भेज दिया। ऐसे में ये बात साफ है कि उन्होंने पाकिस्तान से खुद को सुरक्षित निकालने के लिए अपने बेटे की बीमारी का बहाना किया और पाकिस्तान सरकार की हिंदू और दलित विरोधी नीतियों की वजह से पाकिस्तान को छोड़ दिया।

पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री रहे जोगेंद्र नाथ मंडल ने अपने इस्तीफे में मुस्लिम लीग द्वारा 16 अगस्त 1946 को डायरेक्ट एक्शन डे, अक्टूबर 1946 के नोआखाली दंगे, पाकिस्तान की हिंदू विरोधी नीति, 10 फरवरी 1950 को ढाका के हिंदू विरोधी दंगों, जिसमें 10 हजार लोगों की जान गई, उनका उल्लेख किया है। उन्होंने अपने इस्तीफे में ये भी बताया था कि पूर्वी पाकिस्तान से हिंदुओं को साफ करने की सरकार की योजना, देश में हिंदुओं का निराशाजनक भविष्य, हिंदुओं का जबरन धर्म परिवर्तन, नागरिक स्वतंत्रता को खत्म करने वाले कानून आदि की वजह से उन्होंने पाकिस्तान की सरकार और देश को छोड़ा।

जोगेंद्र नाथ मंडल ने अपने इस्तीफे में लिखा है कि पीएम लियाकत अली खान ने उन्हें झूठे बयान देने के लिए मजबूर किया था। उन्होंने लिखा, “मैं अब अपनी अंतरात्मा पर झूठे दिखावे और झूठ का बोझ नहीं उठा सकता, ऐसे में मैंने आपके मंत्री के रूप में अपना इस्तीफा देने का फैसला किया है।”

ये पूरा मामले ये बताने के लिए काफी है कि विकिपीडिया के लेख में पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री जोगेंद्र नाथ मंडल के पाकिस्तान छोड़कर भारत वापस आने की वजहों के बारे में गलत जानकारी दी गई है और लेख में ऐतिहासिक तथ्यों में फेरबदल किया गया है। ये हो सकता है कि वो अपने बीमार बेटे को देखने के लिए भारत आए हों, लेकिन पाकिस्तान छोड़ने की इकलौती वजह उनके बेटे की बीमारी नहीं थी। उन्होंने साफ तौर पर अपने इस्तीफे में लिखा है कि उन्होंने हिंदू विरोधी नीतियों और दलितों के लिए किए गए वादों को पूरा न करने के कारण पाकिस्तान और पाकिस्तानी सरकार को छोड़ा। जबकि विकिपीडिया के लेख में पाकिस्तान में हिंदुओं के बारे में उनकी चिंताओं पर पूरी तरह से चुप्पी साध ली गई है।

ये लेख मूल रूप से राजू दास द्वारा अंग्रेजी भाषा में लिखा गया है। मूल लेख पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

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Raju Das
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Corporate Dropout, Freelance Translator

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