लोकसभा चुनाव आते ही बड़े से बड़े नेताओं को हार का डर सताने लगता है और जिन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र में कुछ काम ही नहीं किया हो, उनका कहना ही क्या! कुछ ऐसी ही स्थिति राहुल गाँधी की हो चली है। अमेठी में स्मृति ईरानी द्वारा चौतरफा घिरे राहुल को जब कुछ नहीं सूझा, उन्होंने दक्षिण भारत का रुख कर अपनी पारिवारिक परंपरा को निभाया है। केरल के वायनाड से राहुल गाँधी की उम्मीदवारी का ऐलान कर कॉन्ग्रेस ने लोगों की इस आशंका को बल दे दिया है कि राहुल गाँधी के लिए अमेठी में इस बार राह आसान नहीं है। स्मृति ईरानी ने हारने के बावजूद समय-समय पर क्षेत्र का दौरा किया है और जनसम्पर्क किया है। राहुल ने हमेशा की तरह अमेठी को फिर से नज़रअंदाज़ किया, शायद इस कारण उन्हें दो जगहों से परचा भरना पड़ रहा है। लेकिन क्या आपको पता है गाँधी परिवार के दो और लोग दक्षिण भारत से चुनाव लड़ चुके हैं?
यूपी में हारी इंदिरा गाँधी पहुँचीं चिकमंगलूर
दरअसल, इंदिरा गाँधी 1977 में रायबरेली से चुनाव हार गई थीं। प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को भारतीय लोक दल (BLD) के दिग्गज नेता राज नारायण ने हराया था। बीएलडी का जन्म स्वतंत्र पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी सहित 7 कॉन्ग्रेस विरोधी पार्टियों को मिलाकर हुआ था और चौधरी चरण सिंह इसके नेता थे। 1977 में यह जनसंघ के साथ मिलकर जनता पार्टी बना और बीएलडी के चुनाव चिह्न पर ही चुनाव में हिस्सा लिया गया। इंदिरा गाँधी की करारी हार से कॉन्ग्रेस को तगड़ा झटका लगा क्योंकि न सिर्फ़ रायबरेली बल्कि पूरे देश में पार्टी की हालत बदतर हो चली थी। तब पूर्ण बहुमत के साथ जनता पार्टी ने मोरारजी देसाई के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनाई थी।
रायबरेली में 55,000 से भी अधिक वोटों से हारी इंदिरा ने वापस संसद पहुँचने के लिए चिकमंगलूर का रुख किया था। कर्नाटक के चिकमंगलूर की जीत इंदिरा गाँधी के करियर के लिए एक टर्निंग पॉइंट साबित हुई और उन्होंने एक बार फिर से खोई सत्ता हासिल करने की कवायद शुरू की। चिकमंगलूर में एक महीने के गहन प्रचार-प्रसार के दौरान इंदिरा ने रेलगाड़ी, बैलगाड़ी से लेकर बिना एसी वाली एम्बेसडर से भी प्रचार किया। उस दौरान वह एक दिन में 18 घंटे प्रचार किया करती थीं। उस दौरान कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं ने नारा गढ़ा था- “एक शेरनी, सौ लंगूर – चिकमंगलूर, चिकमंगलूर”।
Indira Gandhi from Chikmagalur in 1978 & Medak in 1980. Sonia Gandhi from Bellary in 1999. They resigned later. Why vote them? No use. https://t.co/j3fARU2zWx
— DP SATISH (@dp_satish) March 31, 2019
जनता पार्टी ने दिवंगत जदयू नेता जॉर्ज फर्नांडिस से प्रचार करवाया था। उन्होंने इंदिरा गाँधी को कोबरा बताया था। इंडियन एक्सप्रेस के एक पत्रकार के अनुसार, रामनाथ गोयनका उस समय कॉन्ग्रेस के विरोधी थे और उन्होंने सभी पत्रकारों को इंदिरा गाँधी के ख़िलाफ़ हर एंगल से लिखने के निर्देश जारी किए थे। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी यह चुनाव चर्चा का विषय बना था। चिकमंगलूर से इंदिरा के 70,000 वोटों से जीतने के बावजूद बाद में यह कॉन्ग्रेस का गढ़ नहीं रहा। भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों ने यहाँ कई बार जीत का परचम लहराया। लेकिन, इतिहास में ये दर्ज हो गया कि जब इंदिरा गाँधी रायबरेली हार गईं, तब दक्षिण भारतीय राज्य के एक संसदीय क्षेत्र ने उन्हें वापस संसद पहुँचाया।
जब बेल्लारी में हुआ सोनिया बनाम सुषमा मुक़ाबला
इसी तरह जब सोनिया गाँधी ने पहली बार चुनाव लड़ा, तो उन्होंने अमेठी के साथ-साथ कर्नाटक के बेल्लारी से पर्चा भरा। उस समय सोनिया गाँधी के विदेशी मूल के होने के कारण उन्हें लेकर देश में विवादों का दौर चल रहा था। भाजपा की फायरब्रांड नेता रहीं सुषमा स्वराज ने तो यहाँ तक कह दिया था कि अगर सोनिया देश की प्रधानमंत्री बनती हैं तो वो अपना बाल मुँड़वा लेंगी। 1999 में कॉन्ग्रेस ने सोनिया गाँधी को 2 सीटों पर लड़ाने की सोची क्योंकि शायद उन्हें जनता के मूड का अंदाज़ा नहीं था और वे इस बात से निश्चिंत नहीं थे कि क्या भारत की जनता इतालवी मूल की महिला को नेता के रूप में स्वीकार करेगी? बेल्लारी में सोनिया को टक्कर देने ख़ुद सुषमा स्वराज पहुँचीं।
वहाँ 56,000 वोटों से हार-जीत का निर्णय हुआ और चूँकि सोनिया गाँधी ने अमेठी से भी जीत दर्ज की थी, उन्होंने बेल्लारी लोकसभा क्षेत्र को छोड़ दिया। बेल्लारी भी 2004 से 2018 तक भाजपा का गढ़ रहा। 2018 में हुए उपचुनाव में कॉन्ग्रेस ने पिछले 15 वर्षों में पहली बार इस सीट को फतह किया। उस समय भी कॉन्ग्रेस ने सेफ सीट के चक्कर में ही बेल्लारी को चुना था। सुषमा को वहाँ भेजे जाने के साथ ही सोनिया की एकतरफा जीत का सपना धरा का धरा रह गया था। इंडिया टुडे ने इसे ‘बहनजी बनाम बहूजी’ का नाम दिया था। एक तरफ बिंदी और भारतीय रीति-रिवाजों को मानने वाली सुषमा स्वराज थीं तो दूसरी तरफ विदेशी मूल की सोनिया गाँधी।
Election Hindu @OfficeOfRG we would like to know what has your Mother Sonia Gandhi given back to Bellary in all these years after they chose her as their representative? Why has she forgotten Bellary?
— Chowkidar Shobha Karandlaje (@ShobhaBJP) February 10, 2018
बेल्लारी को कॉन्ग्रेस के सबसे बड़े गढ़ों में से एक माना जाता था। इंदिरा गाँधी का जादू यहाँ सर चढ़ कर बोला करता था। फिर भी, सोनिया को यहाँ जीतने के लिए नाकों चने चबाने पड़े। कॉन्ग्रेस ने भाजपा को मूर्ख बनाने और सोनिया को आसान जीत दिलाने के लिए उनके दक्षिण भारत के किसी तीन में से एक सीट से लड़ने का अफवाह उड़ाया। सोनिया गाँधी को हैदराबाद ले जाया गया ताकि भाजपा को छला जा सके लेकिन उस समय हैदराबाद में बैठे वेंकैया नायडू को इसकी भनक लग गई कि सोनिया को बेल्लारी से लड़ाया जा रहा है। वहाँ एसपीजी की तैयारियों से भी भाजपा को बहुत कुछ पता चल गया।
सोनिया द्वारा कुडप्पा से लड़ने की स्थिति में भाजपा ने लोकप्रिय तेलुगु अभिनेत्री विजयशंति से चुनाव लड़ने की पेशकश की थी। आख़िरकार वाजपेयी की सहमति के बाद बेल्लारी से सुषमा स्वराज को लड़ने को कहा गया और उन्होंने अपनी सहमति भी दे दी। इस तरह डरी हुई कॉन्ग्रेस की तरफ से लड़ रही सोनिया गाँधी को भी दक्षिण भारत के एक संसदीय क्षेत्र ने जिताया और तमाम आशंकाओं के बावजूद उन्हें वहाँ से जीत मिली।
अब बारी हार के डर से जूझ रहे राहुल की
अब राहुल गाँधी ने अपनी मुश्किल राजनीतिक परिस्थितियों में केरल के वायनाड को चुना है। उनके इस निर्णय से केरल में राज कर रही वामपंथी सरकार भी नाराज़ हो गई है। मुख्यमंत्री विजयन और वामपंथी नेता प्रकाश करात ने राहुल के इस क़दम को पार्टी के ख़िलाफ़ लड़ाई माना है। आपको बता दें कि मुस्लिम मतों का यहाँ पर ख़ासा प्रभाव है और कॉन्ग्रेस को उम्मीद है कि मुस्लिमों का वोट राहुल गाँधी को जिताने के लिए काफ़ी होगा। केरल में राहुल गाँधी के कई भरोसेमंद बड़े नेता भी हैं जो अपनी कुशल मशीनरी के साथ उनकी इस सीट पर जीत सुनिश्चित करने के लिए मेहनत करेंगे ताकि राहुल देश के अन्य इलाक़ों में प्रचार कर सकें। इस पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा है कि राहुल को ‘हार का डर’ है।
नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, राहुल की उम्मीदवारी पर निर्णय से पहले कॉन्ग्रेस ने मुस्लिम लीग के नेताओं से भी बातचीत की ताकि मुस्लिमो मतों को अपनी तरफ किया जा सके। वाम नेता सीताराम येचुरी ने भी राहुल की मंशा पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि वो ऐसी भी सीट से लड़ सकते थे, जहाँ भाजपा से उनकी सीधी टक्कर हो। कॉन्ग्रेस इस क्षेत्र में बढ़ी माओवादी घटनाओं को लेकर राज्य और केंद्र सरकारों पर निशाना साधेगी ताकि यहाँ वोट बटोरे जा सकें। कुल मिलकर यह कि कॉन्ग्रेस जब-जब मुश्किल में होती है, अपने सुप्रीम नेता के लिए दक्षिण भारत में एक सेफ पैसेज खोजती है।