‘मशहूर पत्रकार’ सागारिका घोष ने ग्रूमिंग जिहाद (लव जिहाद) के ख़तरे से निपटने के लिए नया तरीका इजाद किया है। उनके मुताबिक़ मुस्लिम पुरुषों के खुद को हिन्दू बताकर हिन्दू महिलाओं को शादी का झाँसा देना, या मुस्लिम पुरुषों द्वारा अलग-अलग धर्म की महिलाओं के साथ अंजाम दिए जाने वाले यौन अपराधों को, तुर्की के टेलीविजन धारावाहिक एर्टुग्रुल (Ertugrul) देखकर हल किया जा सकता है।
सागारिका घोष ने बेहद सुविधाजनक तरीके से ग्रूमिंग जिहाद के ज़रिए होने वाले जबरन धर्मांतरण के ख़तरे को, हिन्दू परिवारों और मुस्लिम दामादों के बीच बतौर ‘मानसिक उन्माद’ तोड़-मरोड़ कर रख दिया। इसके बाद सागारिका घोष जघन्य अपराध के पीड़ितों को चुप कराते हुए पीड़ित को ही दोष देने लगती हैं। उनका मानना है कि उन महिलाओं की आपबीती जिन्हें इस तरह के भयावह हालातों का सामना करना पड़ता है, यह “मुस्लिम दामादों” के प्रति मानसिक उन्माद का नतीजा है।
इस तरह के कुतर्क हमें उल्लेखनीय तथ्यों की ओर ले जाते हैं। कानपुर की पीड़िता का उदाहरण ले लीजिए। एक मुस्लिम युवक ने खुद की पहचान सचिन शर्मा बता कर युवती को बहलाया-फुसलाया। उसका नाम बदल कर ज़ोया रखा गया, उस पर बीफ़ खाने का दबाव बनाया गया, इतना ही नहीं उस पर मौलवी के साथ सेक्स करने का दबाव भी बनाया गया। जब वह गर्भवती हुई तब उसका गैर क़ानूनी लिंग परीक्षण कराया गया, परीक्षण में पता चला कि लड़की है तब उन्होंने बच्चे को सुरक्षित रख लिया जिससे आने वाले समय में उसका ‘इस्तेमाल’ किया जा सके।
सागारिका घोष यह चाहती हैं कि हम भी यह मान लें सब कुछ सिर्फ ‘मानसिक उन्माद’ है, क्योंकि उन्हें तुर्की टीवी श्रृंखला में एक अच्छे नज़र आने वाले इंसान को देखने में मज़ा आई। इसी तरह के एक और मामले में गोलू खान नाम के आरोपित ने हिन्दू बन कर एक नाबालिग को बहलाया-फुसलाया और उस पर इस्लाम स्वीकार करने का दबाव बनाया और अंत में उससे निकाह किया। इस घटना को अंजाम देने के दौरान लोगों के सामने हिन्दू नज़र आने के लिए उसने तिलक लगाया और कलेवा भी पहना।
एक और मामले में बलिया के इमरान खान ने अपना मज़हब छुपा कर नाबालिग लड़की को झाँसे में लिया। इसके बाद वह नाबालिग के साथ भागने में कामयाब भी रहा, लेकिन नाबालिग के रिश्तेदारों ने उसे धर दबोचा। अंत में उसकी गिरफ्तारी हुई थी और उस पर संबंधित धाराओं में मामला दर्ज किया गया था। ऐसे ही एक और मामले में मुस्लिम युवक ने अपनी पहचान हिन्दू बता कर एक दलित युवती से संबंध बनाए और शादी करने की बात पर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाने लगा।
इस तरह के मामलों की सूची अनंत है। अब राजनीतिक दलों पर ऐसे मामलों का संज्ञान लेने का दबाव है, देश के भाजपा शासित राज्यों की सरकारें इस तरह के मामलों का सामना करने के लिए क़ानून लेकर भी आ रही हैं। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार इस मुद्दे पर अध्यादेश लागू कर चुकी है। वहीं मध्य प्रदेश में इस क़ानून को अंतिम सूरत देने की तैयारियाँ अंतिम चरण में हैं।
सागारिका घोष जैसे लोगों की इस मुद्दे को लेकर अस्वीकार्यता लगातार जारी है। एक क्षण के लिए इसके भीषण पहलू पर गौर करिए। सबसे पहले तो ये लोग इस तरह की आपराधिक घटनाओं के होने की बात को नकारते हैं, जबकि पिछले कुछ समय में इस तरह के न जाने कितने मामले सामने आए हैं। फिर इन लोगों की ऐसे मुद्दों पर परेड चालू हो जाती है और ऐसे मामलों पर होने वाले विरोध को हिन्दुओं की कथित कट्टरता के सबूत के रूप में पेश करते हैं।
ऐसा लगता है जैसे सागारिका घोष चाहती ही यही हैं कि हिन्दू समुदाय अपनी महिलाओं को ऐसे अपराधों की भट्टी में झोंक दे। इसके लिए उन्होंने एक टीवी श्रृंखला का हवाला दिया जो इस्लामी इतिहास के किरदार का महिमामंडन करता है। सागारिका हिन्दुओं को नीचा दिखाने के लिए इतना तत्पर रहती हैं कि एक तरह से यह चाहती हैं कि हिन्दू महिलाओं को जिहाद के हवाले कर दिया जाए। सागारिका घोष जिस पाप को जन्म दे रही हैं वह उन लोगों से कम नहीं है जो महिलाओं का धर्म परिवर्तन कराने के लिए उनका ब्रेनवाश करते हैं। वह इतिहास के काल्पनिक चित्रण के ज़रिए हिन्दू महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों की सफ़ेदपोशी करती हैं। यह ग्रूमिंग जिहाद के पीड़ितों पर अत्याचार जारी रखने का सबसे निंदनीय तरीका है।
फेमिनिस्ट अक्सर यह कहते हैं कि ‘बिलीव ऑल वुमेन’ लेकिन ऐसा लगता है जैसे ग्रूमिंग जिहाद की पीड़ित हिन्दू महिलाएँ इस पैमाने पर खरी नहीं उतरती हैं। इन पर विश्वास तो बहुत कम है, ये लोग उन महिलाओं की दिल दहला देने वाली कहानियाँ भी नहीं सुन सकते हैं जिसमें उनके साथ न जाने कितना अत्याचार हुआ। अपनी बात साबित करने के लिए ये लोग हैरान करने वाली दलीलें देते हैं (जैसे टीवी सीरीज़), पीड़ितों ने जिन दिक्कतों का सामना किया है उसका ही मज़ाक बनाएँगे। यह केवल नैतिक नियति की कमी और दुराचार दर्शाता है जो पूरे लिबरल विमर्श को ढकने के लिए आया है।