Sunday, November 24, 2024
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बेचारा लोकतंत्र! विपक्ष के मन का हुआ तो मजबूत वर्ना सीधे हत्या: नारे, निलंबन के बीच हंगामेदार रहा वार्म अप सेशन

उनके मन का हुआ तो लोकतंत्र मज़बूत हुआ है और उनके मन के विपरीत कुछ हुआ तो उसकी हत्या हो जाती है। ये बेचारे कभी नहीं कहते कि सरकार के फलां कदम से लोकतंत्र घायल हो गया, उसकी टाँग में फ्रैक्चर हो गया या फिर लोकतंत्र का सौ एम एल खून निकल गया। ये सीधा हत्या पर जाकर रुकते हैं।

आज संसद के शीतकालीन सत्र का पहला दिन था। सरकार और विपक्ष का आचरण आशा के अनुरूप था। सत्र की शुरुआत से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मीडिया के साथ बात करते हुए बताया कि; यह सत्र महत्वपूर्ण है। बातचीत के दौरान उन्होंने इस समय चल रहे आजादी के अमृत महोत्सव की भी चर्चा की। साथ ही प्रधानमंत्री ने सबको विश्वास दिलाया कि सरकार हर विषय और हर प्रश्न पर चर्चा के लिए तैयार है। संसद का हर सत्र महत्वपूर्ण होता है पर सत्र को न चलने देने के पीछे का दर्शन शायद अधिक महत्वपूर्ण होता है।

ऐसे में सत्र के पहले दिन लोकसभा में कॉन्ग्रेस की अगुवाई वाले विपक्ष ने नारे वगैरह लगाए। कॉन्ग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने किसानों की हालत पर चर्चा करने की बात उठाई। अधीर रंजन नेता हैं इसलिए और लोगों ने उनकी बात को आगे बढ़ाते हुए अपनी बातों को नारे प्रदान कर दिए। लिहाजा लोकसभा अध्यक्ष ने संसद की कार्रवाई 12 बजे तक के लिए स्थगित कर दी।

बाद में कार्रवाई आरंभ हुई तो सरकार ने अपनी पूर्व घोषणा के अनुरूप तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की संसदीय औपचारिकता पूरी की। विरोध के बीच संसद में कृषि कानूनों को रद्द करने का कानून दोनों सदनों में बिना किसी बहस या चर्चा के पास हो गया। संसद में बहस की जरूरत शायद इसलिए नहीं पड़ी क्योंकि सारी बहस सिंघु बॉर्डर और टीवी स्टूडियो में की जा चुकी थी। कॉन्ग्रेस के सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने चर्चा कराने की माँग की पर नारे रोकने के लिए तैयार नहीं दिखे। उन्होंने बताया कि सदन में लोकतंत्र की हत्या की जा रही है। उधर लोकसभा अध्यक्ष का कहना था कि वे सदन में चर्चा कराने के लिए तैयार हैं पर विपक्ष को सदन का माहौल सही करना पड़ेगा। विपक्ष गलत माहौल में चर्चा के लिए राजी था।

इसके अलावा पहले दिन की कार्रवाई में विभिन्न राजनीतिक दलों से राज्यसभा के बारह सांसदों को मानसून सत्र में संसदीय परंपरा के विरुद्ध व्यवहार करने के लिए शीतकालीन सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया। इन सांसदों के निलंबन को भी लोकतंत्र की हत्या वगैरह बताया गया। इस संसदीय कार्रवाई पर आई प्रतिक्रियाओं में इस कार्रवाई को और कई तरह से पेश करने की कोशिश की गई। जैसे एक प्रतिक्रिया यह थी कि विपक्ष का काम है आवाज़ उठाना। ऐसे में यह निलंबन सही नहीं है। यह प्रयास है यह थ्योरी फैलाने का कि सांसदों का यह निलंबन आवाज़ उठाने के लिए किया गया जबकि निलंबन के कारण में साफ़-साफ़ कहा गया है कि इनका निलंबन संसदीय परंपराओं के अनुरूप आचरण न करने के लिए किया गया है।

संसद में परंपरा के अनुरूप आचरण न करने से लोकतंत्र मजबूत होता है और उस आचरण के लिए निलंबन पर लोकतंत्र की हत्या हो जाती है। वैसे एक बात है; वर्तमान भारतीय संसदीय लोकतंत्र की आये दिन हत्या की बात मजेदार लगती है। हमारे सांसद एक्सट्रीम पर रहने के आदी हैं। ऐसी संसदीय कार्रवाई को लोकतंत्र की हत्या बताने वालों के लिए मध्यमान का कोई विशेष महत्व नहीं है। उनके मन का हुआ तो लोकतंत्र मज़बूत हुआ है और उनके मन के विपरीत कुछ हुआ तो उसकी हत्या हो जाती है। ये बेचारे कभी नहीं कहते कि सरकार के फलां कदम से लोकतंत्र घायल हो गया, उसकी टाँग में फ्रैक्चर हो गया या फिर लोकतंत्र का सौ एम एल खून निकल गया। ये सीधा हत्या पर जाकर रुकते हैं।

शीतकालीन सत्र के पहले दिन चूँकि सदन की कार्रवाई में केवल नारे लगे और बहस वगैरह के लिए स्थान नहीं था लिहाजा डॉक्टर शशि थरूर को अंग्रेजी बोलने का मौका नहीं मिला। हाँ, महिला सांसदों के साथ एक सेल्फी ट्विटर पर पोस्ट करते हुए उन्होंने पूछा कि; कौन कहता है कि लोकसभा काम की जगह नहीं है? उनके ट्वीट पर हमेशा की तरह मज़ेदार प्रतिक्रियाएँ आईं। महिला सांसदों के बीच डॉक्टर थरूर हमेशा से लोकप्रिय रहे हैं। उनकी हमेशा से बड़ी इज़्ज़त रही है और वे भी सेल्फी वगैरह लेकर इस इज़्ज़त को स्वीकार करते रहे हैं।  

आज सत्र का पहला दिन वैसा ही था जैसे क्रिकेट मैच का पहला ओवर करने आया गेंदबाज शुरूआती तीन-चार गेंदों में वार्म अप करता नज़र आता है। देखना यह है कि वार्म अप सेशन आज ख़त्म हुआ है या आगे भी चलेगा।

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