जावेद अख़्तर- एक ऐसा नाम, जिसने कई ऐतिहासिक बॉलीवुड फ़िल्मों की स्क्रिप्ट, कहानी और स्क्रीनप्ले लिखा। एक ऐसा नाम, जिसने सलीम खान के साथ जोड़ी बना कर अमिताभ बच्चन की सफलता को नया आयाम दिया, महानायक के सुपरस्टारडम को विस्तार दिया। एक ऐसा नाम, जिसने अपनी कालजयी लेखनी से फ़िल्मी गानों में अर्थ डाले- दर्द, दवा, ज़िंदगी लेकर युद्ध, शांति और प्यार तक को शब्दों के जाल में बुन कर आवाम तक पहुँचाने का काम किया। लेकिन, अब समय बदल गया है। जावेद अख़्तर ने एक बार फिर से अपना रोल बदल लिया है।
फ़िल्मों के स्क्रिप्ट लिखने से अपने करियर की शुरुआत करने वाले अख़्तर ने बाद में गीतकार की भूमिका चुनी और सफल हुए। नवंबर 2009 में उन्हें राज्यसभा के लिए नामित किया गया। संसद में उनकी उपस्थिति मात्र 53% रही जो 78% के राष्ट्रीय औसत से काफ़ी कम रही। आज ट्विटर पर हर एक बहस में जबरन कूद कर अपनी ही इज्ज़त उछालने वाले अख़्तर ने अपने 6 वर्ष के संसदीय कार्यकाल में एक भी प्रश्न नहीं पूछे। इसके बाद अब वह ताज़ा किरदार में आ गए हैं। उन्होंने अपने लिए सोशल मीडिया ट्रोल की भूमिका ढूँढ ली है।
जावेद अख़्तर ट्विटर पर लोगों से ऐसे लड़ते हैं, जैसे वह सेलिब्रिटी न होकर कोई सड़क छाप रंगदार हों। जावेद अख़्तर की सोच कल भी वही थी, आज भी वही है। जब-जब भाजपा की सरकार आती है, उनके अंदर का विद्रोही कीड़ा कुलबुलाने लगता है और फिर जावेद साहब उलूलजलूल बयानों की शरण में उतर आते हैं। ट्विटर ट्रोल के किरदार में फ़िट बैठ रहे जावेद अख़्तर की सोच को समझने के लिए हमें 2002 में जाना होगा जब देश में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार चल रही थी।
उस दौरान जावेद अख़्तर की भाषा वही थी जो आजकल सक्रिय तथाकथित लिबरल और सेक्युलर लोगों की है। उस दौरान जावेद अख़्तर ने एक साक्षात्कार में कहा था कि राजनीतिक विरोधियों, असंतुष्टों और अल्पसंख्यकों को हाशिये पर रखने के प्रयास किए जा रहे हैं। यही वही भाषा है जो कश्मीरी UPSC टॉपर शाह फ़ैसल बोलते हैं। उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफ़ा देते वक़्त कहा कि हिंदुत्व ताक़तों से 20 करोड़ मुस्लिमों को हाशिये पर भेज दिया है। जब-जब भाजपा की सरकार आती है- यह राग इतनी बार आलापा जाता है कि आपके कान ख़राब हो जाएँ।
उसी इंटरव्यू में जावेद अख़्तर ने बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद को आतंकवादी संगठन बताया था। अब जावेद अख़्तर के इतिहास से उनके वर्तमान पर आते हैं। हमें यह देखना होगा कि सोशल मीडिया में वह जिस तरह की भाषा का प्रयोग कर रहे हैं, क्या उन्होंने ऐसी भाषा अपनी लिखी फिल्मों या गानों में प्रोग की है क्या? जावेद अख़्तर ने ऑपइंडिया अंग्रेजी की सम्पादक नुपुर शर्मा से बहस करते ट्विटर पर लिखा:
“जब भी ये नफ़रत की सौदाग़र मुझे कोई असभ्य सन्देश भेजेगी, मैं भी जवाब में एक असभ्य लेकिन अधिक मज़ाकिया प्रत्युत्तर के साथ वापस आऊँगा।”
All I mean that every time this hate Monger will send me a rude message I will get back to her with a rude but much mor witty message and that goes for you too . So , continue , I am not going any where .
— Javed Akhtar (@Javedakhtarjadu) January 28, 2019
जावेद अख़्तर के लिए उनके ट्वीट में व्याकरण की त्रुटियाँ निकालना ‘असभ्य’ है, वो भी उस ट्वीट में, जिसमे वह ख़ुद बहसबाज़ी में तल्लीन होकर सामनेवाले की मानसिकता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहे हों। इतना ही नहीं, ट्विटर ट्रोल की हर एक परिभाषा में फ़िट बैठने के लिए शायद उन्होंने कोई ख़ास प्रशिक्षण ले रखा है। अपने-आप को नास्तिक कहने वाले जावेद अख़्तर को जब इस बात की याद दिलाई गई कि केवल भारतीय धर्मों में नास्तिकों के लिए स्थान है, तो वह बिफ़र उठे। उन्हें बस यह सवाल पूछा गया था कि इस्लाम में नास्तिकों के साथ क्या किया जाता है? इस बात पर उन्होंने मज़ाक बनाते हुए दाभोलकर, पनसारे और कलबुर्गी का नाम लिया।
किसी की व्यक्तिगत राय अलग हो सकती है। यह तब तक स्वीकार्य है, जब तक वह राय व्यक्तिगत रहे, उसे किसी पर जबरन थोपने की कोशिशें न की जाए। जावेद अख़्तर हर उस व्यक्ति से लड़ पड़ते हैं जो उनकी विचारधारा, बयानों और सोच से मतभेद प्रकट करता है।
पिछले वर्ष अप्रैल में उन्होंने राष्ट्रीय जाँच एजेंसी NIA को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया था। मक्का मस्ज़िद मामले में NIA पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा था कि एजेंसी के पास विधर्मी विवाहों की जाँच करने के लिए दुनियाभर का समय है।
Mission accomplished !! . My congratulations to NIA for their grand success in Mecca Masjid case. Now they have all the time in the world to investigate inter community marriages !!!
— Javed Akhtar (@Javedakhtarjadu) April 18, 2018
जावेद अख़्तर एक ऐसे ट्विटर ट्रोल के रूप में विकसित होकर उभरे हैं कि अगर हम उनके सारे ऐसे ट्वीट्स की पड़ताल करने बैठ जाएँ तो इस पर पूरी की पूरी पुस्तक लिखी जा सके। इसीलिए उसके ट्वीट्स से ज़्यादा उनकी दिन पर दिन विकृत होती जा रही मानसिकता, संकुचित होती जा रही सोच और फूहड़ होते जा रहे बयानों की चर्चा करना उचित रहेगा।
जावेद अख़्तर को जिस सरकार के कार्यकाल में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होता नज़र आ रहा था, उसी सरकार द्वारा उन्हें 1999 में पद्म श्री से नवाज़ा गया था। उसी सरकार के कार्यकाल में उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले। यह विरोधाभाषी है। 1971 से ही फ़िल्मों में सक्रिय अख़्तर को क़रीब 30 वर्ष बाद पहली बार पद्म पुरस्कार मिला, उसी पार्टी के कार्यकाल में, जिसके सत्ता में आते वो एक ट्रोल का रूप धारण कर लेते हैं।
जावेद अख़्तर से उनकी लिखी फ़िल्मों और गानों का फैन उनसे यही विनती करेगा कि कृपया एक ट्रोल की तरह व्यवहार करना बंद कर दें। आप सोशल मीडिया पर सक्रिय रहें, ख़ूब वाद-विवाद करें, संसद में जो मौका अपना गँवाया था, उसे ट्विटर पर धरे रखें। लेकिन, जो भाषा आप अपने गीतों में इस्तेमाल करते रहे है, जो भाषा आपकी लेखनी में झलकती है- उसी शालीन भाषा का उपयोग करें। गली के आवारा बदमाशों वाली भाषा आपको शोभा नहीं देती।