ममता बनर्जी का रवैया भारत में इस्लामिक शासन की याद दिलाता है। जब इस्लामिक आक्रांता किसी राज्य या क्षेत्र को जीत लेते थे, तो वहाँ एक गवर्नर बिठा कर आगे निकल लेते थे। समय-समय पर गवर्नर बाग़ी हो उठते थे और अपना अलग राज्य कायम कर लेते थे। कई बार उन्हें इसके लिए अपने आका से युद्ध करनी पड़ती, तो कई बार वो चोरी-छिपे ऐसा करने में सफल हो जाते थे। ममता बनर्जी आज उसी इस्लामिक राज व्यवस्था की प्रतिमूर्ति बन खड़ी हो गई है, जो आंतरिक कलह, गृहयुद्ध और ख़ूनख़राबे को जन्म देता है, लोकतंत्र को अलग-थलग कर अपनी मनमर्जी चलाने को सुशासन कहता है।
पूरी घटना: एक नज़र में
आगे बढ़ने से पहले उस घटना और उसके बैकग्राउंड के बारे में जान लेना ज़रूरी है, जिसके बारे में हम चर्चा करने जा रहे हैं। दरअसल, शारदा चिटफंड और रोज़ वैली चिटफंड घोटाले वाले मामले में CBI को कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार की तलाश थी। हालाँकि, एजेंसी पहले से ही कहती आई है कि पश्चिम बंगाल सरकार जाँच में सहयोग नहीं कर रही है। चिट फंड घोटालों में ममता के कई क़रीबियों के नाम आए हैं और यही कारण है कि राफ़ेल पर चीख-चीख कर बोलने वाली ममता बनर्जी अपने लोगों को बचाने के लिए इस हद तक उत्तर आई है।
रविवार (फरवरी 3, 2019) को जब CBI के अधिकारीगण राजीव कुमार के बंगले पर पहुँचे, तब बंगाल पुलिस ने न सिर्फ़ केंद्रीय एजेंसी की कार्यवाही में बाधा पहुँचाई, बल्कि उनके साथ दुर्व्यवहार किया और अपराधियों की तरह उठा कर थाने ले गए। सैंकड़ों की संख्या में पुलिस फ़ोर्स ने केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) के आधिकारिक परिसरों को घेर लिया। पुलिस यहीं नहीं रुकी, जाँच एजेंसियों के अधिकारियों के आवासीय परिसरों को भी नहीं बख़्शा गया।
स्थिति की गंभीरता को भाँपते हुए ममता बनर्जी सक्रिय हुई और उन्होंने राज्य पुलिस की इस निंदनीय कार्रवाई को ढकने के लिए इसे राजनीतिक रंग से पोत दिया। सबसे पहले वो राजीव कुमार के आवास पर गई और उसके बाद केंद्र सरकार पर ‘संवैधानिक तख़्तापलट’ का आरोप मढ़ धरने पर बैठ गई। ख़ुद को अपनी ही न्याय-सीमा में असहाय महसूस कर रहे केंद्रीय एजेंसियों के अधिकारीयों ने राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी का दरवाजा खटखटाया, जिसके बाद तनाव थोड़ा कम हुआ और एजेंसियों के दफ़्तरों को ‘गिरफ़्त’ से आज़ाद किया गया। महामहिम त्रिपाठी ने राज्य के मुख्य सचिव को तलब कर रिपोर्ट माँगी।
#WATCH West Bengal Chief Minister Mamata Banerjee continues dharna over CBI issue after a short break early morning. West Bengal CM began the ‘Save the Constitution’ dharna last night. #Kolkata pic.twitter.com/DBoS0GC1MJ
— ANI (@ANI) February 4, 2019
शनिवार (फ़रवरी 2, 2019) की रात को जब पुलिस ने घेराबंदी हटाई, तब केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) ने केंद्रीय जाँच एजेंसियों के अधिकारियों के निवास एवं दफ़्तर (निज़ाम पैलेस और CGO कॉम्प्लेक्स) को अपनी सुरक्षा में ले लिया। CRPF के वहाँ तैनात होने के बाद अब अंदेशा लगाया जा रहा है कि भविष्य में भी तनाव कम होने की उम्मीद नहीं है और बंगाल सरकार ने दिखा दिया है कि वो किस हद तक जा सकती है। जिस तरह से डिप्टी पुलिस कमिश्नर मिराज ख़ालिद के नेतृत्व में पुलिस ने CBI अधिकारियों को पकड़ कर गाड़ी के अंदर डाला और उन्हें थाने तक ले गई, उसे देख कर तानाशाही भी शरमा जाए।
मीडिया में एक फोटो काफ़ी चल रहा है, जिसमे बंगाल पुलिस CBI के एक अधिकारी को हाथ और गर्दन पकड़ कर उसे गाड़ी के अंदर ढकेल रही है, जैसे वह कोई अपराधी हो। अपने ही देश में, देश की प्रमुख संवैधानिक संस्था के अधिकारी के साथ एक अपराधी वाला व्यवहार देश के हर नागरिक के रोंगटे खड़े करने की क्षमता रखता है। यह जितना दिख रहा है, उस से कहीं ज्यादा भयावह है। यह एक ऐसे ख़तरनाक चलन की शुरुआत है, जिसे आदर्श मान कर अन्य तानाशाही रवैये वाले नेता भी व्यवहार में अपना सकते हैं।
संवैधानिक संस्था की कार्रवाई का राजनीतिकरण
वैसे यह पहला मौक़ा नहीं है, जब CBI और ED जैसी केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई का राजनीतिकरण किया गया हो। ऐसी कार्रवाइयों का पहले भी विरोध हो चुका है और इनके राजनीतिकरण के प्रयास किए जा चुके हैं। लेकिन, इनकी कार्यवाही में इतने बड़े स्तर पर बाधा पहुँचाने की कोशिश शायद पहली बार की गई है। और, सबसे बड़ी बात यह कि ‘उलटा चोर कोतवाल को डाँटे’ वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर ही तानाशाही का आरोप मढ़ धरने पर बैठ कर, नया नाटक शुरू कर दिया है।
इस बात पर विचार करना जरूरी है कि ममता बनर्जी ने अपनी इस पटकथा का मंचन क्यों किया? दरअसल, राज्य पुलिस सत्ताधारी तृणमूल कॉन्ग्रेस से वफ़ादारी की हद में इतनी उग्र हो गई कि उन्होंने CBI अधिकारियों की बेइज्जती की। वो अधिकारी, जो भारतीय न्याय-प्रणाली के अंतर्गत अपना कार्य कर रहे थे। बंगाल पुलिस और राज्य सरकार ने ऐसा व्यवहार किया, जैसे पश्चिम बंगाल भारतीय गणराज्य के अंतर्गत कोई क्षेत्र न होकर एक स्वतंत्र द्वीपीय देश हो।
CBI के अधिकारियों के साथ मिल-बैठ कर भी बात किया जा सकता है। लेकिन, बंगाल पुलिस ने ममता बनर्जी के एजेंडे के अनुसार कार्य किया क्योंकि उन्हें पता था कि कुछ भी गलत-शलत होता है तो मैडम डैमेज कण्ट्रोल के लिए खड़ी हैं। जब ममता बनर्जी ने देखा कि राज्य पुलिस ने ऐसा निंदनीय कार्य किया है, तो वो तुरंत डैमेज कण्ट्रोल मोड में आ गई और और उसी के तहत चुनावी माहौल और कथित विपक्षी एकता के छाते तले इस घटना को राजनीतिक रंग दे दिया।
The highest levels of the BJP leadership are doing the worst kind of political vendetta. Not only are political parties their targets, they are misusing power
— Mamata Banerjee (@MamataOfficial) February 3, 2019
to take control of the police and destroy all institutions. We condemn this 1/2
ममता बनर्जी जानती थी कि उनके एक बयान पर विपक्षी नेताओं के केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ ट्वीट्स आएँगे। ममता बनर्जी जानती थी कि अगर वो धरने जैसा कुछ अलग न करें तो सारे मीडिया में बंगाल पुलिस की किरकिरी होनी है। ममता बनर्जी जानती थी कि अगर इस घटना का इस्तेमाल कर केंद्र सरकार और मोदी को 10 गालियाँ बक दी जाए, तो पूरी मीडिया और पब्लिक का ध्यान उनके बयान और धरने पर आ जाएगा। अपनी नाकामी, सरकारी मशीनरी का गलत इस्तेमाल और बंगाल में तानाशाही के इस अध्याय को छिपाने के लिए ममता ने ये स्वांग रचा। लालू यादव, राहुल गाँधी, उमर अब्दुल्लाह, देव गौड़ा सहित सभी विपक्षी दलों का समर्थन उन्हें मिला भी।
लोकतंत्र में अदालत है तो डर कैसा?
भारतीय लोकतंत्र के तीन खम्भों में से न्यायपालिका ही वह आधार है, जिस पर विपक्षी दल भरोसा करते हैं (या भरोसा करने का दिखावा करते हैं)। हालाँकि, पूर्व CJI दीपक मिश्रा के मामले में उनका ये भरोसा भी टूट गया था। वर्तमान CJI रंजन गोगोई के रहते जब आलोक वर्मा को हटाया गया, तब उन्हें भी निशाना बनाया गया था। अगर लोकतंत्र पर भरोसा करने का दिखावा करना है, तो आपको अदालत की बात माननी पड़ेगी। अगर ऐसा है, तो फिर ममता बनर्जी किस से भय खा रही है?
दरअसल, इस भय की वज़ह है। प्रधानमंत्री के बंगाल में हुए ताज़ा रैलियों, रथयात्रा विवाद प्रकरण, अमित शाह का बंगाल में हुंकार भरना और फिर भाजपा द्वारा वहाँ स्मृति ईरानी को भेजना- इस सब ने ममता को असुरक्षित कर दिया है। बंगाल को अपना एकतरफा अधिकार क्षेत्र समझने वाली ममता बनर्जी को मृत वाम से वो चुनौती नहीं मिल पा रही थी, जो उन्हें उनके ही राज्य में भाजपा से मिल रही थी। वो मज़बूत विपक्षी की आदी नहीं है, इसी बौखलाहट में उन्होंने केंद्रीय संवैधानिक एजेंसियों को डराना-धमकाना शुरू कर दिया है।
West Bengal Chief Minister @MamataOfficial sat on a dharna to “save the constitution” after a huge showdown between the police and CBI officials.
— NDTV (@ndtv) February 3, 2019
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भाजपा को राज्य में मिल रहे जनसमर्थन ने ममता की नींद उड़ा दी है। उन्हें अपना सिंहासन डोलता नज़र आ रहा है। तभी वो CBI और ED के अधिकारियों के निवास-स्थान तक को अपने घेरे में लेने वाले बंगाल पुलिस की तरफदारी करते हुए खड़ी है। यह भी सोचने लायक है कि जिस तरह से अधिकारियों के घरों को पुलिस द्वारा घेरे के अंदर लिया गया, उस से उनके परिवारों पर क्या असर पड़ा होगा? सोचिए, उनके बीवी-बच्चों के दिलोंदिमाग पर पश्चिम बंगाल की सरकार की इस कार्रवाई का क्या असर पड़ा होगा?
पहले से ही लिखी जा रही थी पटकथा
जो पश्चिम बंगाल और वहाँ चल रहे राजनीतिक प्रकरण को गौर से देख रहे हैं, उन्हें पता है कि शनिवार को जो भी हुआ, उसकी पटकथा काफ़ी पहले से लिखी जाने लगी थी। इसे समझने के लिए हमें ज़्यादा नहीं, बस 10 दिन पीछे जाना होगा, जब बंगाली फ़िल्म प्रोड्यूसर श्रीकांत मोहता को सीबीआई ने कोलकाता से गिरफ़्तार किया था। ममता के उस क़रीबी को गिरफ़्तार करने में CBI को कितनी मशक्कत करनी पड़ी थी, इस पर ज़्यादा लोगों का ध्यान नहीं गया। लेकिन जिन्होंने उस प्रकरण को समझा, उन्हें अंदाज़ा लग गया था कि आगे क्या होने वाला है?
उस दिन जब CBI मोहता को गिरफ़्तार करने उसके दफ़्तर पहुँची, तब उसने पुलिस को फोन कर दिया। सबसे पहले तो उसके निजी सुरक्षाकर्मियों ने CBI को अंदर नहीं जाने दिया, उसके बाद क़स्बा थाना की पुलिस ने CBI की कार्यवाही में बाधा पहुँचाई। पुलिस ने उस दिन भी जाँच एजेंसी के अधिकारियों से तीखी बहस की थी। कुल मिला कर यह कि ममता राज में बंगाल सरकार की पूरी मशीनरी सिर्फ़ और सिर्फ़ मुख्यमंत्री और उनके राजनैतिक एजेंडे को साधने के कार्य में लगी हुई है।
अगर ममता बनर्जी सही हैं, तो उन्हें अदालत से डर कैसा? जब सुप्रीम कोर्ट भी राजीव कुमार को फ़टकार लगा कर ये हिदायत दे चुका है कि वो सुबूतों से छेड़छाड़ करने की कोशिश न करें, तब बंगाल सीएम सर्वोच्च न्यायलय के आदेश के पालन करने की बजाय अपने विपक्ष के साथियों की बैसाखी के सहारे क्यों आगे बढ़ रही है? क्या अब केंद्रीय एजेंसियाँ और अन्य संवैधानिक संस्थाएँ सत्ताधारी पार्टियों से जुड़े दोषियों पर कार्रवाई न करें, इसके लिए उन्हें इस स्तर पर डराया-धमकाया जाएगा? अगर यही तृणमूल कॉन्ग्रेस का लोकतंत्र है, तो उत्तर कोरिया की सरकार इस से बेहतर स्थिति में है।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने अपने राज्य में सीबीआई को न घुसने देने का निर्णय लिया था। ममता बनर्जी ने भी यही निर्णय लिया था। कहीं न कहीं ममता को इस बात का अंदाज़ा हो गया था कि जिस तरह से चिट फंड घोटालों में एक-एक कर तृणमूल नेताओं के नाम आ रहे हैं, उस से उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इसी क्रम में उन्होंने सीबीआई को राज्य में न घुसने देने की घोषणा कर ये दिखाया कि वो कितना लोकतंत्र के साथ है, लेकिन शायद ही किसी को पता हो कि ममता विपक्षी दलों के साथ में ही अपना भी भविष्य देख रही थी।