महाराष्ट्र का राजनीतिक ऊँट किसी भी करवट बैठ सकता है। ऐसा इसीलिए, क्योंकि शरद पवार ने सोनिया गाँधी के साथ बैठक की, जिसमें शिवसेना को समर्थन करने पर ज़रूर चर्चा हुई होगी। हालाँकि, पवार ने इसे सिर्फ़ राज्य के राजनीतिक परिदृश्य पर चर्चा करार दिया। वैसे देखा जाए तो शिवसेना और कॉन्ग्रेस पहले भी एक-दूसरे का समर्थन कर चुकी है। या कह सकते हैं कि शिवसेना ने कई मौक़ों पर कॉन्ग्रेस का समर्थन किया था। बाल ठाकरे ने आपातकाल के दौरान इंदिरा गाँधी का समर्थन कर सबको चौंका दिया था। यह और बात है कि शिवसेना के संस्थापक अपने हिंदुत्ववादी विचारों के लिए जाने जाते थे।
ये किस्सा 1975 का है, जब इंदिरा गाँधी ने आपातकाल लगा कर कई विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया था। तब बालासाहब ठाकरे पर भी गिरफ़्तारी की तलवार लटकी थी। ऐसा इसलिए, क्योंकि ठाकरे कॉन्ग्रेस के सबसे बड़े विरोधियों में से एक थे। कार्टूनिस्ट के रूप में अपना करियर शुरू करने वाले ठाकरे अपने कार्टूनों से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को निशाना बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे। वह अपने भाषणों में कॉन्ग्रेस के ख़िलाफ़ आग उगलते थे। फायरब्रांड नेता होने के कारण उनके बयान चर्चा में भी रहते थे। ऐसे में ठाकरे द्वारा इंदिरा गाँधी और आपातकाल का समर्थन करना चौंकाने वाला था।
बालासाहब इतने पर ही नहीं रुके थे। उन्होंने 1977 के आम चुनाव और 1978 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी कॉन्ग्रेस का समर्थन किया था। इसका नतीजा ये हुआ कि पार्टी को न सिर्फ़ मुंबई बीएमसी बल्कि पूरे महाराष्ट्र में जनता का समर्थन नहीं मिला उन चुनावों में शिवसेना को कॉन्ग्रेस का समर्थन करना भरी पड़ा। ये मुद्दा जनवरी 2018 में फिर से तब उछला था, जब महाराष्ट्र सरकार ने इमरजेंसी के दौरान जेल गए लोगों को पेंशन देने की घोषणा की थी। एनसीपी ने शिवसेना से पूछा था कि क्या बाल ठाकरे द्वारा इमरजेंसी का समर्थन करना एक बड़ी भूल थी?
अगर आपको कोई कहे कि शिवसेना का जन्म ही कॉन्ग्रेस के आशीर्वाद से हुआ था, तो आपको शायद आश्चर्य हो। सीपीआई के संथापक और वयोवृद्ध वामपंथी नेता श्रीपद अमृत डांगे की बेटी रोजा देशपांडे का मानना है कि शिवसेना के उद्भव से लेकर उसके पूरे सेटअप के लिए कॉन्ग्रेस ही जिम्मेदार है। वह अपने इस बयान के पीछे तर्क देते हुए याद दिलाती हैं कि जब शिवसेना की स्थापना की घोषणा हुई थी, तब कॉन्ग्रेस नेता रामराव आदिक मंच पर मौजूद थे। शिवसेना की स्थापना 1966 में हुई थी। प्रसिद्ध वकील रामराव आदिक आगे जाकर महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री भी बने।
Manmohan is intelligent, but Indira Gandhi had guts: Bal Thackeray http://t.co/OFC8pAjp
— DNA (@dna) October 18, 2011
शिवसेना का उत्तर भारतीयों और दक्षिण भारतीयों, दोनों से ही संघर्ष के इतिहास रहा है। साथ ही पार्टी बौद्ध दलितों का भी विरोध कर चुकी है। यहाँ तक कि शिवसेना ने 1979 में मुस्लिम लीग के साथ भी गठबंधन किया था। आपातकाल के बारे में कई किस्से प्रचलित हैं। उनमें से एक ये भी है कि जब एक के बाद एक विपक्षी नेताओं को जेल भेजा जा रहा था, तब राज्य के मुख्यमंत्री शंकरराव चव्हाण ने ठाकरे के सामने दो विकल्प रखे थे। उन्होंने ठाकरे से या तो आपातकाल का समर्थन करने या फिर जेल जाने का विकल्प दिया था। जेल जाने से बचने के लिए बाल ठाकरे ने आपातकाल और इंदिरा गाँधी का समर्थन किया, ऐसा कहा जाता है।
इसके बाद न सिर्फ़ 1977 लोकसभा और 1978 के बीएमसी चुनाव बल्कि 1980 के लोकसभा चुनाव में भी बाल ठाकरे ने कॉन्ग्रेस का समर्थन किया था। उन्होंने कॉन्ग्रेस के ख़िलाफ़ प्रत्याशी ही नहीं उतारे। शिवसेना ने बहाना बनाया कि बाल ठाकरे के साथ तत्कालीन मुख्यमंत्री एआर अंतुले के साथ निजी रिश्ते हैं, इसीलिए शिवसेना कॉन्ग्रेस का समर्थन कर रही है। शिवसेना-भाजपा का गठबंधन 1989 में फाइनल हुआ लेकिन बाल ठाकरे उससे पहले कई ऐसे दलों और लोगों के साथ गठबंधन बना चुके थे या समर्थन कर चुके थे, जिनका विरोध करते वो और उनकी पार्टी थकती नहीं थी। इन विरोधाभासों के कारण कम्युनिष्ट पार्टी कहती है कि कॉन्ग्रेस ने वामपंथियों के मुक़ाबले शिवसेना को खड़ा किया था।
1980 में शिवसेना द्वारा कॉन्ग्रेस का समर्थन करने का पार्टी को इनाम भी मिला था। एआर अंतुले के समर्थन के एवज में 2 शिवसेना नेताओं को विधान परिषद में भेजा गया। 1977 के मेयर चुनाव में शिवसेना ने मुरली देवड़ा का समर्थन किया, जिसके कारण पार्टी के पहले मेयर डॉक्टर हेमचन्द्र गुप्ता ने शिवसेना से इस्तीफा दे दिया था। मुरली के बेटे मिलिंद देवड़ा अभी मुंबई रीजनल कॉन्ग्रेस कमिटी के मुखिया हैं। 1982 में वो मौक़ा भी आया, जब शिवसेना के संस्थापक-अध्यक्ष बाल ठाकरे ने शरद पवार और जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मंच साझा किया। उन्होंने गिरनगाँव मिल में मजदूरों के हड़ताल को लेकर दशहरा रैली के दौरान पवार के साथ मंच साझा किया।
When Bal Thackeray allied with the Muslim League. Banatwala and Thackeray at the inauguration of Naya Nagar, 1979 pic.twitter.com/FO6VnjpXWH
— indohistoricus (@indohistoricus) April 19, 2014
यह भी जानने लायक बात है कि ठाकरे ने उसी कॉन्ग्रेस का विरोध करने के लिए पवार के साथ मंच साझा किया, जिसके वो पहले समर्थक रहे थे। बाल ठाकरे के बाद के दिनों में भी हमें ऐसे मौके देखने को मिले जब उन्होंने 2007 में राष्ट्रपति पद के लिए कॉन्ग्रेस समर्थित उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल का समर्थन किया था। उस दौरान वरिष्ठ भाजपा नेता भैरों सिंह शेखावत स्वतंत्र उम्मीदवार थे और उन्हें राजग का समर्थन प्राप्त था लेकिन शिवसेना ने गठबंधन लाइन से अलग जाकर पाटिल का समर्थन किया। इस बात पर भी गौर कीजिए कि जिस चीज का नाम लेकर ठाकरे ने शेखावत का विरोध किया था, आज उनकी पार्टी वही कर रही है।
बाल ठाकरे ने कहा था कि भैरोंसिंह शेखावत स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में इसीलिए चुनाव लड़ रहे हैं क्योंकि भाजपा की तरफ़ से खड़े होने पर उन्हें कई दलों का समर्थन नहीं मिलता। ठाकरे ने इसे ‘सौदेबाजी’ करार देते हुए कहा था कि वो इसका समर्थन नहीं करते। बाल ठाकरे की पार्टी आज भाजपा के साथ ‘सौदेबाजी’ में लगी है और रोज मोलभाव किए जा रही है। इसी तरह 2012 में शिवसेना ने राष्ट्रपति चुनाव में प्रणव मुखर्जी का समर्थन किया था। मुखर्जी ने फोन कर के बाल ठाकरे और उद्धव ठाकरे से बात की थी। उस समय संजय राउत ने ही इसकी घोषणा की थी कि शिवसेना मुखर्जी का समर्थन करेगी। प्रणव मुखर्जी ने मातोश्री पहुँच कर बाल ठाकरे से मुलाक़ात भी की थी।
कुल मिला कर देखें तो ‘सौदेबाजी’ और मोलभाव शिवसेना के भीतर तब से है, जब से उसकी स्थापना हुई थी। ‘ठाकरे’ फ़िल्म के डायलॉग ‘लूँगी उठाओ, पूँगी बजाओ’ को लेकर विरोध हुआ था क्योंकि इसमें दिखाया गया था कैसे बाल ठाकरे ने दक्षिण भारतीयों का विरोध किया था। एक समय ऐसा भी आया, जब मुंबई से बिहारियों को भगाया जाने लगा। बौद्ध दलितों से टकराव की बात हम ऊपर कर चुके हैं। बालासाहब ने मनमोहन सिंह को भी ‘काफ़ी बुद्धिमान और सौम्य’ प्रधानमंत्री बताया था। कुल मिला कर देखें तो शिवसेना की राजनीति विरोध और ‘सौदेबाजी’ पर ही टिकी हुई है।