अगर हिन्दू किसी की मदद करते हैं तो इसमें ‘The Wire’ को ‘ हिंदुत्व एजेंडा’ दिखता है और अगर कोई मुस्लिम संस्था भोजन के कुछ पैकेट्स बाँटती है तो ये ‘प्यार’ है। कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान आए दो लेखों में ‘The Wire’ ने अपने प्रोपेगंडा का इस्तेमाल करते हुए ये जताने की कोशिश की है कि देश भर में RSS और सेवा भारती से लेकर अन्य हिन्दू संगठन/मंदिर मदद को आगे आ रहे हैं तो इसके पीछे उनका ‘हिंदुत्व एजेंडा’ है।
आइए, देखते हैं इन दोनों लेखों में कितना बड़ा अंतर है। जो ताज़ा लेख है, उसे रविवार (मई 30, 2021) को प्रकाशित किया गया था। इस लेख में दावा किया गया है कि सत्ताधारी लोग और उनके समर्थक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को बचाने में लगे हुए हैं, बजाए इसके कि लोगों की मदद की जाए। साथ ही इसमें केंद्र सरकार द्वारा मौत के आँकड़ों में गड़बड़ी का आरोप भी लगाया गया है। वही आरोप, जिसे राहुल गाँधी ने NYT के सहारे दोहराया था।
राहुल गाँधी ने अपनी वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस में यही बात कही थी, लेकिन इस दौरान वो ये बात भूल गए थे कि संक्रमितों व मौतों के आँकड़े राज्य ही केंद्र को भेजते हैं, जिसके बाद उसे अपडेट किया जाता है। देश में कॉन्ग्रेस के शासन वाले राज्यों को वो ये नसीहत दें कि वो आँकड़े ठीक से भेजें और केंद्र को गुमराह न करें। लेकिन, ‘लाशों की राजनीति’ ये नहीं समझती है और वो जनता को बरगलाना जानती है।
आप अगर कॉन्ग्रेस का बताए जाने वाले टूलकिट को याद कीजिए तो इसमें भी इसका पूरा खाका था कि कैसे लाशों के सहारे मोदी सरकार को बदनाम करना है और विदेशी मीडिया में आ रही ऐसी ख़बरों को प्रमोट करना है, जलती चिताओं की तस्वीरें फैलानी हैं। केंद्र सरकार पर मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को बर्बाद कर देने का आरोप लगाया गया है, जबकि पीएम केयर्स से लेकर स्वास्थ्य बजट तक से अस्पतालों के लिए काफी कुछ किया गया।
Is this fair journalism? Go through both headlines. pic.twitter.com/uitnZzl0ld
— Harsh Sanghavi (@sanghaviharsh) June 1, 2021
जहाँ स्थिति बिगड़ी, वहाँ तुरंत कोविड केयर सेंटर्स बनाए गए। पीएम केयर्स से 50,000 नए वेंटिलेटर्स अस्पतालों को दिए गए। सोनू सूद और विराट कोहली की बड़ाई करते हुए इस लेख में केंद्र सरकार पर लोगों की मदद कर रहे विपक्षी नेताओं को धमकाने का आरोप भी लगाया गया है। इसके बाद ‘The Wire’ अपने सामान्य प्रोपेगंडा पर आ जाता है, जिसके तहत हिंदुत्व में ‘सेवा’ शब्द को ही बदनाम कर के रख दिया गया है।
‘The Wire’ के इस लेख में लिखा है कि प्रधानमंत्री केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राजनीतिक मुखौटे के रूप में काम कर रहे हैं ‘हिन्दू राष्ट्र’ के बड़े प्रोजेक्ट में वो एक बड़े खिलाड़ी हैं। फिर घटिया आरोप लगाया गया है कि RSS अपने बड़े उद्देश्य के लिए समाज में अपना प्रभाव बना कर रखना चाहता है और समाज में स्वीकार्यता के लिए ‘सेवा’ या समाजसेवा का इस्तेमाल कर रहा है। साथ ही लिखा है कि गाँधी जी ने भी ऐसा ही किया था (राजनीतिक मोबिलाइजेशन के लिए सेवा)।
अगर ‘द वायर’ मानता है कि RSS महात्मा गाँधी के रास्ते पर चल रहा है तब तो समस्या ही ख़त्म हो गई क्योंकि फिर तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूरी भाजपा गाँधीवादी है। अगर राजनीतिक जुटान के लिए गाँधी जी ने ‘सेवा’ का इस्तेमाल किया था, जैसा कि ‘The Wire’ का मानना है, तो फिर RSS ऐसा करे तो उसे दिक्कत क्यों? देश भर में लगातार सुदूर इलाकों तक जनसेवा कर रहे संगठन को बदनाम करने के लिए ये लेख लिखा गया है।
RSS स्वयंसेवकों ने अपनी जान दाँव पर लगा कर सेवा का जिम्मा संभाला हुआ है और कई जगह कोविड केयर सेंटर्स भी बनाए। देश भर के कई जिलों में RSS ने श्मशान से लेकर अस्पताल तक अपने लोगों को तैनात कर रखा है और वो लोगों की मदद कर रहे हैं। दूध, काढ़ा और हल्दी जैसी इम्युनिटी बढ़ाने वाली चीजों का वितरण हो रहा है। गरीबों को भोजन दिए जा रहे हैं। मरीजों को अस्पताल पहुँचाया जा रहा है।
इसी तरह ‘सेवा भारती’ ने कई आइसोलेशन सेंटर बनाए। जब पूरी दिल्ली अस्पताल बेड्स की कमी से जूझ रही थी, तब ‘सेवा भारती’ ने अशोक विहार, उदासीन आश्रम, नरेला, द्वारका, हरिनगर एवं लाजपत जिले की अमर कॉलोनी के अलावा 9 अन्य आइसोलेशन सेंटर बनाए और 500 से भी अधिक बेड्स की व्यवस्था खड़ी कर ली। सारी सेवाएँ निःशुल्क दी जाती हैं। ऑक्सीजन सिलिंडर्स तक की व्यवस्था की जा रही है।
देश के हर जिले में RSS और इसकी शाखा संगठन ‘सेवा भारती’ द्वारा किए जा रहे राहत-कार्यों के सैकड़ों उदाहरण मिल जाएँगे। क्या संगठन के हजारों लोग सिर्फ और सिर्फ ‘हिन्दू राष्ट्र’ के लिए ही काम कर रहे हैं? अगर पूरा देश ही हिन्दू राष्ट्र चाहता है, फिर तो ‘द वायर’ को इसे कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। भारत विभाजन के दौरान पीड़ित हिंदुओं की सेवा को भी सांप्रदायिक बता दिया गया है। लिखा है कि ‘सेवा’ कर के RSS लोगों की नजरों में अच्छा बनना चाहती है।
अब आइए, देखते हैं कि देश भर में लोगों की सेवा करना जिस मीडिया संस्थान के लिए सांप्रदायिक है, मजहब बदल जाने के बाद किस तरह चींटी को चीनी खिलाना भी ‘प्यार’ हो जाता है। अगस्त 2020 में कोरोना की पहली लहर के वक़्त आए एक लेख में इसी ‘द वायर’ ने एक ‘मुस्लिम मददगार’ के हवाले से लिखा था कि वो ‘सेवा’ कर के अपनी मुस्लिम पहचान को प्रदर्शित कर रहा है, क्योंकि सब ‘एडम और ईव’ की संतान हैं।
उस लेख में कहीं भी RSS या ‘सेवा भारती‘ द्वारा किए जा रहे राहत-कार्यों का जिक्र नहीं था, लेकिन देश के कुछ इलाकों से छिटपुट खबरें उठाई गई थीं, जहाँ मदद करने वाले मुस्लिम हों। और हाँ, यहाँ ‘द वायर’ ने ऐसा नहीं कहा कि अगर मुस्लिम मदद करते हैं तो इसके पीछे कोई एजेंडा होता है। यहाँ केवल प्यार, सहिष्णुता और सांप्रदायिक एकता की बातें की गईं। लेकिन, हिंदू संगठन जब देश भर में समाजसेवा करते हैं, तब ये चीजें कैसे याद या जाती हैं?
अगर कोई संगठन हिंदू धर्म से जुड़ा है तो उसे तत्काल ‘सिविल सोसाइटी’ की श्रेणी से बाहर कर दिया जाता है। 2020 वाले लेख में ‘जमात ए इस्लामी हिन्द’ का उदाहरण देते हुए बताया गया है कि ये संगठन देश भर में अपने जमीनी कार्यकर्ताओं के जरिए समाजसेवा कर रहा है। क्या आपको पता है कि इसी संगठन ने 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के मुस्लिमों को सपा-बसपा-रालोद गठबंधन को वोट करने को कहा था।
फिर इसे भाजपा विरोधी संगठन क्यों नहीं लिखा जाता या इसके राजनीतिक रुख की चर्चा न कर के इसे सामाजिक संगठन क्यों बताया जाता है? RSS ने तो कभी ऐसा कोई ‘फतवा’ नहीं जारी किया, लेकिन फिर भी उसे बदनाम किया जाता है। असल ‘में द वायर’ को दिक्कत इससे है कि केंद्र ने FCRA (विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम) में संशोधन किया, जिससे सैकड़ों NGO का बोरिया-बिस्तर बँध गया और मिशनरी व मजहबी गतिविधियों के लिए आने वाली विदेशी फंडिंग पर रोक लगी।
‘The Wire’ को असली खुजली इस बात की काट रही है कि जहाँ देश भर के मंदिरों ने पीएम केयर्स व राज्यों के राहत-कोष में दान के अलावा जिस तरह गरीबों के लिए काम किया है, इसके उलट जहाँ तबलीगी जमात वाले कोरोना के सुपर स्प्रेडर बने और कुछ मौलवियों ने तो मस्जिद द्वारा लॉकडाउन के पालन से ही इनकार कर दिया। अब हिन्दुओं की सेवा को बदनाम करना और मुस्लिम संगठनों की तरफदारी कर उनका महिमामंडन उसकी मजबूरी है।