Friday, November 22, 2024
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एकता का गला रेता, समोसे में बीफ, कंडोम, पत्थर और गुटखा डाल कर खिलाया, आरफा खानम शेरवानी को दिक्कत – हमारे कौम वालों का नाम क्यों छापा? खुद हिन्दुओं को बताती हैं गुंडा

आप देखिए, आरफा खानम शेरवानी को दिक्कत अपराध करने वाले से नहीं है, दिक्कत इससे है कि मीडिया उस अपराध को कवर क्यों नहीं कर रहा है।

मीडिया का एक बड़ा वर्ग चाहता है कि किसी भी अपराध में अगर अपराधी मुस्लिम है तो उसकी पहचान छिपा ली जाए, किसी को उसका नाम या उसके मजहब के बारे में पता न चलने पाए। तभी तो मुस्लिमों द्वारा की जाने वाली हर हिंसा के बाद अपराधियों को ‘बेचारा’ साबित करने की कोशिश की जाती है और बताया जाता है कि आखिर वो ये सब करने को क्यों ‘मजबूर’ हुआ। इसी गिरोह की एक सदस्य हैं आरफा खानम शेरवानी नाम की, जो सोमोसे में कंडोम परोसने और हत्या जैसे मुद्दे पर अपराधियों की पहचान छिपाना चाहती हैं।

आगे बढ़ने से पहले 2 घटनाओं का जिक्र करते हैं। पहली घटना है महाराष्ट्र के पुणे की जहाँ रहीम शेख, अजहर शेख, मजहर शेख, फिरोज शेख और विक्की शेख ने समोसे में गुटखा, पत्थर और कंडोम डाल कर लोगों को खिला दिया। असल में एक कंपनी में समोसे की सप्लाई का कॉन्ट्रेक्ट उनसे छीन कर किसी और को दे दिया गया था, इसीलिए बदला निकालने के लिए उन्होंने ऐसा किया। जिस नई कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट मिला था, उन्हें बदनाम करना उनकी मंशा थी। नई कंपनी में अपने कर्मचारियों को प्लांट कर के ये सब करवाया गया।

दूसरी घटना है पंजाब के मोहाली की, जहाँ मुरादाबाद निवासी अनस कुरैशी ने अपनी प्रेमिका एकता की गला दबा कर हत्या कर दी। दोनों 4 वर्षों से रिलेशनशिप में थे। पड़ोसियों ने घर में जाकर देखा तो एकता का शव बिस्तर के नीचे खून से लथपथ पड़ा हुआ था। CCTV में देखा जा सकता है कि अनस कुरैशी रात के ढाई बजे घर में घुसता है एकता के आने कुछ देर बाद, तड़के सुबह 5 बजे निकल लेता है। एकता का परिवार उस समय जागरण में गया हुआ था। धारदार हथियार से गर्दन की दाहिनी तरफ वार कर के हत्या की गई थी।

अब आप बताइए, पहली घटना में शेखों के नाम या दूसरी घटना में अनस कुरैशी का नाम अगर कोई मीडिया संस्थान अपनी खबर में लिखता है तो इसमें उसकी क्या गलती है? अगर अपराध अब्दुल ने किया है तो क्या उसका नाम बदल कर ‘रमेश’ कर दिया जाए? वैसे भी नाम बदल कर हिन्दू युवतियों को फँसाने और फिर उनकी हत्या करने वाले ‘लव जिहादियों’ की संख्या कम नहीं है। आखिर मुस्लिम अपराधियों के प्रति इतनी दया दिखाए जाने की अपेक्षा क्यों रखी जाती है?

अब यहाँ सीन में आती हैं आरफा खानम शेरवानी। सीनियर एडिटर हैं ‘The Wire’ में, इसी से अंदाज़ा लगा लीजिए कि कितनी विश्वसनीय हैं। उन्हें अक्सर अपनी फोटोशॉप्ड तस्वीरें पोस्ट करने के लिए भी जाना जाता है। खैर, आरफा खानम शेरवानी ने उपर्युक्त दोनों खबरों का स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए लिखा, “भारत के 2 मुख्य समाचारपत्र TOI (टाइम्स ऑफ इंडिया) और HT (हिंदुस्तान टाइम्स) ने कैसे 2 अलग-अलग अपराधों को बेशर्मी से मुस्लिमों को निशाना बनाते हुए कवर किया है।”

आरफा खानम शेरवानी ने आगे लिखा कि भारत के मुख्यधारा की मीडिया ही यहाँ की ‘रवांडा रेडियो’ है, दक्षिणपंथी कचरे नहीं। ‘रवांडा रेडियो’ वहाँ की सरकारी मीडिया एजेंसी है, जिस पर कई बार फर्जी खबरें फैलाने और घृणा का प्रसार करने के आरोप लगे हैं। ‘न्यूजलॉन्ड्री’ ने भी जून 2020 में एक लंबा-चौड़ा लेख लिख कर भारतीय मीडिया की तुलना ‘रवांडा रेडियो’ से की थी। यानी, भारत, जहाँ सैकड़ों मीडिया संस्थान हैं, वो इन चंद लोगों के हिसाब से खबरें चलाएँ – यही इनकी इच्छा है।

आप देखिए, आरफा खानम शेरवानी को दिक्कत अपराध करने वाले से नहीं है, दिक्कत इससे है कि मीडिया उस अपराध को कवर क्यों कर रहा है। आरफा खानम शेरवानी इस दौरान गुजरात के वड़ोदरा की एक खबर का जिक्र करना भूल गईं, जो इनसे मिलता-जुलता है। वहाँ युसूफ शेख समोसे में गोमांस भर कर बेचा करता था। इस मामले में 6 गिरफ्तार हुए हैं। अब इस मामले में भी आरफा खानम शेरवानी को लिख देना चाहिए कि युसूफ शेख का नाम मत लो, उसको ‘रामप्रसाद’ लिखो।

एकता नाम की जिस हिन्दू महिला का बेरहमी से कत्ल कर दिया गया, उसके लिए आरफा के मन में कोई सहानुभूति नहीं है। इस हत्याकांड से उन्हें कोई समस्या नहीं है। समस्या है इससे कि हत्यारे का नाम क्यों लिख दिया गया। लोगों को पता कैसे चल गया कि ये ‘लव जिहाद’ है और हत्यारा मुस्लिम है। इन्हीं लोगों का पहले मीडिया में वर्चस्व था, जब बड़े-बड़े अख़बार भी मुस्लिमों के अपराध को ‘समुदाय विशेष’ लिख-लिख कर ढँकते थे। हिन्दुओं के मामले में आज तक कभी ऐसा नहीं लिखा गया।

वैसे आरफा खानम शेरवानी का ‘द वायर’ पहली खबर को इस तरह कवर कर सकता है – “हिन्दुओं ने समोसे में कंडोम, पत्थर और गुटखा भर कर खाया, फिर भी तानाशाही भाजपा सरकार ने मुस्लिमों को गिरफ्तार किया।” दूसरी खबर की हेडलाइन कुछ ऐसी हो सकती है, “महिला की लाश मिली, उसके प्रेमी को गिरफ्तार कर लिया गया – मोदी के भारत में प्रेम का गला घोंटा जा रहा है।” और हाँ, ये वही आरफा खानम शेरवानी हैं जो जब तक रोज हिन्दुओं को 10 बार गाली नहीं देती हैं तब तक उनका भोजन नहीं पचता है।

सोचिए, आरफा खानम शेरवानी ने उस CAA को ‘हिंदुत्व नागरिकता’ बताए जाने का समर्थन किया, जिसके तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के पीड़ित अल्पसंख्यकों को भारत में शरण एवं नागरिकता मिल रही है। कोई उनसे पूछे कि इसमें हिंदुत्व कहाँ से आ गया? उन्होंने कहा था कि कंगना रनौत जैसी सेलेब्रिटीज को ‘हिंदुत्व हीरोज’ के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। वो PM नरेंद्र मोदी को ‘हिंदुत्व राजनीति’ से जोड़ चुकी हैं। अयोध्या में बाबरी विध्वंस करने वालों को वो ‘हिंदुत्व भीड़’ कह कर संबोधित कर चुकी हैं।

यहाँ कहाँ चला जाता है आरफा खानम शेरवानी का ज्ञान? वो किसी इफ्तार पार्टी में हिस्सा लेती हैं तब भी हिंदुत्व को गाली देती हैं। हिन्दू धर्म की तुलना तालिबान से कर चुकी हैं। गाय के हत्यारों पर NSA लगाए जाने पर भी हिंदुत्व को गाली देती हैं। वामपंथी इतिहासकारों की पोल खोलने वालों को वो ‘हिंदुत्व इतिहासकार’ बता चुकी हैं। आरफा खानम शेरवानी भले मुस्लिम हैं, लेकिन हिन्दुओं को ही हिंदुइज्म और हिंदुत्व का अंतर समझाती हैं। हिंदुत्व को फासीवादी भी बता चुकी हैं।

मतलब, आरफा खानम शेरवानी बिना किसी बात के 100 बार हिन्दू धर्म को गाली दे तो ठीक, लेकिन समोसे में कंडोल, पत्थर और गुटखा डाल कर खिलाने वालों या फिर एक हिन्दू महिला के बेरहमी से कत्ल कर देने वाले का नाम तक लिख दिया जाए न्यूज़ रिपोर्ट में तो उन्हें आपत्ति है कि किसी की इस्लामी पहचान क्यों उजागर की जा रही है। 110 करोड़ हिन्दुओं के देश में रोज हिन्दू धर्म को गाली देकर भी आरफा खानम शेरवानी सुरक्षित हैं, फिर भी वो हिन्दुओं को गुंडा बताती हैं।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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