चुनाव के मौसम में यूँ तो पूरे भारत का राजनीतिक माहौल गर्म रहता है लेकिन बिहार की आबोहवा को क़रीब से देखने वाले लोग जानते हैं कि जैसी हलचल, सरगर्मी और उठापटक यहाँ होती है, वैसी कहीं भी नहीं। भले ही राजनीतिक रूप से देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश हो लेकिन बिहार की राजनीतिक स्थितियों में कब और क्या बदलाव आ जाए, इसका पता लगाना मुश्किल है। अब लालू परिवार को ही लीजिए। एक समय बिहार की राजनीति के एकमात्र सिरमौर रहे लालू प्रसाद यादव आज अपने ही कुनबे को बचाने में नाकाम साबित हो रहे हैं। यादव परिवार में फूट पड़ चुकी है। तेजस्वी-तेज प्रताप एक दूसरे के आमने-सामने खड़े नज़र आ रहे हैं। महागठबंधन की प्रतिष्ठा दाँव पर है। इसे समझने के लिए ताजा घटनाक्रम के कुछ पहलुओं को देखना पड़ेगा।
शिवहर सीट की वजह से लालू परिवार में विद्रोह की स्थिति हो गई है। जहानाबाद पर तो @yadavtejashwi और @TejYadav14 गुट ने अपना अपना उम्मीदवार दे दिया है। अब शिवहर से अंगेष तेज प्रताप और रामा सिंह तेजस्वी के उम्मीदवार हो जाएंगे। फिर देखिए क्या होता है
— Manoj kumar (@manojkumarmukul) March 30, 2019
बात दरभंगा से शुरू करते हैं। दरभंगा में भाजपा के बागी नेता कीर्ति झा आजाद कॉन्ग्रेस में शामिल हो गए थे। जिस तरह से सभी विपक्षी दल एकता दिखाने की जुगत में लगे हुए थे, उन्हें शायद इस बात का अंदाजा भी न हो कि एक दिन ऐसा आएगा जब उनकी ही टिकट कट जाएगी। 2014 आम चुनाव में दरभंगा से 3 लाख मत पाकर सांसद बनने वाले कीर्ति झा का टिकट कट जाना इस बात की ओर इशारा करता है कि राजद को इस बात की भनक है कि भाजपा से लड़ने वाले अधिकतर नेताओं को मोदी लहर का अच्छा साथ मिलता है। पूर्व नेता प्रतिपक्ष अब्दुलबारी सिद्दकी को दरभंगा से टिकट दिया गया है। 2014 में दूसरे नंबर पर रहे अली अशरफ फातमी और कीर्ति झा के बीच क़रीब 35 हज़ार मतों का ही अंतर था। ऐसे में, सिद्दकी को टिकट मिलने से वे बिफर गए।
अब दरभंगा से सीधा तेजस्वी-तेज प्रताप के मतभेदों की तरफ बढ़ते हैं। अब्दुलबारी सिद्दकी को तेजस्वी यादव का क़रीबी माना जाता है। पहली मनमोहन सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे अली अशरफ फातमी को लालू यादव का क़रीबी माना जाता था। यह दिखाता है कि टिकट बँटवारे में तेजस्वी की सलाह पर जेल से लालू यादव ही सारे निर्णय ले रहे हैं। इस बारे में हमने एक ख़बर भी प्रकाशित की थी। 2 वर्ष पहले अब्दुलबारी सिद्दीकी सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि तेजस्वी यादव में लालू यादव के सारे गुण-लक्षण दिखते हैं (भले ही ऐसा न हो)। हर पार्टी में बड़े नेताओं व सुप्रीम परिवार (राजद, सपा, डीएमके) के सदस्यों की कामना रहती है कि उनके क़रीबी लोगों को ज्यादा से ज्यादा टिकट मिले ताकि बाद में किसी भी प्रकार के संकट या विवाद की स्थिति में उनकी कृपा से जीते जनप्रतिनिधि उनके खेमे की तरफ से आवाज़ उठाएँ। मुखिया की अनुपस्थिति में राजद अभी इसी दौर से गुज़र रहा है।
छात्र राष्ट्रीय जनता दल के संरक्षक के पद से मैं इस्तीफा दे रहा हूँ।
— Tej Pratap Yadav (@TejYadav14) March 28, 2019
नादान हैं वो लोग जो मुझे नादान समझते हैं।
कौन कितना पानी में है सबकी है खबर मुझे।
तेजस्वी यादव के उपर्युक्त ट्वीट को देखिए। इसमें उनका तेवर साफ़ झलक रहा है। जहानाबाद से अपने क़रीबी चंद्र प्रकाश यादव को टिकट दिलाने की जुगत में लगे तेज प्रताप को पार्टी से निराशा हाथ लगी और तेजस्वी ने सुरेंद्र यादव के नाम पर मुहर लगा दी। इस बात से बौखलाए तेज प्रताप ने समर्थकों से नामांकन दाखिल का आदेश देकर एक तरह से बगावत का ही ऐलान कर दिया। इसी तरह शिवहर से भी वह अंगेश यादव को टिकट देना चाहते थे लेकिन वहाँ भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी। गुरुवार (मार्च 28, 2019) को तेजस्वी यादव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का ऐलान किया था लेकिन ऐन वक़्त पर पार्टी के बड़े नेताओं को इसकी भनक लग गई और उन्होंने तेज प्रताप को किसी तरह मनाया।
दरअसल, लालू यादव के समय उसके आसपास रघुनाथ झा, रघुवंश प्रसाद यादव, अखिलेश सिंह और सीताराम सिंह जैसे वरिष्ठ और अनुभवी नेता संकटमोचक के रूप में हुआ करते थे, जो पार्टी में किसी भी तरह की स्थिति को संभालने की ताक़त रखते थे। अखिलेश आज राज्य में कॉन्ग्रेस प्रचार समीति के अध्यक्ष हैं, रघुनाथ झा और सीताराम सिंह का निधन हो गया और रघुवंश आज के दौर में उतने सक्रिय नहीं हैं। एक और बात गौर करने वाली है कि मुस्लिम-यादव समीकरण की बात करने वाले लालू के ये सभी क़रीबी सवर्ण थे। आज पार्टी में दो गुट होने के साथ ही उन्हें ऐसे नेताओं की कमी भी खल रही है जो स्थिति को नियंत्रित कर सकें। आज तेज प्रताप का अगला क़दम क्या होगा, बताना मुश्किल है।
बिहार की राजनीति को देखें तो में लालू के आस-पास के नेताओं और खुद लालू यादव की रणनीतिक क्षमता तो थी ही। आज भ्रष्टाचार के मामलों में जेल की सज़ा भुगत रहे लालू अपना ही क़िला बचाने में नाकाम साबित हो रहे हैं। हालाँकि, इसकी भनक तभी लग गई थी जब तेज प्रताप यादव ने अपनी पत्नी से तलाक़ लेने की बात कही थी और पूरा लालू परिवार उन्हें मनाने में नाकाम साबित हुआ था। अपने घर से दूर निकल चुके तेज प्रताप को मनाने में उनकी माँ राबड़ी देवी भी नाकाम साबित हुई थीं। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे पर भी तेज प्रताप निशाना साध चुके हैं। उनका आरोप था कि पूर्वे उनके लोगों की अनदेखी कर रहे हैं। तेज प्रताप ने यह भी कहा कि जहानाबाद को लेकर तेजस्वी से उनकी बात नहीं हुई है। यह दिखाता है कि लालू परिवार में कम्युनिकेशन गैप भी हद से ज्यादा बढ़ चुका है।
#Bihar: टिकट बंटवारे पर तेजस्वी Vs तेज प्रताप pic.twitter.com/m1bt041DGE
— Zee Bihar Jharkhand (@ZeeBiharNews) March 31, 2019
इन सबके अलावा तेज प्रताप यादव अपने ससुर चन्द्रिका यादव को सिवान से टिकट देने के पक्ष में नहीं थे लेकिन इस मामले में भी पार्टी में उनके राय की अनदेखी की गई। चन्द्रिका ने नामांकन दाखिल करने के बाद तेजस्वी में प्रधानमंत्री बनने की क्षमता होने की बात कह अपने दामाद तेज प्रताप को नाराज़ कर दिया। हालाँकि, उन्होंने दावा किया कि तेज प्रताप उनके लिए प्रचार करेंगे लेकिन फिलहाल इसके आसार बहुत कम ही नज़र आ रहे हैं। अब देखना यह है कि शिवहर, जहानाबाद, दरभंगा और सारण में उम्मीदवार चयन से नाराज़ तेज प्रताप आगे क्या करते हैं? चर्चा है कि राजद सुप्रीमो लालू यादव ख़ुद मामले को सुलझाने के लिए पहल करने वाले हैं क्योंकि बिना उनके हस्तक्षेप के परिवार में शायद ही सब कुछ ठीक हो। हाँ, महागठबंधन में इसका नकारात्मक असर पड़ना तय है। तेजस्वी के प्रेस कॉन्फ्रेंस में कॉन्ग्रेस और कुशवाहा की अनुपस्थिति ने इस बात को बल दे दिया है।