Sunday, December 22, 2024
Homeविचारमीडिया हलचलरामायण-महाभारत से चिढ़ते वो कुंठित हिन्दू-विरोधी पत्रकार, जो साध लेते हैं चुप्पी मस्जिदों व...

रामायण-महाभारत से चिढ़ते वो कुंठित हिन्दू-विरोधी पत्रकार, जो साध लेते हैं चुप्पी मस्जिदों व चर्चों के सवाल पर

मंदिरों और हिन्दुओं के प्रति घृणा से ग्रस्त बीबीसी जैसे मीडिया संस्थानों ने क्या कभी मस्जिदों और चर्चों से पूछा कि पूरी दुनिया में सैकड़ों इसाई और मुस्लिम मुल्कों से जुड़े मस्जिद और चर्च इस राष्ट्रीय आपदा में कितना सहयोग कर रहे हैं?

भारत में जब से चाइनीज कोरोना वायरस (वुहान-2019) का खतरा बढ़ा है, तब से लगातार कुंठित पत्रकार कथित जागरूकता फ़ैलाने के नाम पर मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से भाजपा शासित सरकारों और हिन्दू विरोध का घिनौना खेल खेल रहे हैं। चाइनीज वायरस के शुरुआती संक्रमण के दौरान ऐसे कुंठित लोगों ने कथित गो-मूत्र के नाम से हिन्दुओं का खूब मजाक भी उड़ाया। हिन्दुओं को अपमानित करने के उद्देश्य से मीम्स बनाए और स्टोरी प्लांट किया।

ऐसी ख़बरों के माध्यम से इन्होंने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि जैसे इस देश के गली-गली में गो मूत्र की दुकान हो और देश में गो मूत्र पीने के लिए हिन्दूवादी संगठन कोई फ़तवा जारी करते हों। इसलिए भारत में कोरोना का संक्रमण रोक पाना असंभव होगा। गोमूत्र से जुड़ी चक्रपाणि जैसे स्वयंभू ठीकेदारों की एक छोटी सी घटना को इन घटिया हिन्दुफोबिया से ग्रसित पत्रकारों ने इतना तूल दिया कि अतिश्योक्ति हो गया। जैसे चक्रपाणि हिन्दू धर्म का एक मात्र प्रतिनिधि हो जबकि ऐसे लोगों को सनातन में आस्था रखने वाले कोई भाव नहीं देते। यहाँ तक कि काशी विद्वत परिषद जैसे संस्थाओं ने उनकी इस हरकत पर लताड़ा भी।

बीबीसी का घोषित हिन्दूफोबिया?

इसी बीच देश चाइनीज वायरस (वुहान 2019) से जूझ रहा है। पूरा देश सामाजिक भेदभावों को भूला कर चाइनीज कोरोना वायरस के संक्रमण से लड़ रहा है। भारत के हजारों मंदिर और कई छोटे-बड़े हिन्दू और सिख स्वयंसेवी संस्थाओं ने इस चाइनीज संक्रमण से दुश्वारियाँ उठा रहे लोगों की मदद के लिए दिन रात तत्पर है। पटना के हनुमान मंदिर से लेकर तिरुपति बाला जी और शिरडी के साईं ट्रस्ट जैसे कई मंदिरों के ट्रस्ट ने अपने दान पात्र से सरकार को मदद दी है।

ऐसे दौर में भी बीबीसी जैसे एजेंडाधारी जिनका मकसद ही हिन्दू घृणा और भारत विरोध हो, कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते। इसी कड़ी में अगर बात करूँ तो बीबीसी हिंदी में राजेश प्रियदर्शी जो कि बीबीसी हिंदी के डिज़िटल एडिटर हैं। जो ‘कोरोना वायरस संक्रमण के आईने में दिखती वर्ण व्यवस्था की गहरी छाया’ ब्लॉग नामक एक लेख में बहुत ही हीन भावना से ग्रसित चाइनीज वायरस की आड़ में हिन्दुओं के बीच लगातार सामाजिक विभेद को हवा देकर एक काल्पनिक लेख लिख कर, अपने उसी एजेंडे को हवा देते हैं। बिना किसी सन्दर्भ के और वर्तमान में इस तरह के किसी विवाद के अस्तित्व की फर्जी बुनियाद पर ऐसे लोग हिन्दुओं को घेरने का काम कर रहे हैं।

बीबीसी का लेख

हिन्दूफोबिया से ग्रसित बीबीसी और इसका पत्रकार राजेश प्रियदर्शी लिखता है, (ऐसा इसलिए कि हिन्दू घृणा से सने ऐसे लोग सम्मान के काबिल नहीं हैं) कि “तिरुपति से लेकर वैष्णो देवी तक लोग मंदिरों में हज़ारों-लाखों रुपए दान करते हैं। विशाल मूर्तियाँ लगाने, भव्य मंदिर बनाने के नाम पर जितना भी चाहिए पैसा आ जाता है, मगर ग़रीबों के लिए हमारी मुट्ठी ज़रा कम ही खुलती है।”

मंदिरों और हिन्दुओं के प्रति घृणा से ग्रस्त बीबीसी जैसे मीडिया संस्थानों ने क्या कभी मस्जिदों और चर्चों से पूछा कि पूरी दुनिया में सैकड़ों इसाई और मुस्लिम मुल्कों से जुड़े मस्जिद और चर्च इस राष्ट्रीय आपदा में कितना सहयोग कर रहे हैं? या कितना दिया? क्या बीबीसी ने यह प्रश्न पूछा कि आत्मा की फसल काटने के लिए पूरी दुनिया से मिशनरी ताकत जब भारतीय हिन्दुओं के धर्म परिवर्तन पर करोड़ों रुपए खर्च करता है तो आज इस आपदा के समय वो क्या कर रहे हैं? 

जवाब बीबीसी जैसी संस्थाएँ नहीं देंगी, अगर नजर दौड़ाएँगे तो आपको हर तरफ दिखेगा कि एक तरफ जहाँ मंदिर बंद हैं और हिन्दुओं की संस्थाएँ कोरोना के समय में लॉकडाउन की वजह से प्रभावित लोगों की सेवा में लगी हुई हैं वही ऐसे कई मस्जिद और चर्च आज कोरोना फैलाने के केंद्र बने हुए हैं। तबलीगी जमात में निजामुद्दीन सहित देश के कई हिस्सों में जिस तरह से कोरोना के प्रसार में योगदान दिया है उस पर ये संस्थाएँ मौन हैं।

हिन्दू सॉफ्ट टारगेट है, इसलिए इनके खिलाफ जो मन होगा वो कोई भी हिन्दू घृणा से सना लिबरल वामपंथी से लेकर, इनके इकोसिस्टम का एक अदना सा बेवकूफ भी बोलने लगेगा। यहाँ तक कि, आपदा के समय को ये लोग हिन्दुओं के बीच विभेद को और गहराने के लिए एक मौके के रूप में देखते हैं?

बीबीसी के राजेश प्रियदर्शी जैसे लोगों को बताना चाहता हूँ क्योंकि इनकी ऑंखें हिन्दुओं में अच्छाई नहीं ढूँढ पाती हैं क्योंकि ये हिन्दू घृणा में अंधी हो चुकी हैं, ऊँचे-ऊँचे मंदिर बनवाते वक्त हिन्दुओं को हेल्थ सर्विस से लेकर कई मानवोपयोगी सेवाएँ याद रहती है। आज मंदिर और ऐसी हिन्दू संस्थाएँ करोड़ों लोगों के सेवा में तत्पर हैं। राजेश प्रियदर्शी एक उदाहरण आपके ही राज्य बिहार से देता हूँ। पटना का हनुमान मंदिर देखा है? ये मंदिर चढ़ावे के पैसे से एक सुन्दर कैंसर अस्पताल और एक दन्त चिकित्सालय बनवाया है।

देश में ऐसे हजारों उदाहरण हैं। हिन्दू इसाई मिशनरी की तरह नहीं कि आत्मा की फसल काटने के लिए ही अस्पताल बनवाएँ l शर्म करो और एक बात जायज समझो कि बेशक योगी जी कुम्भ में तीर्थ यात्रिओं के लिए पुष्प वर्षा करवाएँगे। काँवरियों के पाँव में कंकड़ ना चुभ जाए, इसके लिए सड़कों पर कालीन बिछाएँगे। अयोध्या में सैकड़ों लीटर तेल जला कर दीपोत्सव मनाएँगे। आखिर इन कामों से क्या समस्या है। कुछ भी हिन्दुओं के हित में हो यही नहीं देखा जाता न, यही सरकारें जब हज या मुस्लिम ईसाईयों को सुविधाएँ देती हैं, सैकड़ों योजनाएँ चल रही हैं। तब तो कोई विरोध करते हमने बीबीसी को आज तक नहीं देखा।

ऐसी सरकारें जिन वोटों से चुनकर आती हैं उनमें हिन्दू बहुतायत में हैं। और पैसा भी उन्हीं का है जो टैक्स के रूप में सरकारों को दिया जाता है। जिनके वोट से चुनकर आए हैं तो अगर उसी जनता को खुश करने के लिए सौ-पचास करोड़ खर्च कर ही दिए तो आपको जलन क्यूँ होती है? सिर्फ इसलिए कि ये पर्व और त्यौहार या उत्सव हिन्दुओं से जुड़े हैं।

देख नहीं रहे हैं कि आज योगी के नक़्शे-कदम पर पूरा देश चल रहा है। प्रदेश के लाखों दिहाड़ी मजदूरों के खाते में पैसा पहुँचा रहा हैं। केजरीवाल सरकार के द्वारा साजिशन दिल्ली की सीमा पर परित्यक्त मजदूरों को उन्होंने अपने सीने से लगाया। जलन तो इस काम से भी बीबीसी जैसों को होती होगी कि आखिर व्यवस्था बिगड़ी क्यों नहीं। केजरीवाल से सवाल तो करना नहीं है क्योंकि सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं।

पार्ट टाइम भोजपुरी पत्रकार और इसके जैसे लोग 

चाइनीज वायरस के इस आपदा काल में कुछ पार्ट टाइम भोजपुरी पत्रकार पत्रकारिता के नाम पर हिन्दू घृणा से डिस्टर्ब हो गए हैं। ऐसे डिस्टर्ब लोगों का लक्ष्य चाइनीज कोरोना वायरस (वुहान-2019) से लगातार सफलतापूर्वक लड़ रहे भारत की बड़ाई करना नहीं बल्कि हिन्दुओं और भाजपा सरकार को नीचा दिखाना है। ऐसे लोग आजकल इस बात से चिढ़े हुए हैं कि भारत सरकार ने दूरदर्शन पर रामायण और महाभारत का प्रसारण क्यूँ कर दिया।

अरे, ऐसे पार्ट टाइम भोजपुरी पत्रकार और हिन्दूफ़ोबिया से ग्रसित लिबरल वामपंथ के पुरोधाओं रामायण और महाभारत से भारत की पहचान है। इन दोनों कथाओं को सुन कर ये देश बड़ा हुआ है। भगवान श्री राम और भगवान श्री कृष्ण हमारे अराध्य हैं। अभी-अभी तो हिन्दुओं ने अयोध्या में भव्य श्री राम मंदिर को स्थापना को लेकर सैकड़ों वर्षों से चली आ रही लड़ाई जीता है। और इस लॉकडाउन में देश के करोड़ों हिन्दू तो घर पर हैं ना? वो बैठे-बैठे तुम जैसों का फेक न्यूज देखेंगे? तुम्हारी कुंठाओं को देखकर खुद कुंठित होंगे? सोचो खुद पार्टटाइम भोजपुरिया और फुल टाइम हिन्दूफ़ोबिया और हिन्दुओं से घृणा से सने पत्रकारों? 

तुम्हारा दर्द तो उसी समय स्वाभाविक हो गया था जब हाई टाउन से लेकर मेट्रो शहरो और देश के स्लम तक से थालियाँ पीटने की आवाजों ने तुम्हारे कलेजे का चीथड़ा उड़ा दिया था। और वो ताली और थाली ना सिर्फ एक सांकेतिक समर्थन था बल्कि कोरोना को हम हराएँगे, इसका आगाज था। चलते-चलते इतना बता दूँ कि इसी तरह के लोग देश में लाखों करोड़ों लोगों के मरने की झूठी खबर की भविष्यवाणियाँ कर रहे हैं। और ये वही लोग हैं जिन्हें चाइनीज कोरोना वायरस के खिलाफ भारत का सफल जंग देखा नहीं जा रहा है।

(नोट: यहाँ चाइनीज वायरस (वुहान 2019) शाब्द के इस्तेमाल का अर्थ किसी भी नृजातीय भावना से परे हैयहाँ चाइनीज (वुहान 2019) इसके भौगोलिकता की ओर इशारा कर रहा है।)

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

किसी का पूरा शरीर खाक, किसी की हड्डियों से हुई पहचान: जयपुर LPG टैंकर ब्लास्ट देख चश्मदीदों की रूह काँपी, जली चमड़ी के साथ...

संजेश यादव के अंतिम संस्कार के लिए उनके भाई को पोटली में बँधी कुछ हड्डियाँ मिल पाईं। उनके शरीर की चमड़ी पूरी तरह जलकर खाक हो गई थी।

PM मोदी को मिला कुवैत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर’ : जानें अब तक और कितने देश प्रधानमंत्री को...

'ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर' कुवैत का प्रतिष्ठित नाइटहुड पुरस्कार है, जो राष्ट्राध्यक्षों और विदेशी शाही परिवारों के सदस्यों को दिया जाता है।
- विज्ञापन -