Wednesday, November 6, 2024
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‘क्या आप कह रहे हैं कि हिंदू समूहों ने (गोधरा) ट्रेन जलाने की साजिश रची… हद है’: जकिया जाफरी की याचिका पर कोर्ट में एसआईटी

"या आप कह रहे हैं कि यह ट्रेन जलाने की भी साजिश रची गई थी? यह सही नहीं हो सकता। क्योंकि ट्रेन पाँच घंटे की देरी से चल रही थी और केवल दो मिनट के लिए रुकने वाली थी। वे नहीं जान सकते थे। यह बेतुका है। यहाँ जो कहा जा रहा है उसकी एक सीमा है।"

2002 के गुजरात दंगों की जाँच कर रही सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एसआईटी ने हिंदू समूहों द्वारा मुस्लिमों को फँसाने के लिए ट्रेन जलाने की योजना बनाने वाले आरोपों को ‘बेतुका’ करार दिया है। एसआईटी ने कहा है कि हिंदू समूहों द्वारा साबरमती एक्सप्रेस में एस-6 कोच को जलाने की योजना बनाने वाले दावे निराधार हैं

द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, अदालत में एसआईटी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा, “आरोप है (कि) घटना से पहले, यानि 27 फरवरी से पहले हथियार इकठ्ठा होने शुरू हो गए थे। यह मेरे दिमाग को चकरा देता है। मान लीजिए कि मैं विहिप का कट्टर हिंदू सदस्य हूँ और मैं ट्रेन जलने की घटना की तारीख जाने बिना 25 फरवरी को हथियार रख रहा हूँ, इसका कोई मतलब नहीं है…।

अधिवक्ता रोहतगी ने आगे कहा, “या आप कह रहे हैं कि यह ट्रेन जलाने की भी साजिश रची गई थी? यह सही नहीं हो सकता। क्योंकि ट्रेन पाँच घंटे की देरी से चल रही थी और केवल दो मिनट के लिए रुकने वाली थी। वे नहीं जान सकते थे। यह बेतुका है। यहाँ जो कहा जा रहा है उसकी एक सीमा है।”

रोहतगी ने कहा, “या तो उन्हें पता था कि ट्रेन पाँच घंटे लेट होगी और दूसरा पक्ष हमला करेगा और उनके पास वापस हमला करने के लिए सामग्री होगी। यह वाइल्ड है।”

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि वामपंथी-इस्लामी समूहों द्वारा गोधरा ट्रेन जलाने की घटना को भी हिंदू समूहों द्वारा ही किया गया काम बताने और महिलाओं और बच्चों सहित 59 निर्दोष हिंदुओं को मारने वाले मुस्लिम दंगाइयों के अपराधों पर लीपापोती के अनगिनत प्रयास किए गए हैं।

जस्टिस एएम खानवलीकर, दिनेश माहेश्वरी और सीटी रविकुमार की बेंच गुजरात दंगों में मारे गए कॉन्ग्रेस के पूर्व सांसद अहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी की अपील पर सुनवाई कर रही थी।

5 अक्टूबर, 2017 को, गुजरात उच्च न्यायालय ने अहमदाबाद मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा था जिसमें एसआईटी द्वारा प्रस्तुत क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया था। एसआईटी ने गुजरात के पूर्व सीएम नरेंद्र मोदी और 63 अन्य को दंगों से जुड़े मामलों में क्लीन चिट दे दी थी।

अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने अदालत को बताया कि जकिया जाफरी ने 2006 में अपनी शिकायत दर्ज की थी, एक साल बाद, जब वह हाईकोर्ट गई, तब तक तीस्ता सीतलवाड़ शामिल हो गई थीं। उन्होंने याद दिलाया कि हाईकोर्ट ने पहले माना था कि सीतलवाड़ की कोई भूमिका नहीं थी। और वह इस मामले में प्रोसिडिंग जारी रखने की हकदार नहीं थीं। उन्होंने कहा कि श्रीमती जाफरी की शिकायतों की जाँच के लिए एसआईटी को सुप्रीम कोर्ट का निर्देश स्पष्ट और संरक्षित था।

रोहतगी ने आगे कहा, “जब तक मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश के खिलाफ विरोध याचिका दायर की गई थी, तब तक चीजें सीमा से बाहर हो गई थीं।” शिकायत 30-40 पन्नों की थी, विरोध 1200 पन्नों का था और अब कोर्ट के सामने 20,000 पन्नों से ज्यादा का रिकॉर्ड है।

रोहतगी ने कहा कि तीस्ता सीतलवाड़ का एनजीओ अब इसे आगे बढ़ा रहा है, जिसे श्रीमती जाफरी की शिकायत पर महज गौर करने का आदेश दिया गया था, इस धारणा के साथ कि गुलबर्ग सोसाइटी मामले में उनके पास कुछ बताने के लिए हो सकता है, जो अब तीस्ता सीतलवाड़ की भागीदारी से कुछ का कुछ और हो गया है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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