श्री लंका में हुए बम ब्लास्ट दुःखदायी हैं और उससे भी ज़्यादा निंदनीय है उसे लेकर फैलाया जा रहा दुष्प्रचार। अंतरराष्ट्रीय टीवी न्यूज़ चर्चाओं में भी कुछ लिबरल किस्म के लोगों ने इस हमले से हुए नुक़सान पर चर्चा करने की बजाए इतिहास में जाकर श्री लंका में समुदाय विशेष पर हो रहे कथित अत्याचार का ज़िक्र किया। अगर हमला चर्च पर हुआ है तो इसका मुसलमाओं और सिंहलियों के बीच छिटपुट संघर्ष से क्या लेना-देना है? ताज़ा हमले में पीड़ित ईसाई हैं, हमले के पीछे पुलिस उग्र इस्लामिक कट्टरपंथी आतंकियों का हाथ मान रही है, ऐसे में कुछ लोगों को ज़ल्दबाज़ी हो रही है कि इसके पीछे बौद्धों को दोषी साबित किया जाए। ये वामपंथी विचारधारा के लोग हैं। इनकी पहचान यह है कि ये लोग एकपक्षीय मानवाधिकार की बात करते हैं। ये हर तरह से ये साबित करने में लगे हैं कि कोलंबो में हुए सीरियल ब्लास्ट्स में इस्लामिक आतंकवाद का हाथ नहीं है। आइए इनकी पोल खोलते हैं।
पहले तथ्यों की बात कर लें। नवंबर 2016 में जनवरी में श्रीलंका सरकार ने कहा था कि देश के 32 अच्छी तरह से पढ़े-लिखे और अच्छे परिवारों के समुदाय विशेष वालों ने वैश्विक इस्लामी आतंकी संगठन आईएस में शामिल हो गए हैं। क़ानून मंत्री विजयदासा राजपक्षे ने इस बारे में अधिक जानकारी देते हुए कहा था कि आईएस में शामिल होने वाले ये लोग ग़रीब या दबे हुए नहीं थे बल्कि अच्छी तरह शिक्षित और इलीट परिवारों से थे। राजपक्षे ने यह भी बताया था कि कुछ विदेशियों ने श्री लंका पहुँच कर इस्लामिक आतंकवाद का प्रचार-प्रसार किया। किसी भी सभ्य समाज में इस बयान के बाद आईएस और उसमे शामिल होने वाले लोगों की निंदा होनी चाहिए लेकिन आइए आपको बताते हैं कि श्री लंका के इस्लामिक संगठनों ने क्या किया?
Sri Lanka has blamed local jihadist group National Thowheed Jamath for one of Asia’s deadliest terrorist attacks in years.
— TicToc by Bloomberg (@tictoc) April 22, 2019
Here’s what we know about the Easter Sunday blasts: pic.twitter.com/BmAGYi3Yb9
श्री लंका के मुस्लिम संगठनों के सबसे बड़े समूह ‘द मुस्लिम काउंसिल ऑफ श्रीलंका’ ने मंत्री के इस बयान की ही निंदा कर डाली और उन्हें सबूत दिखाने को कहा। संगठन ने बौद्ध भिक्षुओं द्वारा कथित तौर पर फैलाए जा रहे Racism का जिक्र किया और कहा कि ये कट्टरवादी बौद्ध भिक्षु मुस्लिमों के ख़िलाफ़ अभियान चला रहे हैं। अगर श्री लंका के मुस्लिम समुदाय ने एकमत से मंत्री के बयान को गंभीरता से लेते हुए अपने समाज में ऐसे लोगों व परिवारों को चिह्नित करने का कार्य किया होता और इस्लामिक आतंकवाद के विरुद्ध अभियान छेड़ा होता तो शायद आज श्री लंका को ये दिन नहीं देखने पड़ते। 2014 में श्री लंकाई मुस्लिम संगठनों ने सरकार को आगाह किया था कि मुस्लिम युवा विदेशी आतंकी संगठनों की तरफ़ आकर्षित हो रहे हैं क्योंकि उन पर बौद्धों द्वारा अत्याचार किया जा रहा है।
यह सबसे बेहूदा कारण होता है किसी भी ग़लत हरकत को ढँकने के लिए। ऐसे लोगों द्वारा कहा जाता है कि कश्मीर में लोगों को प्रताड़ित किया गया तो वे आतंकी बन गए। यही लोग कहते हैं कि श्री लंका में बौद्धों से पीड़ित मुस्लिमों ने आतंकी संगठनों का रुख़ किया। इसी गिरोह विशेष के लोग रोहिंग्या को भारत में बसाने की वकालत करते हुए कहते हैं कि म्यांमार के बौद्धों द्वारा प्रताड़ित किए जाने के कारण कई रोहिंग्या अपराधी बन गए। ऐसा कहते समय ये लोग भूल जाते हैं कि जिस कश्मीरी पंडित समाज को घाटी से मार-मार कर निकाल दिया गया, उनका ख़ून बहाया गया, उनकी सम्पत्तियाँ छीन ली गईं और उन्हें उनके ही देश में शरणार्थियों की तरह जीवन व्यतीत करने को विवश कर दिया गया, उन पंडितों ने तो कभी हथियार नहीं उठाए। 1984 में कॉन्ग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं द्वारा सिखों का नरसंहार किया गया, वे सिख तो आतंकी नहीं बने? उन्होंने क़ानूनी लड़ाई लड़ी।
जरा इन नैरेटिव पर गौर कीजिए:
- अगर किसी आतंकी घटना को मुस्लिमों ने अंजाम दिया है तो ज़रूर वे पीड़ित मुस्लिम रहे होंगे।
- अगर आतंकी पीड़ित नहीं है तो उनका परिवार, समाज ज़रूर पीड़ित रहा होगा।
- ये भी हो सकता है कि 100 किलोमीटर दूर अपने समाज के किसी व्यक्ति को पीड़ित देखकर वो आतंकी बन गया और लाशें बिछा डाली।
- प्रताड़ित करने वाला हिन्दू या बौद्ध ही रहा होगा। इनके द्वारा प्रताड़ित किए जाने वाले मुस्लिम आतंकी बनकर लाशें बिछाते हैं तब भी विक्टिम मुस्लिम समाज ही है।
- अगर घटना के पीछे मुस्लिम आतंकी है तो वो पीड़ित है, वहीं अगर हिन्दू या बौद्ध की तरह ग़लती से कोई अन्य समुदाय का हाथ निकला तब इन वामपंथियों की बल्ले-बल्ले ही है।
श्रीलंका वाली घटना के समय वामपंथियों द्वारा मालेगाँव को याद किया गया। कुछ लोगों ने तो एक क़दम और आगे बढ़कर लिट्टे को एक हिन्दू संगठन बताते हुए उसके द्वारा किए जाने वाली आतंकी वारदातों को हिन्दुओं द्वारा की गई साबित करना चाहा। क्या ये सबका यह सही समय था? लिट्टे ने अपने अजेंडे में ख़ुद को सेक्युलर बताया था। वो ‘तमिल अधिकार’ के लिए लड़ने का दावा करते थे। लिट्टे के आतंकियों ने कभी ख़ुद को हिन्दू धर्म के लिए लड़नेवाला नहीं बताया बल्कि उनकी पूरी लड़ाई तमिल बनाम सिंहला केंद्रित थी। जहाँ लिट्टे ख़ुद को डंके की चोट पर सेक्युलर और धर्मनिरपेक्ष संगठन मानता रहा, ऐसे में उसे हिन्दू ठहराना जायज़ है क्या? संजातीय अल्पसंख्यकों के आतंकी संगठन को जबरन हिन्दू ठहराने की कोशिश की गई।
Hey Swine,
— True Indology (@TrueIndology) April 21, 2019
LTTE is NOT a Hindu party. In its manifesto, LTTE defined itself as “Socialist and Secular”. The ideology/religion of LTTE is same as yours. Secularism.
Do not keep proving again and again that you truly deserve your name. https://t.co/rCK45usp3t
इसी तरह वामपंथी कविता कृष्णन ने श्रीलंका ब्लास्ट्स को लेकर किए गए ट्वीट में ‘बौद्ध कट्टरवाद’ को हाइलाइट करते हुए कहा कि भले ही इसमें उनका हाथ हो या न हो, ये ब्लास्ट्स मालेगाँव की तरह हैं। अगर स्केल और प्लानिंग की बात करें तो श्री लंका में हुए ब्लास्ट्स मालेगाँव से कहीं ज़्यादा वीभत्स हैं। मालेगाँव की तरफ 2-3 नहीं बल्कि 8 बम फटे और 40-50 नहीं बल्कि लगभग 300 लोगों के मारे जाने की आशंका है। हालाँकि, किसी साधारण हमले में एक व्यक्ति की जान जाती है तो भी यह अपूरणीय क्षति है लेकिन 300 लोगों की जान लेने वाले ब्लास्ट्स को लेकर प्रोपेगेंडा फैला रहे वामपंथियों ने बौद्धों को आतंकी साबित करने का नंगा ठेका रखा है।
Whether or not the perpetrators of #srilankablasts are from the Buddhist majority this time, the point I make remain the same –
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) April 21, 2019
The attacks on Churches on Easter are like the Malegaon blasts on Shab-e-baraat or Christchurch on Friday – to maximise casualties of victim community. https://t.co/lHIWT5dpQD
इस वर्ष जनवरी में श्री लंका पुलिस ने कई डेटोनेटर और विस्फोटक सामग्रियाँ ज़ब्त की थी। क्या आपको पता है ये सामग्रियाँ किन लोगों से ज़ब्त की गई थी? इस्लामिक आतंकियों से। इतना ही नहीं, पुलिस ने चार मुस्लिमों को गिरफ़्तार भी किया था। स्थानीय इस्लामिक आतंकी संगठन ‘नेशन तोहिथ जमात’ द्वारा चर्चो को निशाना बनाए जाने को लेकर सुरक्षा एजेंसियों को भी कुछ इनपुट्स मिले थे। अगर 2016 में श्री लंकाई मुस्लिमों के आईएस जॉइन करने और इस वर्ष कुछ मुस्लिमों के विस्फोटकों के साथ पकड़े जाने वाली घटनाओं को जोड़कर देखें तो तस्वीर बहुत हद तक साफ़ हो जाती है लेकिन वामपंथियों को किसी भी हमले के बाद हिन्दुओं व बौद्धों को आतंकी साबित करने की जल्दी रहती है। अगर आतंकी मुस्लिम निकल आए तो ये उन्हें हिन्दू या बौद्ध कट्टरवाद से पीड़ित बताकर पल्ला झाड़ लेते हैं। यानी चित भी मेरी और पट भी मेरी।
Bihar: Buddhist monks, at Mahabodhi Temple in Bodh Gaya, conducted a prayer meeting & took out a candle light march last night for the victims of the serial bombings that took place in Sri Lanka on 21 April. pic.twitter.com/TgH32pjXwL
— ANI (@ANI) April 21, 2019
बोधगया में बौद्ध भिक्षुओं ने श्री लंका ब्लास्ट्स में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थनाएँ आयोजित की। उन्होंने कैंडल लाइट मार्च भी निकाला। महाबोधि मंदिर में पीड़ितों के लिए प्रार्थना की गई। ये बौद्ध ईसाई चर्चों पर हुए हमलों के बाद हा-हा नहीं रिएक्ट जार खुशियाँ मना रहे हैं। ये पीड़ितों के साथ खड़े नज़र आ रहे हैं और अपनी संवेदनाएँ ज़ाहिर कर रहे हैं। ऐसे में, दोनों समुदायों के बीच क्या अंतर है, आप ख़ुद देख लीजिए।