भारतीय राज्यों में कई ऐसे मुख्यमंत्री हुए हैं, जो अपनी प्रशासनिक क्षमता और जनता से सीधा संवाद के लिए जाने जाते हैं। आज के समय में जब कई मुख्यमंत्रियों और पूर्व मुख्यमंत्रियों पर भ्रष्टाचार सहित कई मामले चल रहे हैं, ऐसे में एक ऐसे सीएम भी हैं जो चुप-चाप, बिना पब्लिसिटी के अपना कार्य कर रहे हैं। यूँ तो राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जनता पार्टी में कई बड़े नेता हैं, लेकिन एक चेहरा ऐसा भी है जो देश के सबसे अमीर राज्य (सर्वाधिक GDP) के शासन को संभाल कर अपनी कुशल प्रशासनिक क्षमता का परिचय दे रहा है।
ये हैं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस। जब महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हो रहे थे, तब भाजपा ने अपने मुख्यमंत्री उम्मीदवार का नाम घोषित नहीं किया था। लेकिन एक नारा ख़ूब चल रहा था जिसने महाराष्ट्र का मूड पहले ही बता दिया था। वो नारा था- ‘दिल्ली में नरेंद्र, मुंबई में देवेंद्र’। मृदुभाषी देवेंद्र फडणवीस अपने सहज व्यवहार से किसी का भी दिल जीत लेते हैं। राहुल गाँधी से एक महीने छोटे फडणवीस ने राजनीति की सीढ़ियाँ एक-एक कर चढ़ी है, अपने बलबूते।
कभी नागपुर के मेयर रहे फडणवीस भारतीय इतिहास में दूसरे सबसे युवा मेयर थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने जिस तरह से अपनी क्षमता का परिचय दिया है, उस से सभी नेताओं को सीखना चाहिए। महाराष्ट्र एक ऐसा राज्य रहा है जहाँ ‘बाहरी बनाम स्थानीय’ के नाम पर तरह-तरह के बवाल फैलाए जाते रहे हैं। मुंबई आतंकवाद का निशाना रहा है। ऐसे में, फडणवीस ने बिना कोई सख्त कार्रवाई किए राज्य में हुए सभी बवालों, आन्दोलनों, विरोध प्रदर्शनों और हिंसा की अन्य वारदातों को चुटकी में काबू किया है।
फडणवीस के व्यवहार के आगे हारे अन्ना
अन्ना हजारे 2015 से लेकर अब तक महाराष्ट्र में कई बार अनशन का ऐलान कर चुके हैं। कभी भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर तो कभी ‘वन रैंक वन पेंशन (OROP)’ को लेकर लेकिन जब-जब उनके अनशन की ख़बर आई, मुख्यमंत्री फडणवीस ने व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप कर उनका अनशन पर पानी फेर दिया। अन्ना को हमेशा झुकना पड़ा और अपने अनशन की योजना को त्यागना पड़ा। हाल ही में अन्ना लोकपाल की माँग लेकर फिर से अनशन पर बैठे। शिवसेना ने मुख्यमंत्री फडणवीस से अनुरोध किया कि वह अन्ना की स्वास्थ्य की चिंता करें।
दिन-रात अपने एसी दफ़्तर में बैठ कर फाइलों पर हस्ताक्षर करने वाले और वाले मुख्यमंत्रियों की लिस्ट में फडणवीस का नाम नहीं आता है। न ही वे अपने राज्य को छोड़ कर दूसरे-तीसरे राज्यों में घूमते रहते हैं। उन्हें उनके राज्य में हो रही हलचल की ख़बर रहती है, तभी स्थिति की गंभीरता को भाँपते हुए वे पहुँच गए रालेगण सिद्धि। उनके साथ कुछ केंद्रीय एवं राज्यमंत्री भी थे। न सिर्फ उनके आश्वासन के बाद अन्ना ने सात दिनों का अपना अनशन तोड़ा, बल्कि यह भी कहा कि वो सरकार से पूरी तरह संतुष्ट हैं।
अन्ना ने सीएम फडणवीस के साथ 6 घंटे तक गहन बैठक की। उनकी हर एक बात को ध्यान से सुना, उन्हें स्थितियों से अवगत कराया और उनकी माँगों पर विचार भी किया। मृदुभाषी फडणवीस ने अनशन स्थल पर पहुँच अपने हाथों से जूस पिला कर अन्ना का अनशन तुड़वाया।
इसकी तुलना अगर हम यूपीए काल से करें तो बाबा रामदेव के साथ हुआ वाक़या याद आ जाता है। जिस तरह से कॉन्ग्रेस सरकार ने आधी रात को बाबा और उनके अनुयायियों को प्रताड़ित किया, उन्हें गिरफ़्तार किया, मारा-पीटा। इसी तरह अन्ना के अनशन को भी 2011 में कुचलने की कोशिश की। अन्ना को जेल में डाल दिया गया। लेकिन फडणवीस यूपीए काल के बड़े-बड़े मंत्रियों से कहीं ज़्यादा क़ाबिल हैं। उन्हें अन्ना को वश में करने का तरीका पता है। इसके लिए बल और छल नहीं, अच्छे व्यवहार और कुशल क्षमता की ज़रूरत होती है।
मराठा आंदोलन को सरलता से नियंत्रित किया
जुलाई 2018 में जब मराठा आंदोलन ने ज़ोर पकड़ा तब महाराष्ट्र के कई इलाक़ों में जबरदस्त हिंसा भड़क गई। ये आंदोलन हाथ से बहार जा सकता था, जैसा पहले भी कई बार हो चुका है। लेकिन, समय रहते फडणवीस ने महारष्ट्र स्टेट बैकवर्ड क्लास आयोग की बैठक बुलाई और आरक्षण संबंधी माँगों पर विचार-विमर्श किया। एक स्पेशल पैनल की रिपोर्ट के बाद सीएम ने कुछ शर्तों के साथ शिक्षा एवं नौकरियों में मराठों के लिए आरक्षण की घोषणा कर पूरे राज्य का दिल जीत लिया।
इसके बाद एससी, एसटी कोटे के मुद्दे को उठा कर उन्हें घेरने की कोशिश की गई लेकिन अपने आरक्षण वाले निर्णय में वर्तमान कोटा सिस्टम से छेड़छाड़ न करने की बात कह उन्होंने अपने विरोधियों को चारों खाने चित कर दिया। मुख्यमंत्री ने अहमदनगर की एक रैली में जैसे ही कहा– ‘आप 1 दिसंबर की तैयारी कीजिए’, जनता ख़ुशी से झूम उठी। फडणवीस का आरक्षण अलग था, क्योंकि 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने भी आरक्षण की घोषणा की थी, लेकिन फिर भी स्थिति जस की तस रही।
भले ही फडणवीस बाल ठाकरे, राज ठाकरे, शरद पवार, विलासराव देशमुख, प्रमोद महाजन या गोपीनाथ मुंडे जैसे दिग्गज महाराष्ट्रीय नेताओं के बराबर प्रसिद्धि नहीं रखते हों, लेकिन उनके हर एक महत्वपूर्ण निर्णय के बाद उनकी लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ता ही चला जा रहा है।
हंगामेबाज़ गठबंधन साथी के साथ एक स्थिर सरकार
शिवसेना और उसके नेताओं का व्यवहार किसी से छुपा नहीं है। पार्टी कहने को तो महाराष्ट्र में सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा है, लेकिन कोई भी ऐसा दिन नहीं जाता है, जब उसके नेता भाजपा के ख़िलाफ़ बयानबाज़ी न करते हों। एक भी ऐसा सप्ताह नहीं जाता, जब सामना में मोदी और भाजपा के विरोध में लेख नहीं छापते हों। लेकिन फडणवीस के पास शिवसेना को भी क़ाबू में करने का मंत्र है, एक कुशल प्रशासक होने के साथ ही वह एक कुशल राजनीतिज्ञ भी हैं।
शिवसेना भी उनकी बढ़ती लोकप्रियता को समझती है। इसीलिए शिवसेना राष्ट्रीय स्तर पर तो मोदी के ख़िलाफ़ ख़ूब बोलती है, लेकिन महाराष्ट्र में फडणवीस पर सीधे हमले नहीं करती। मुख्यमंत्री देवेंद्र ने शिवसेना का ऐसा तोड़ ढूंढा, जिस से हर कोई उनकी बुद्धि का कायल हो जाए। जनवरी 2019 में हुई एक कैबिनेट बैठक में शिवसेना के संस्थापक स्वर्गीय बाल ठाकरे की याद में एक मेमोरियल बनाने का निर्णय लिया गया। इतना ही नहीं, उसके लिए तुरंत ₹100 करोड़ का बजट भी ज़ारी कर दिया गया।
मुंबई के दादर स्थित शिवजी पार्क में जब मेमोरियल के लिए ‘गणेश पूजन’ और ‘भूमि पूजन’ हुआ, तब शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और मुख्यमंत्री फडणवीस ने एक मंच से जनता का अभिवादन किया। फडणवीस के इस दाँव से चित शिवसेना के पास उनका समर्थन करने के अलावा और कोई चारा न बचा।
किसान आंदोलन को एक झटके में किया क़ाबू
महाराष्ट्र के किसान आंदोलन ने इतना बड़ा रूप ले लिया था कि राष्ट्रीय मीडिया ने भी उसे ख़ूब कवर किया। जब 35,000 गुस्साए किसान 200 किलोमीटर की पदयात्रा के बाद झंडा लेकर प्रदर्शन करते हुए मुंबई के आज़ाद मैदान पहुँचे, तब बड़े-बड़े पंडितों को भी लगा था कि हालात अब बेक़ाबू हो चुके हैं। लेकिन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बिना बल प्रयोग के इस आंदोलन को ऐसे क़ाबू में किया, जिस ने बड़े-बड़ों को अचंभित कर दिया।
सीएम ने बस भेज कर किसानों को चढ़ने का अनुरोध किया लेकिन वे नहीं माने। उसके बाद मुख्यमंत्री स्वयं किसानों के बीच गए और उन्होंने उनकी माँगों को सुना। 20,000 किसानों से मुलाक़ात करने के बाद फडणवीस ने उन्हें उनकी माँगो को पूरा करने का सिर्फ़ लिखित आश्वासन ही नहीं दिया, बल्कि इसके लिए समय-सीमा भी तय कर दी। क़र्ज़माफ़ी और सूखे के कारण रहत पैकेज की माँग कर रहे किसानों ने उनसे मिलने के बाद अपने प्रदर्शन को विराम दे दिया।
ऐसा नहीं था कि फडणवीस अचानक उनसे मिले और सबकुछ ठीक हो गया। दरअसल, फडणवीस की नज़र पहले से ही इस आंदोलन के जड़ पर थी। किसानों को अपने ही ख़िलाफ़ आंदोलन के लिए सरकारी बस मुहैया करना, एक मंत्री को पहले ही भेज कर स्थिति को नियंत्रित करना- बिना पब्लिसिटी के फडणवीस ने एक बार में एक क़दम चलते हुए सबकुछ सही कर दिया, बिना क़र्ज़माफ़ी की घोषणा किए।
कहा जा सकता है कि भाजपा में एक ऐसे नए संकटमोचक का उदय हुआ है, जो ढोल पीटना नहीं जानता, अपने गुणगानों का बखान करना नहीं जानता, तेज़ आवाज में नहीं बोलता, लेकिन फिर भी जनता उसकी भाषा समझती है और वो जनता की। वो राष्ट्रीय मीडिया में ज़्यादा नहीं आते और न ही उनके बयान चर्चा का विषय बनते हैं- उनका व्यक्तित्व ही उन्हें लोकप्रियता दिलाता है।