सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा है कि किसी शिकायतकर्ता या राज्य सरकार ने अगर किसी मामले में आरोपित की सजा बढ़ाने की अपील नहीं की है, तो हाई कोर्ट स्वतः संज्ञान से निर्णय लेकर सजा नहीं बढ़ा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने नागराजन नाम के एक व्यक्ति की अपील पर 2003 के एक मामले के तहत यह फैसला सुनाया। नागराजन पर उसकी महिला पड़ोसी ने 11 जुलाई 2003 को आरोप लगाया था कि उसने घर में घुसकर उसकी इज्जत लूटने की कोशिश की थी। इसके अगले दिन ही महिला ने अपने बच्चे के साथ आत्महत्या कर ली थी।
ट्रायल कोर्ट ने नागराजन को धारा 354 और धारा 448 के तहत दोषी करार दिया था, लेकिन धारा 306, जो आत्महत्या के लिए उकसाने पर लगाई जाती है, उससे बरी कर दिया था। फिर भी हाई कोर्ट ने इसके लिए दोषी ठहराते हुए उसकी सजा बढ़ा दी।
नागराजन की सुप्रीम कोर्ट से अपील के बाद फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, “CRPC के अनुसार, सजा बढ़ाने का अधिकार तभी होता है जब राज्य, पीड़ित या शिकायतकर्ता अपील करें और आरोपिहात को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया गया हो।”