आज पुलवामा आतंकी हमले के बाद कश्मीर के लोगों से जुड़ी लगातार दो ख़बरें पढ़ीं। एक ख़बर जिसमें बताया जा रहा है कि दिल दहला देने वाले इस घटना में न केवल आतंकियों ने बल्कि पत्थरबाजों ने भी अपनी भूमिका अदा की है, और दूसरी ख़बर यह कि इस हमले के बाद सीआरपीएफ के जवानों ने संकट में फँसे हर कश्मीरी के लिए एक टॉल फ्री नंबर जारी किया है।
दोनों ख़बरों को पढ़ने के बाद समझ से परे है कि क्या लिखा जाए और क्या कहा जाए। जिन सीआरपीएफ जवानों के क़ाफ़िले पर हमला हुआ है, उसी क़ाफ़ीले के एक जवान ने इस बात की सूचना दी कि जिस समय यह धमाका हुआ है उससे 10 मिनट पहले से कुछ पत्थरबाज पथराव कर रहे थे। बाज़ार में लोग जल्दी-जल्दी दुकानों के शटर को गिरा रहे थे। लेकिन, जबतक गाड़ी में बैठे जवान इन सब चीज़ों को लेकर कुछ समझ पाते तब तक धमाका हो गया।
इस मामले में आगे जाँच में सामने आया कि सीआरपीएफ के क़ाफ़िले के बारे में आतंकियों को पहले से ही जानकारी थी। इसी वजह से उन्होंने हमले के लिए एक ऐसी जगह को चुना जहाँ पर अमूमन गाड़ियों की रफ़्तार कम हो जाती है। ज़ाहिर है यह सारी ख़बरें बिना किसी स्थानीय जानकार के इकट्ठा कर पाना नामुमकिन होगा। पत्थरबाज भी वहाँ के स्थानीय ही रहे होंगे, जिन्होंने हमले के पूरी ज़मीन तैयार करने में अपनी भूमिका को अदा किया।
अब ऐसे में दूसरी ख़बर में है कि सीआरपीएफ जवानों ने एक टॉलफ्री नंबर सिर्फ़ इसलिए जारी किया है क्योंकि पुलवामा हमले के बाद कश्मीर के लोगों को कथित तौर पर धमकियाँ मिल रही हैं। इन्हीं खबरों के मद्देनज़र श्रीनगर स्थित सीआरपीएफ हेल्पलाइन ने शनिवार (16 फ़रवरी) को कहा कि वे किसी भी तरह के उत्पीड़न के मामले में उनसे संपर्क करें।
साथ ही मददगार हेल्पलाइन ने भी इसी सिलसिले में ट्वीट करके कहा है कि इस समय कश्मीर से बाहर छात्र और आम लोग ट्विटर हैंडल @CRPFmadadgaar पर संपर्क कर सकते हैं। साथ ही किसी भी कठिनाई या उत्पीड़न का सामना करने में शीघ्र सहायता के लिए वे 24 घंटे टोल फ्री नंबर 14411 या 7082814411 पर SMS कर सकते हैं।
इन दोनों ख़बरों में निहित दो पक्षों की भावनाओं में जो विरोधाभास है वो लगातार सोचने पर मजबूर करता है, कि क्या इतने सब के बाद भी कश्मीर के पत्थरबाजों को समझ नहीं आता कि जवानों का होना न केवल देश के लिए बल्कि उनकी ख़ुद की सुरक्षा के लिए कितना आवश्यक है। आज जो सुरक्षाबल के लोग अपने जवानों को खोने के बाद भी उनकी सुरक्षा के लिए तत्पर हैं, वही कल को पत्थरबाजी का शिकार होंगे। देश का हर व्यक्ति इस बात को अच्छे से जानता है कि इस पूरे हमले में आतंकियों तक सूचनाएँ बिना किसी स्थानीय के नहीं जा सकती थी। तो सोचिए जवान इस बात को नहीं जानते होंगे क्या?
इतना सब होने के बावजूद भी तथाकथित लोग देश की सेना पर सवाल उठाना नहीं बंद करेंगे। कुछ अपने ही लोग सेना का सोशल मीडिया पर लगातार मजाक बनाएँगे और पकड़े जाने पर अभिव्यक्ति की आज़ादी का हवाला देंगे। ऐसे लोग भूल जाएँगे कि जैश-ए-मोहम्मद जैसे कई आतंकी संगठन भारत को मिटाने के लिए अपना निशाना साधे बैठे हैं। जो मौक़ा मिलते ही अपने मनसूबों पर फ़तह हासिल करना चाहते हैं।
सोचिए, अगर यही सेना के जवान आपकी पत्थरबाजी और उठाए सवालों से तंग आकर सीमा से हट जाएँ… तो कैसे बचेंगे आप और कैसे सुरक्षित रहेगी आपकी अभिव्यक्ति की आज़ादी? अगर सेना ही आपकी और देश की सीमाओं की रक्षा करना बंद कर दे तो इन आतंकियों से कैसे कोई नेता और संविधान की कोई धारा आपकी रक्षा कर पाएगी, सोचिए जरा। सीमा पर तैनात जवान अगर ड्यूटी करना छोड़ दे तो इन आतंकियों के ख़िलाफ़ कोई न्यायालय आपकी शिक़ायत और गुहारों को न ही सुन पाएगा और न ही मामला दर्ज कर पाएगा। इसलिए थोड़े मतलबी होकर समय रहते सुरक्षाबलों की एहमियत को पहचानिए, कहीं देर न हो जाए।