उत्तराखंड के उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग में फँसे 41 श्रमिकों को 17वें दिन 28 नवम्बर 2023 की शाम को निकाला गया था। ये श्रमिक 12 नवम्बर से ही सुरंग में मलबा आ जाने के कारण फँसे हुए थे। अब श्रमिकों ने बताया है कि कैसे वह इस कठिन परिस्थिति में अपना समय व्यतीत कर रहे थे।
सुरंग के भीतर फँसने वाले श्रमिकों में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल, ओडिशा, असम और उत्तराखंड के श्रमिक थे। सुरंग से सुरक्षित बाहर आए ओडिशा के श्रमिकों ने बताया है कि वे अन्दर कबड्डी और ताश खेल कर अपना समय काट रहे थे।
ओडिशा के बालासोर के रहने वाले राजू भी अन्दर फँसे हुए थे। उन्होंने बताया है कि वह 11 नवम्बर 2023 की रात को इस सुरंग के अन्दर घुसे थे। उन्हें सुबह 8 बजे तक काम करना था, लेकिन सुबह 5:30 बजे ही एकाएक मलबा आ जाने के कारण वह सभी लोग फँस गए।
पहले कुछ घंटों तक बाहर मौजूद लोगों को भी नहीं पता चला कि श्रमिक अंदर फँसे हुए हैं। अंदर मौजूद श्रमिकों ने इसके बाद पानी के पाइपों को हटा कर बाहर अपने बारे में संकेत भेजा। इससे लोगों को पता चला कि अन्दर श्रमिक फँस गए हैं। शुरुआत में उनकी संख्या भी स्पष्ट नहीं थी।
राजू ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस अखबार से बात करते हुए बताया, “बाहर कुछ इंजीनियर थे जिनको लगा कि अन्दर श्रमिक फँसे हुए हैं। उन्होंने 7 घंटे के बाद हमसे सम्पर्क स्थापित किया। उन्होंने हमें पाइप के माध्यम से सूखे अनाज भेजे।” राजू ने बताया कि उन्हें लाई (मुढ़ी) अन्दर भेजी गई, जिसे खाकर वह भूख मिटा रहे थे। अंदर ऑक्सीजन भी भेजी गई।
पानी भेजने का कोई रास्ता न बन पाने के कारण शुरुआत में श्रमिकों को चट्टानों से रिस रहा पानी पीकर काम चलाना पड़ा। हालाँकि, स्थितियाँ तब सुधर गईं जब अन्दर 6 इंच व्यास वाला पाइप डाल दिया गया। इस पाइप के माध्यम से अंदर गर्म भोजन और पानी दोनों पहुँचे।
श्रमिकों का कहना है कि एक बार खाना-पानी और गरम कपड़े पहुँचने और परिवार से बात होने के पश्चात वह सभी शांत हो गए थे और इसका इन्तजार कर रहे थे कि कब उन्हें बाहर निकाला जाएगा। इस बीच इन सभी ने एक-दूसरे का हौसला बढ़ाए रखा।
एक अन्य श्रमिक भगवान का कहना है कि उन्हें मजदूर होने के कारण मुश्किलों में रहना आता है, लेकिन यहाँ की स्थितियाँ काफी विपरीत थीं। उनका कहना है कि बाहर से प्रशासन और कम्पनी के अधिकारी उन्हें लगातार हौसला बँधाते रहे जिससे उनका मनोबल बढ़ा।
श्रमिकों ने यह भी जानकारी दी कि मलबे के पीछे 2.5 किलोमीटर की जगह थी, जिसमें वे सुबह की सैर, योग वगैरह करते थे। वे लोग कबड्डी, ताश आदि भी खेलते थे। श्रमिकों ने बताया कि उन्हें अंदर अपने फोन भी मिल गए थे। उस पर भी वह समय व्यतीत करते थे। वॉकी टॉकी मिलने के बाद वे अपने परिवारों से भी बात कर पाए।
झारखंड के सिंहभूम के एक मजदूर बासेत मुर्मू भी अंदर फँसे हुए थे। उनके पिता भक्तू मुर्मू की इसी दौरान मौत हो गई। बाहर निकलने के बाद भी वह अपने घर नहीं पहुँच सके इसलिए उनके घर वालों ने उनके पिता का अंतिम संस्कार कर दिया।
इन श्रमिकों को निकाले जाने के बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इन्हें ₹1 लाख के चेक सौंपे हैं। जिन राज्य के यह श्रमिक हैं, वहाँ के अधिकारी और मंत्री भी पहुँचे हैं। अब इन श्रमिकों को ऋषिकेश में इलाज के लिए ले जाया गया है जहाँ उनकी मेडिकल जाँच चल रही है।