Thursday, November 14, 2024
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UAE में खुले में नमाज पर ₹20000 जुर्माना: ‘द गार्डियन’ के लिए मुस्लिम पीड़ित और हिन्दू गुंडे, सड़कों को बता रहा ‘नमाज साइट्स’

'द गार्डियन' ने घोषणा कर दी है कि खुले में नमाज पढ़ना मुस्लिमों का 'सामाजिक अधिकार' है। फिर लिबरल गिरोह की तरह पूरे भारत में हिन्दू-मुस्लिम विभाजन के लिए 2014 में भाजपा के केंद्र में सत्ता में आने और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से जोड़ दिया गया है, भले 800 वर्षों तक इस्लामी आक्रांताओं ने हिन्दुओं पर अत्याचार किए हों।

हरियाणा के गुरुग्राम में पिछले कई दिनों से सार्वजनिक स्थलों पर नमाज पढ़े जाने का विरोध हो रहा है। सड़क जाम कर के सैकड़ों की संख्या में नमाज पढ़ने वाले मुस्लिम मीडिया की नजर में पीड़ित हैं, वहीं परेशानी होने के कारण विरोध करने वाले स्थानीय लोग ‘हिन्दू कट्टरवादी’। ‘द गार्डियन’ ने तो सरकारी स्थलों को ‘नमाज साइट्स’ घोषित कर दिया है और हिन्दुओं पर ‘फूट डालने’ का आरोप लगा दिया है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थान कह रहा है कि गुरुग्राम अब ‘धार्मिक युद्धक्षेत्र’ बन गया है।

इस लेख में स्थानीय लोगों को ‘हिन्दू राष्ट्रवादी भीड़’ घोषित करते हुए बताया गया है कि वो सामान्यतः भगवा वस्त्रों में रहते हैं। साथ ही ‘जय श्री राम’ और देशभक्ति के नारों को भी कट्टरवादी बता कर पेश किया गया है। इस लेख में ‘द गार्डियन’ ये मान रहा है कि ये कार पार्किंग की जगह है, लेकिन उसे एक दशक से भी अधिक समय से यहाँ जुमे की नमाज पढ़े जाने से कोई दिक्कत नहीं। लेकिन, स्थानीय लोग विरोध करें तो दिक्कत है। इस पर भी अफ़सोस जाहिर किया गया है कि 15 लाख की जनसंख्या वाले इस शहर में ‘सिर्फ 13’ मस्जिद हैं।

साथ ही बिना किसी सबूत के ये भी दावा कर दिया गया है कि मुस्लिम अगर अपनी जमीन पर भी नई मस्जिद बनाते हैं तो इसमें बाधा पैदा की जाती है। गर्व से बताया गया है कि ‘मुस्लिम मजदूर’ कई किलोमीटर की दूरी पर जाने की बजाए ‘खाली जगहों’ पर नमाज पढ़ने का विकल्प अपनाते हैं। बताया गया है कि 108 जगहों पर नमाज के लिए प्रशासन ने उन्हें अनुमति दी। मुस्लिमों के हवाले से बताया गया है कि जगह की कमी के कारण वो ‘खुले में’ नमाज पढ़ने को विवश हैं।

सबसे पहले तो ‘द गार्डियन’ को ये जवाब देना चाहिए कि सरकारी जमीन ‘नमाज साइट्स’ कब से बन गई? क्या अगर किसी खाली जमीन पर कोई नमाज पढ़ दे तो वो ‘नमाज साइट’ बन जाएगा? सड़क, पार्किंग, स्कूल के मैदान, सोसाइटी के प्लेग्राउंड्स और सरकारी जमीनें – ये सब ‘नमाज साइट्स’ कब और कैसे बन गए? नमाज क्या घर में नहीं पढ़ी जा सकती, जो ‘खुले में नमाज पढ़ने की विवशता’ की बात की जा रही है? ऐसा तो नहीं है कि सारे मुस्लिम बेघर हैं।

अब हम आपको UAE के बारे में बताते हैं, जहाँ का आधिकारिक मजहब ही इस्लाम है और वहाँ की 90% जनसंख्या सुन्नी मुस्लिम है। यहाँ पर सड़क किनारे नमाज पढ़ने और जुर्माने का भी प्रावधान है। इसके लिए Dh 1000 (20,484 रुपए) का जुर्माना देना पड़ सकता है। अबुधाबी पुलिस ने इसके लिए जागरूकता अभियान भी चलाया। क्योंकि इससे ट्रैफिक की समस्या बढ़ जाती है। जब इस्लामी मुल्कों में इस पर प्रतिबंध है, फिर लगभग 80% जनसंख्या वाले ‘धर्मनिरपेक्ष’ भारत में इसकी उम्मीद कैसे की जा सकती है कि सरकारी जमीनें नमाज के हवाले कर दी जाएँ?

लेकिन नहीं, ‘द गार्डियन’ का तथ्यों से कोई लेनादेना नहीं है। आरोप लगाया जा रहा है कि कुल्हाड़ी और लकड़ी के डंडे लेकर ‘हिन्दू भीड़’ जमा हो रही है, जबकि अब तक गुरुग्राम में इसे लेकर हिन्दुओं ने हिंसा नहीं की है, उलटा वो ही गिरफ्तार हुए हैं और उन पर ही अत्याचार किए गए। ‘अल्लाहु अकबर’ बोल कर सैकड़ों का गला काट देना ऐसे मीडिया संस्थाओं के लिए ठीक है, विरोध प्रदर्शन हिन्दुओं का हो तो गलत। बताया गया है कि किस तरह मुस्लिम भीड़ ‘सिर झुका कर शांतिपूर्ण तरीके से’ नमाज पढ़ती है।

अगर इसी लेख में हिन्दुओं के बयान देखें तो कारण साफ़ हो जाता है। क्षेत्र में अचानक अनजान लोगों की भीड़ आने से अपने परिवार और लड़कियों को लेकर वो दहशत में हैं। वो बताते हैं कि कैसे कुछ मुस्लिमों के पास से पुलिस ने हाल ही में एके-47 राइफल बरामद की। यही नहीं, ‘द गार्डियन’ ने घोषणा कर दी है कि खुले में नमाज पढ़ना मुस्लिमों का ‘सामाजिक अधिकार’ है। फिर लिबरल गिरोह की तरह पूरे भारत में हिन्दू-मुस्लिम विभाजन के लिए 2014 में भाजपा के केंद्र में सत्ता में आने और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से जोड़ दिया गया है, भले 800 वर्षों तक इस्लामी आक्रांताओं ने हिन्दुओं पर अत्याचार किए हों।

आज भी भारत इस्लामी आतंक से पीड़ित है और कश्मीर में आतंकी अक्सर नागरिकों को निशाना बनाते रहते हैं। मुंबई से लेकर दिल्ली तक बम ब्लास्ट इस्लामी आतंकियों ने ही किए। गुरुद्वारे में सिखों ने मुस्लिमों को नमाज पढ़ने की अनुमति दी, इसका भी जिक्र है। जबकि ‘प्रकाश परब’ के कारण ऐसा संभव ही नहीं हो पाया था। लिखा है कि ये सिर्फ नमाज को लेकर नहीं है, बल्कि मुस्लिमों को समाज से अलग-थलग करने के लिए ऐसा किया जा रहा है।

कुछ दिनों पहले ‘द प्रिंट’ ने भी इसी तरह की हरकत की थी। इसमें प्रोफेसर हिलाल अहमद ने ‘सर्वधर्म समभाव’ पर विश्वास करने की बड़ी-बड़ी बातें करते तो की थीं, लेकिन साथ ही अल्लाह को सर्वशक्तिमान बताते हुए इस बात का जवाब नहीं दिया था कि हिन्दू हनुमान चालीसा पढ़ दे तो ये ‘बाधा’ और मुस्लिम भीड़ सड़क पर नमाज पढ़े तो ये ‘प्रार्थना’ कैसे हुई? उनका कहना था कि वो चलती हुई ट्रेन में, व्यस्त गलियों में, अस्पतालों में और यहाँ तक कि कई सक्रिय हिन्दू मंदिरों में भी नमाज पढ़ चुके हैं। उन्हें इस पर गर्व है। वो इसे अपनी उपलब्धि बताते हैं।

अंत में उन लोगों का जिक्र भी आवश्यक है, जो कहते हैं कि उनका घर मुस्लिमों के नमाज पढ़ने के लिए हाजिर है, क्योंकि बाहर हिन्दू उन्हें ‘परेशान कर रहे’। उनसे बस एक सवाल है कि अगर नमाज घर में ही पढ़ना होता तो क्या ये लोग सड़क पर उतरते? वो अपने घरों में नहीं पढ़ लेते? असली उद्देश्य तो सरकारी और सार्वजनिक संपत्ति पर कब्ज़ा कर अपना दबदबा दिखाने का है, प्रशासन को झुकाने का है और हिन्दुओं को नीचा दिखाने का है। ये लोग अपने घरों को मस्जिद क्यों नहीं बना देते? बेशक घर में नमाज पढ़ने बुलाइए मुस्लिमों को, लेकिन घर को ही मस्जिद बना देना बेहतर विकल्प नहीं होगा?

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अनुपम कुमार सिंह
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भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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