मंगलवार (मार्च 6, 2019) को महारानी वीणापाणि देवी के निधन के साथ ही बंगाल की राजनीति में उथल-पुथल तेज़ हो गई है। बंगाल से बाहर अधिकतर लोगों ने भले ही वीणापाणि देवी ठाकुर का नाम नहीं सुना हो लेकिन पश्चिम बंगाल की राजनीतिक और धार्मिक व्यवस्था में उनका अहम किरदार रहा है। मतुआ समुदाय द्वारा ‘बड़ो माँ’ के नाम से पुकारी जानी वाली 100 वर्षीय महारानी समुदाय के 1.5 करोड़ लोगों की मार्गदर्शिका रहीं हैं। दशकों से उनका नेतृत्व करती आईं हैं। वैष्णव हिंदुत्व के एक भाग के रूप में मतुआ समुदाय ‘स्वयं दीक्षिति’ के सिद्धांत में विश्वास रखता है। हरिचंद ठाकुर के सिद्धांतों पर चलते हुए दिवंगत प्रमथ रंजन ठाकुर ने समुदाय की एकता व अखंडता के लिए प्रयास किया और भारत की आज़ादी के बाद अधिकतर मतुआ बांग्लादेश से विस्थापित होकर भारत आ गए। ऐसी कठिन परिस्थिति में इन्होने अपने समाज का नवनिर्माण किया और बंगाल की सामाजिक, राजनीतिक व धार्मिक व्यवस्था का एक अहम भाग बन कर उभरे।
वीणापाणि देवी प्रमथ रंजन ठाकुर की अर्धांगिनी थी। उनके निधन के बाद मतुआ समुदाय में एक नेतृत्व शून्य पैदा हो गया है। लेकिन, मतुआ महासंघ के रूप में उनके नेतृत्व के लिए एक संस्था है, जिसका निर्णय सर्वमान्य होता आया है। प्रमथ रंजन ठाकुर 1962 में कॉन्ग्रेस के टिकट पर विधायक भी बने थे। पूर्व के दिनों में छुआछूत का शिकार रहे नामशूद्र जाति से आने वाले ठाकुर परिवार ने इस समुदाय को नीचे से उठा कर काफ़ी उच्च स्थान तक पहुँचाया। इसके लिए कई आंदोलन हुए। पिछले 2 चुनावों से मतुआ समुदाय बड़ी संख्या में ममता बनर्जी को वोट करता रहा है। वीणापाणि देवी के कद का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके निधन के बाद मुख्यमंत्री बनर्जी के निर्देशानुसार बंगाल सरकार के आधे दर्जन मंत्री महारानी के अंतिम क्रिया-कर्म संपन्न कराने की व्यवस्था देख रहे थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महारानी के निधन के बाद उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए लिखा-
“बड़ो माँ वीणापाणि देवी हमारे समय की एक आइकॉन रहीं हैं। कई लोगों के लिए महान शक्ति और प्रेरणा का स्रोत रहीं बड़ो माँ के आदर्श आने वाली पीढ़ियों को प्रभावित करते रहेंगे। सामाजिक न्याय और सौहार्द को स्थापित करने की दिशा में उनके प्रयास सराहनीय हैं। पिछले महीने, मुझे ठाकुरनगर में बड़ो माँ वीणापाणि ठाकुर का आशीर्वाद प्राप्त करने का मौक़ा मिला। मैं हमेशा उसके साथ हुई बातचीत को संजो कर रखूँगा। दुःख की इस घड़ी में हम मतुआ समुदाय के साथ एकजुटता से खड़े हैं।”
Last month, I had the honour of seeking the blessings of Boro Ma Binapani Thakur at Thakurnagar. I will always cherish the interaction I had with her. We stand in solidarity with the Matua community in this hour of sadness. pic.twitter.com/kiD1FC3HWc
— Narendra Modi (@narendramodi) March 5, 2019
वीणापाणि देवी ने निधन के बाद का चुनावी गणित समझने से पहले हम आपको एक ऐसी चिट्ठी के बारे में बताना चाहेंगे, जिसे उनके द्वारा निधन से कुछ दिनों पूर्व लिखा गया था। तृणमूल अध्यक्ष और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सम्बोधित इस पत्र में उन्हें मतुआ समुदाय के लिए किए गए उनके वादों की याद दिलाई गई थी। इस पत्र में वीणापाणि ठाकुर ने लिखा था:
“मैं आपको याद दिला दूँ कि शरणार्थियों की नागरिकता और पुनर्वास लंबे समय से मतुआ समुदाय की स्थायी माँग रही है। आपने मुझसे वादा किया था कि आप मतुआ हितों की देखभाल करेंगी। नागरिकता हमारी काफ़ी दिनों से एक लंबित माँग रही है। अब चूँकि एक अवसर है, मैं आपसे अनुरोध करती हूँ कि आपकी अपनी पार्टी (तृणमूल कांग्रेस) को राज्यसभा में नागरिकता (संशोधन) विधेयक का समर्थन करे अन्यथा मतुआ समुदाय अब आपका समर्थन नहीं करेगा।”
इस पत्र ने बंगाल की सत्ताधारी पार्टी को हिला कर रख दिया। नागरिकता संशोधन विधेयक भाजपा की बड़ी नीतियों में से एक रही है और एक तरह से इसे भाजपा का ड्रीम प्रोजेक्ट कह सकते हैं। उत्तर-पूर्व और बंगाल में भाजपा नागरिकता संशोधन विधेयक को भुनाने के लिए पूरी तरह तैयार है। ऐसे में वीणापाणि देवी के इस पत्र में इस विधेयक का समर्थन करना तृणमूल के लिए कबाब में हड्डी बन गया और पार्टी ने इस पत्र को फेक करार दिया। लोगों का मानना है कि मतुआ महासंघ में अब दो गुट हो चुके हैं लेकिन महासंघ के अध्यक्ष शांतनु ठाकुर के बयानों और क्रियाकलापों पर गौर करें तो पता चलता है कि भाजपा अगर थोड़ी सी और गंभीरता दिखाए तो उसे मतुआ समुदाय के 1.5 करोड़ वोट मिलने से कोई नहीं रोक सकता।
शांतनु ठाकुर ने अपने बयानों में कई बार कहा है कि ममता बनर्जी चाहती हैं कि मतुआ फिर से वापस बांग्लादेश में चले जाएँ। आपको बता दें कि पीएम मोदी की बंगाल में हुई हालिया रैली के आयोजन में भी उनका ख़ासा योगदान था। तृणमूल कॉन्ग्रेस का मानना है कि इतनी उम्र में बड़ो माँ हस्ताक्षर कर ही नहीं सकतीं, इसलिए ये पत्र उनका नहीं है। ख़ैर, अब बात करते हैं मतुआ मतों के प्रभाव की। संघाधिपति के पद के लिए अभी से चर्चा शुरू हो गयी है लेकिन मतुआ समुदाय के तृणमूल वर्ग का मानना है कि संघ का जो निर्णय होगा, वो एकमत से सभी को स्वीकार्य होगा। पिछले दिनों तृणमूल विधायक सत्यजीत विश्वास की हत्या को भी इसी राजनीति से जोड़ कर देखा जा रहा है। दशकों से वाम-तृणमूल के ख़ूनी संघर्ष का गवाह रहे पश्चिम बंगाल में इस तरह की राजनीतिक हत्याएँ कोई नई बात नहीं है।
दरअसल, कृष्णगंज के विधायक विश्वास तृणमूल कॉन्ग्रेस और मतुआ समुदाय के बीच एक अहम कड़ी का कार्य कर रहे थे। एक तरह से दोनों पक्षों के बीच के सेतु थे। उनकी हत्या के साथ ही यह सेतु टूट चुका है और ममता बनर्जी की पार्टी मतुआ समुदाय से और दूर ही होती गयी है। चर्चा तो यह भी है कि वीणापाणि देवी के पोते शांतनु ठाकुर भाजपा के टिकट पर चुनाव भी लड़ सकते हैं। उनकी चाची तृणमूल का हिस्सा हैं। हो सकता है कि पारिवारिक कलह राजनीतिक युद्ध का रूप ले ले। चुनावों के इस मौसम में किसी भी ऐसी सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसी 6 लोकसभा सीटें हैं जहाँ मतुआ वैष्णव समुदाय चुनाव परिणाम को पलटने की ताक़त रखते हैं। वे हैं- कृष्णानगर, राणाघाट, बैरकपुर, बरसात, वनगाँव और कूचविहार।
मतुआ समुदाय के सबसे मजबूत किले ठाकुरगंज में रैली कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दिशा में कार्य शुरू कर दिया है। दिवंगत महारानी के पुत्र मंजुल कृष्णा ठाकुर पहले ही भाजपा में शामिल हो चुके हैं और उनके बेटे शांतनु तृणमूल के ख़िलाफ़ मुखर हैं। ऐसे में, ममता बनर्जी का सिरदर्द बन चुका नागरिकता संशोधन विधेयक अब उनके गले का फाँस बन चुका है। बता दें कि बरसात लोकसभा क्षेत्र में अच्छा-ख़ासा प्रभाव रखने वाले सीनियर तृणमूल नेता और विधाननगर के मेयर सब्यसाची दत्ता ने भाजपा नेता मुकुल रॉय से मुलाक़ात की है, जिसके बाद तृणमूल इस क्षेत्र में और भी कमजोर नज़र आ रही है। आगामी चुनाव और वीणापाणि देवी के निधन के बीच वामपंथी पराभव के इस दौर में बंगाल के अधिपत्य का ज़ंग जारी रहेगा। ये और गहरा होगा।